हिन्दी कहानी का उद्भव और विकास/ काल विभाजन
हिन्दी कहानी का उद्भव और विकास समझने के लिए सबसे पहले हिन्दी साहित्य काल विभाजन को समझना अत्यन्त आवश्यक है। हिंदी साहित्य में गद्य विधा का विकास आधुनिक काल की देन है। आधुनिक काल से पहले आदिकाल, भक्ति काल और रीतिकाल में पद्य का विकास तो विविध रूपों में हुआ, परंतु गद्य का विकास नहीं हो पाया।
आधुनिक काल में खड़ी बोली के साथ-साथ गद्य विधाओं का भी विकास हुआ। प्रमुख गद्य विधाओं में उपन्यास, कहानी, निबंध, नाटक, एकांकी, आत्मकथा जीवनी, संस्मरण, रेखाचित्र, यात्रा साहित्य इत्यादि का नाम लिया जा सकता है।
उपर्युक्त सभी गद्य विधाओं में कहानी सबसे रोचक और लोकप्रिय गद्य विधा मानी जाती है। कहानी का विकास गल्प, बात, आख्यान कथा और कहानी के रूप में माना गया है। हमारे यहां कहानी का विकास पाश्चात्य कहानी आंदोलन के पश्चात हुआ।
एण्टव चेखव,मोपासां, एडगर एलन पो इत्यादि विश्व साहित्य में कहानी के जनक माने जाते हैं। इनसे होते हुए भारत में कहानी साहित्य परिदृश्य में उपस्थित हुई। इंशा अल्लाह खान की लिखी ‘रानी केतकी की कहानी’ से 1900 में रचित ‘इंदुमती’ तक कहानी विधा धीरे-धीरे आकार ले रही थी।
अध्ययन की सुविधा की दृष्टि से हिंदी कहानी के उद्भव और विकास को चार भागों में बांटा जा सकता है..
1.पूर्व प्रेमचंद युग (1900 से 1916 ई)
2.प्रेमचंद युग (1916 से 1936 ई)
3.प्रेमचंदोत्तर (1936 से 1950 ई)
4.समकालीन अथवा स्वातंत्रयोत्तर युग (1950 से अब तक)
पूर्व प्रेमचंद युग-
पूर्व प्रेमचंद युग हिंदी कहानी का शैशव काल था। इस काल की कहानियों में जीवन के प्रति व्यापक दृष्टिकोण का अभाव था। इस युग की कहानियों में कौतूहल और मनोरंजन की प्रधानता थी। 1900 में लिखी गई किशोरी लाल गोस्वामी रचित ‘इंदुमती’ हिंदी की पहली मौलिक कहानी मानी जाती है।
इस युग में 1915 में चंद्रधर शर्मा गुलेरी रचित कहानी ‘उसने कहा था’ तात्विक दृष्टि से हिंदी की पहली कहानी मानी जाती है। हिंदी कहानी की यात्रा में यह एक अविस्मरणीय कहानी है। पूर्व प्रेमचंद युग में जयशंकर प्रसाद की पहली कहानी ‘ग्राम’ उनके पत्र इंदु में छपी थी।
प्रेमचंद युग-
हिन्दी कहानी का उद्भव और विकास में प्रेमचंद का योगदान अतुलनीय है। प्रेमचंद युग हिंदी कहानी के लिए एक वरदान साबित हुआ। प्रेमचंद ने पहली बार उपन्यास और कहानी का संबंध समाज से जोड़ा।
प्रेमचंद ने अपनी कहानियों के माध्यम से तत्कालीन राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक परिस्थितियों का यथार्थ चित्रण किया। अब कहानी उद्देश्यपूर्ण और स्वस्थ मनोरंजन से युक्त होने लगी। प्रेमचंद ने लगभग 300 कहानियां लिखीं, जो मानसरोवर के नाम से आठ भागों में संकलित हैं।
उनकी महत्वपूर्ण कहानियों में पंच परमेश्वर, पूस की रात, ईदगाह, बूढ़ी काकी और कफ़न इत्यादि मानी जाती है। इस युग में अन्य कथाकारों में जयशंकर प्रसाद, राधिका रमण प्रसाद सिंह, विश्वंभर नाथ शर्मा कौशिक इत्यादि का नाम लिया जा सकता है।
प्रेमचंद युग में समाज सुधार, नारी उद्धार, छुआछूत का विरोध, किसानों की दुर्दशा का चित्रण और अंग्रेजी दासता के खिलाफ जागरूकता इत्यादि मुख्य विषय रहे।
प्रेमचंदोत्तर युग-
हिंदी कहानी में इस युग में नई दिशा प्राप्त हुई स्वरूप शैली गठन तथा तथ्य की दृष्टि से यह युक्त चरमोत्कर्ष पर रहा नाना विचारधाराओं से युक्त कहानी इस समय में लिखी जानी प्रारंभ हुई।
