अनामदास का पोथा उपन्यास की मूल संवेदना
हजारी प्रसाद द्विवेदी हिंदी साहित्य के एक अत्यंत विद्वान साहित्यकार हैं। इनके निबंध संग्रह हिंदी साहित्य के पाठकों के बीच अत्यंत लोकप्रिय हैं।अशोक के फूल, कुटे, आलोक पर्व और नाखून क्यों बढ़ते हैं इत्यादि उनके प्रसिद्ध निबंध हैं। साहित्य की इतिहास दृष्टि से लिखी गई उनकी कृतियां हिंदी साहित्य की भूमिका, हिन्दी साहित्य: उद्भव और विकास, नाथ सम्प्रदाय, साहित्य सहचर और आदिकाल इत्यादि अध्ययन की दृष्टि से बहुत महत्त्वपूर्ण हैं । बाणभट्ट की आत्मकथा, चारू चंद्रलेख, अनामदास का पोथा और पुनर्नवा इनके अत्यंत चर्चित उपन्यास हैं।
अनामदास का पोथा इनके द्वारा रचित दार्शनिक और पौराणिक पृष्ठभूमि पर आधारित एक बहु पठित उपन्यास है।
अनामदास का पोथा उपन्यास की मूल संवेदना साधारण कथाओं की भांति सपाट नहीं है। इस उपन्यास की मूल संवेदना एक साथ ही कई स्तरों पर विचार करती है।जीवन, जगत, मनुष्य, प्रेम, कर्तव्य और सृष्टि की आदि शक्ति की खोज सहित बहुत सारे प्रश्नों के माध्यम से उपन्यास की मूल संवेदना को खंगाला जा सकता है।
उपन्यास में एक तरफ तो रैक्व और जाबाला की प्रणय कथा है तो दूसरी तरफ रैक्व का संसार के मूल तत्व को तलाश करना है। साध्वी ऋतंभरा और ऋषि औषस्तीपाद के माध्यम से एक ऐसे आध्यात्मिक जोड़े को दिखाया गया है जो सांसारिक मोह माया को जीतकर विश्व कल्याण की भावना से ओत-प्रोत है ।अरुन्धती और जाबाला के रिश्ते के माध्यम से समव्यस्क बहनों के बीच का स्वस्थ हास्य और सहज स्नेह दिखाया गया है।
राजा जानश्रुति के रूप में एक ऐसे शासक की कल्पना की गई है, जो तत्व दर्शन के प्रति अत्यंत जिज्ञासु हैं और अपनी भूल का आभास होने पर प्रजा के प्रति तुरंत जिम्मेदारी महसूस करते हैं।ऋषि औदुम्बरायण के रूप में ज्ञानी,सरल और स्नेहिल गुरु को दिखाया गया है जो अपने राजा की पुत्री को पुत्रीवत वात्सल्य देते हैं ।
इस उपन्यास की मूल संवेदना में प्रेम के अंतिम लक्ष्य ( पाणिग्रहण नहीं, उपोद्ग्रहण) और जीवन के कल्याणकारी मार्ग का भी उल्लेख किया गया है। रैक्व का प्रेम जाबाला की आत्मिक उन्नति और उसके सुख के लिए स्वयं का सर्वस्व वार देने वाला है। दूसरी तरफ प्रेम सिर्फ व्यक्तिगत घटना नहीं वरन् सामाजिक दायित्व बोध का विस्तार है, यह भी यहां बताया गया है। ऋषियों की आपसी वार्ता के माध्यम से जल, वायु, मन आत्मा और प्राण जैसी दार्शनिक अवधारणाओं पर बार-बार गहराई से विचार किया गया है। रैक्व का वायु को सृष्टि का मूल मानना भी इसी मान्यता का भाग है।
मानव जीवन की यात्रा और अहम् का त्याग अनामदास की मूल संवेदना में अंतर्निहित है। प्राणिमात्र के प्रति करुणा का जागरण और अपने उत्तरदायित्व का समुचित निर्वहन का मूल संदेश उपन्यास के पात्रों के आपसी संवादों के माध्यम से प्रेषित किया गया है।
छान्दोग्य- बृहदारण्यक उपनिषद की कथा से प्रेरित उपन्यास की मूल कथा में उपन्यासकार ने आधुनिक समय के प्रश्नों को भी समायोजित किया है जहां शासक के जनता के प्रति दायित्व और परस्पर प्रेम में एक दूसरे के सकारात्मक पक्षों का पल्लवन शामिल है। गंभीर विमर्श के साथ-साथ हास-परिहास के दृश्यों के लिए भी लेखक ने अवकाश निकाल लिया है जैसे जाबाला और उसकी बहन की बातचीत या रैक्व का शुभा ( जाबाला) के बारे में बताते वक्त जाबाला और साध्वी का हाव-भाव!
लेखक ने स्वयं को अनामदास की संज्ञा देते हुए औपनिषदिक पात्रों के माध्यम से पुरातन संस्कृति, जप, तप, ध्यान, समाधि और व्यवहारों (प्रैक्टिसेज) पर भी प्रकाश डाला है।
जाबाला से मुलाकात से पहले रैक्व का कभी किसी स्त्री को न देखना अचंभित करता है।आश्रम में सिर्फ पुरुष शिष्यों का होना,रैक्व का कुपित होकर सामने वाले को “शूद्र” कहना लिंग भेद और वर्ण व्यवस्था को दर्शाता है। जाबाला, ऋजुका और ऋतंभरा जैसी विलक्षण प्रतिभा संपन्न और करुणायुक्त स्त्रियों का सृजन प्रशंसनीय है। मूल संवेदना के रूप में एक अन्य महत्वपूर्ण बात है कि उपन्यास में एकांत में तपस्या करने से अधिक श्रेयस्कर जन कल्याण हेतु लोगों के बीच जाने को बताया गया है (“अकेले में आत्माराम या प्रणाराम होना भी एक प्रकार का स्वार्थ है”-साध्वी ऋतंभरा)।
कुल मिलाकर अनामदास का पोथा उपन्यास की मूल संवेदना में प्रणय की प्रथम अनुभूति का एक-दूसरे पर गहरे प्रभाव का चित्रण, ज्ञानी संत-महात्माओं का वैचारिक समागम, सांसारिक सुखों के ऊपर आध्यात्मिक चिंतन की प्रधानता और सृष्टि के मूल तत्त्व अथवा आदि कारण की खोज को दर्शाया गया है। पौराणिक कथाओं के प्रशंसक और संस्कृतनिष्ठ हिन्दी के शौकीन पाठकों को उपन्यास की कथा मंत्र मुग्ध करने वाली है। आम पाठकों के लिए भी बहुत से कथन नोट करने या जीवन में व्यवहार में अपनाये जाने लायक है।
© डॉ. संजू सदानीरा