या लकुटी अरु कामरिया पर पद की व्याख्या

या लकुटी अरु कामरिया पर पद की व्याख्या

 

प्रसंग-

या लकुटी अरु कामरिया पर पद (सवैया) अनन्य कृष्ण भक्त कवि रसखान द्वारा रचित है जो पाठ्यक्रम में विद्यानिवास मिश्र द्वारा संपादित “ रसखान रचनावली “ से लिया गया है।

 

संदर्भ-

कवि के अपने मन के अनुसार स्वयं वे अथवा भगवान श्रीकृष्ण, ब्रज भूमि और वहां से जुड़ी चीजों के लिए समस्त ऐश्वर्या को निछावर करने की अभिलाषा व्यक्त करते भक्त-मन का चित्रण किया हैं।

 

व्याख्या–

रसखान के अनुसार श्रीकृष्ण जब मथुरा छोड़कर वंशीधर के बजाय द्वारकाधीश कहलाने लगते हैं तो उन्हें ब्रज प्रदेश की अतिशय स्मृति अहर्निश सताती रहती है। वह इन स्मृतियों से घायल होकर अपनी पत्नी रुक्मणी से कहते हैं कि भले ही आज वे द्वारकाधीश कहलाने लगे हैं एवं समस्त ऐश्वर्य के मध्य जीवन जी रहे हैं परन्तु सत्य तो यह है कि गोकुल में गायों को चराने के लिए जाते वक़्त जो लाठी और कंबल उनके पास होती थी उनके लिए वह तीनों लोगों का राज भी त्याग सकते हैं।

अभिप्राय यह है कि तीनों लोकों के राजा होने के बजाय वह नंद जी का चरवाहा बनना पसंद करेंगे। वहां का आनंद अद्भुत था। दूसरी तरफ इनको अगर कोई तीनों लोगों का राज भी दे तो श्रीकृष्ण की लाठी और कंबल के समक्ष उसे त्याज्य (त्याग देने योग्य मानेंगे) ठीक उसी प्रकार आठें प्रकार की सिद्धियों और नौ निधियों को श्रीकृष्ण नंद जी की गायों को चराकर बिसरा देंगे।

रसखान कहते हैं कि श्रीकृष्ण ने जब से ब्रज प्रदेश के वन-उपवन और तालाब निहारे हैं तब से उनकी आंखें कुछ और नहीं देखना चाहतीं। करोड़ों प्रकार के स्वर्ण-रजत निर्मित महल कृष्ण जी करील की कटीली झाड़ियां के ऊपर न्योछावर करते हैं।

यह अभिलाषा रसखान के अपने मन की भी मानी जा सकती हैं।श्री कृष्ण के प्रेम से वशीभूत रसखान समस्त ऐश्वर्य को श्री कृष्ण से जुड़ी वस्तुओं के समक्ष नगण्य एवं त्याज्य समझते हैं। उनके लिए अपने आराध्य का सामीप्य अधिक काम्य है।

 

विशेष

1.यहां श्री कृष्ण के मनोभावों के रूप में स्वयं कवि के ब्रजभूमि के प्रति प्रेम का प्रकाशन हुआ है।

2.प्रिय से जुड़ी समस्त वस्तुएं बेशकीमती होती हैं, सवैया इस बात को बहुत सरसता, स्वाभाविकता और मार्मिकता के साथ व्यक्त करता है।

3.ब्रजभाषा का लोक विदित सरस रूप दृष्टव्य है।

4.शैली वर्णनात्मक है, शांत रस का परिपाक हुआ है।

5.”करील की कुंजन” में अनुप्रास अलंकार है।

 

© डॉ. संजू सदानीरा

 

इसी तरह अगर आप रसखान के सवैये मानुस हौं तो वही रसखान की व्याख्या पढ़ना चाहते हैं तो कृपया नीचे दिये गये लिंक पर क्लिक कर पढ़ सकते हैं..

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Dr. Sanju Sadaneera

डॉ. संजू सदानीरा एक प्रतिष्ठित असिस्टेंट प्रोफेसर और हिंदी साहित्य विभाग की प्रमुख हैं।इन्हें अकादमिक क्षेत्र में बीस वर्षों से अधिक का समर्पित कार्यानुभव है। हिन्दी, दर्शनशास्त्र, मनोविज्ञान विषयों में परास्नातक डॉ. संजू सदानीरा ने हिंदी साहित्य में नेट, जेआरएफ सहित अमृता प्रीतम और कृष्णा सोबती के उपन्यासों पर शोध कार्य किया है। ये "Dr. Sanju Sadaneera" यूट्यूब चैनल के माध्यम से भी शिक्षा के प्रसार एवं सकारात्मक सामाजिक बदलाव हेतु सक्रिय हैं।

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