लेखक मार्क्सवादी विचारधारा से भी प्रभावित हुए इस युग की कहानियों में मूल स्वर रहे मानववाद की प्रतिष्ठा रूढ़ियों के प्रति विद्रोह समाज का यथार्थ चित्रण शोषण से संरक्षण के प्रति सजगता इत्यादि इन कहानीकारों में राहुल सांकृत्यायन उपेंद्रनाथ अश्क यशपाल रंगे राघव मनमत नाथ गुप्त अमृतलाल नागर इत्यादि नाम प्रमुख रहे।
मनोविश्लेषणात्मक कहानी धारा में जैनेंद्र, इलाचंद्र जोशी इत्यादि कहानीकार हुए हैं जिन्होंने कहानी को गति प्रदान की। कहानी में मनोरंजन को विशेष रूप से उभारा गया और मनोवैज्ञानिक कहानियां लिखी गईं। फणीश्वर नाथ रेणु ने आंचलिक कहानियों का प्रवर्तन किया।
इसके साथ ही नागार्जुन, शैलेश मटियानी और उदय शंकर भट्ट की कहानियों में भी आंचलिकता की झलक मिलती है। इन कहानियों में अंचल (क्षेत्र) विशेष की सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक पृष्ठभूमि का अंकन किया गया। इस युग में आत्मकथात्मक, प्रतीकात्मक, पत्रात्मक एवं डायरी शैली इत्यादि लेखन शैलियों का भी चलन बना।
समकालीन युग-
आज़ादी के पश्चात कहानी जगत में नया मोड़ आया। हिन्दी कहानी का उद्भव और विकास समकालीन युग में निरन्तर हो रहा है। कहानीकारों की कहानियों में मार्क्सवादी चिंतन, मनोवैज्ञानिक विश्लेषण, यौन संबंधों की अभिव्यक्ति एवं सामाजिक जीवन के प्रति नवीन दृष्टि उत्पन्न हुई। अभिनव शिल्प विधान रचे गये ।
अब कहानियों में शैली, शिल्प और विषय में क्रांतिकारी परिवर्तन हुए। कहानी साहित्य में अनेक नये आंदोलन भी उभरे। यथा- अकहानी, लंगड़ी कहानी, सचेतन कहानी, आज की कहानी, प्रतिबद्ध कहानी, सक्रिय कहानी, समानांतर कहानी और नयी कहानी इत्यादि।
इस युग में यथार्थ और प्रगतिशीलता के नये स्वर उभरे। इस युग के प्रमुख कहानीकारों में भीष्म साहनी, अमरकांत, निर्मल वर्मा, मणि मधुकर, ज्ञानरंजन, शैलैश मटियानी, श्रीकांत वर्मा, राजेन्द्र यादव, मोहन राकेश, कमलेश्वर, शिवानी, मृदुला गर्ग, ममता कालिया, मन्नू भंडारी, कृष्णा सोबती, निरुपमा सेवती, रमेश बख्शी और यादवेन्द्र शर्मा चंद्र का नाम लिया जा सकता है।
कहानियों में व्यक्तिवाद की प्रधानता, वर्ग संघर्ष, घुटन, कुण्ठा, अनास्था का स्वर, क्लाइमेक्स का अभाव, मनोद्वन्द्व का चित्रण इत्यादि प्रवृत्तियाँ प्रमुख रहीं। मुख्यतः नयी कहानी में क्षण और अनुभूति की सघनता को अत्यधिक महत्त्व मिला है।
हिन्दी कहानी का उद्भव और विकास तथा इतिहास समझने एवं समग्र तथ्यों के अध्ययन हेतु सुविधा की दृष्टि से निम्नलिखित काल विभाजन भी किया जा सकता है-
1.सन् 1800 से 1900 तक निर्माण काल,
2.1900 से 1916 तक प्रयोग काल,
3.1916 से 1936 तक प्रगति काल,
4.1936 से 1947 तक उत्थान काल
5.1947 से अद्यावधि तक आधुनिक काल।
कहानी साहित्य का आधुनिक काल जन चेतना के नज़दीक है। इस काल में सामाजिक चेतना, मानवतावादी चेतना एवं नए युगबोध को परखा और समझा गया है। कहानी आंदोलन को प्रखर करने में सहायक पत्रिकाएं रही हैं- सारिका, कल्पना, लहर, कहानी, नई कहानी, मधुमती, गवाक्ष, निहारिका, धर्म युग, साप्ताहिक हिंदुस्तान और वातायन।
अत्यंत प्रतिभावान नयी पीढ़ी निरंतर कहानी लेखन कर रही है, जिनमें ममता कालिया,राजी सेठ, जया जादवानी, मालती जोशी,सुदेश बत्रा, मनीषा कुलश्रेष्ठ,ऋतु त्यागी,सबाहत आफरीन इत्यादि प्रमुख हैं।
आज हिंदी में विश्व स्तर की कहानियां लिखी जा रही हैं। वस्तुतः हिंदी कहानी का भविष्य उज्ज्वल एवं विकासोन्मुख है।
आदिकाल की प्रमुख काव्य धाराएँ पढ़ने के लिए कृपया नीचे दिये गये पोस्ट की लिंक पर क्लिक करें..
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