कमला भसीन: भारतीय नारीवाद की वह आवाज़ जिसने पितृसत्ता की भाषा बदल दी
जब जब कहीं पर ग़ैर बराबरी, भेदभाव और अन्याय होता है तब तब वहां एक ऐसे आंदोलन की शुरुआत होती है जो समाज में क्रांतिकारी बदलाव लाए। कोई भी विचारशील व्यक्ति यह बर्दाश्त नहीं कर सकता कि दूसरों को उससे ज़्यादा प्राथमिकता दी जाए। समानता और न्याय एक ऐसा प्राकृतिक अधिकार है जो सभी को नैतिक रूप से मिलने चाहिए। लेकिन सदियों से विशेषाधिकार प्राप्त ताकतवर समूहों ने अपने से कमज़ोर को दबाया है और उनका हक़ छीना है। ऐसे में समय-समय पर अपना अधिकार हासिल करने के लिए आंदोलन हुए हैं। दुनिया में जितने भी बदलाव आए हैं इसी तरह के क्रांतिकारी आंदोलनों की वजह से आए हैं और सब के मूल में ग़ैर बराबरी ही रही है।
भारत में स्त्री को सदियों से ही पुरुषों की तुलना में काम अधिकार मिले हैं और दोयम दर्ज़े पर रखा गया है। कभी धर्म के नाम पर तो कभी परंपरा के नाम पर हमेशा अपने अधीन बनाए रखने की कोशिश की गई है। यहां तक कि त्याग और सेवा के नाम पर महिमामंडन करके शोषण करने को परंपरा और संस्कृति का नाम दिया गया है। इसके ख़िलाफ़ समय-समय पर बहुत सारे महान विभूतियों ने अपनी आवाज़ उठाई साथ ही समानता और न्याय के लिए अपना सारा जीवन समर्पित कर दिया।
ऐसे ही एक शख्सियत हैं कमला भसीन जिन्होंने नारीवाद को किताबों, सम्मेलनों और सिद्धांतों से बाहर निकाल कर ज़मीनी स्तर तक पहुंचाने का काम किया। भारत में आधुनिक नारीवाद का प्रतीक मानी जाने वाली कमला भसीन ने पितृसत्ता जैसी जटिल अवधारणा को व्यावहारिक रूप में ढालने का काम किया जिससे आम जनमानस को ठीक तरीके से समझ आए।
कमला भसीन कौन थीं?
24 अप्रैल 1946 को ब्रिटिश भारत के तहत पंजाब के शहीदानवाली में जन्मी कमला भसीन एशिया के प्रभावशाली नारीवादी कार्यकर्ताओं में से एक थीं। ग़ौरतलब है कि शहीदानवाली वर्तमान में पाकिस्तान के अंतर्गत आता है। अपने माता-पिता के 6 बच्चों में चौथे नंबर पर आने वाली कमला भसीन का शुरुआती जीवन विभाजन, विस्थापन और समायोजन के बीच गुजरा। सीमाओं के सवाल उनके लिए इतिहास की बात नहीं थी बल्कि निजी ज़िंदगी का हिस्सा थे।
इनके पिता राजस्थान में डॉक्टर थे इसलिए उनकी ज़्यादातर पढ़ाई राजस्थान में ही हुई। इन्होंने राजस्थान विश्वविद्यालय से स्नातकोत्तर की शिक्षा हासिल की और उसके बाद जर्मनी की यूनिवर्सिटी ऑफ़ म्युंस्टर से समाजशास्त्र की डिग्री ली। इसके बाद उन्होंने लगभग एक साल तक बैड होन्नेफ में जर्मन फाउंडेशन फॉर डेवलपिंग कंट्रीज के ओरिएंटेशन सेंटर में पढ़ाने का काम किया।
इसके कुछ समय बाद में वापस भारत लौट आईं और यहां ज़मीनी स्तर पर काम किया। राजस्थान के ग्रामीण इलाकों में विकास काम करते हुए उन्होंने देखा कि कैसे महिलाएं सिर्फ गरीबी नहीं बल्कि जाति और पितृसत्ता की दोहरी जंजीरों में जकड़ी हुई हैं। यहां काम करने के दौरान उनकी मुलाकात इनके (तत्कालीन) पति से हुई उनके प्रगतिशील विचारों से प्रभावित होकर इन्होंने उन्हें अपना जीवनसाथी बनाने का फ़ैसला किया। शादी के बाद उनके दो बच्चे हुए, जिनका जीवन बाद में काफ़ी तकलीफदेह गुज़रा। हालांकि इनकी शादीशुदा ज़िंदगी भी लंबे समय तक खुशहाल नहीं रही। इन्होंने घरेलू हिंसा और बेवफ़ाई तक झेली जिसकी वजह से इन्हें अपने पति से अलग होना पड़ा।
भारत में कमला भसीन का नारीवादी आंदोलन
भारत ही नहीं दक्षिण एशिया में स्त्री-वादी चेतना और नारीवाद को नई ऊर्जा देने के लिए कमला भसीन की उल्लेखनीय भूमिका रही है। वे सिर्फ़ नारीवादी लेखिका या कार्यकर्ता ही नहीं थीं बल्कि ऐसी शिक्षिका थीं जिन्होंने नारीवाद के कठिन सिद्धांतों को आम लोगों की रोज़मर्रा की ज़िंदगी से जोड़ा। इनका नारीवाद किताबों तक सीमित नहीं था बल्कि ज़मीन से जुड़ा हुआ था। भसीन का मानना था की नारीवाद सिर्फ़ अंग्रेजी में और बड़े शहरों के विश्वविद्यालयों, सेमिनारों तक नहीं रहना चाहिए बल्कि उसे देश के कोने-कोने तक पहुंचाना ज़रूरी है।
पितृसत्ता को डिकोड करने और नारीवाद को आम जनता तक पहुंचाने के लिए इन्होंने गीतों, नारों, कविताओं और कहानियों का सहारा लिया। इनका मानना था कि नारीवाद की जटिल अवधारणा को आम जनमानस तक पहुंचाने के लिए बोलचाल की भाषा का इस्तेमाल करना चाहिए।
कमला भसीन ने “पितृसत्ता”, “समानता” और “न्याय” जैसे जटिल विचारों को रोज़मर्रा की बोली में उतारकर सत्ता, हिंसा और भेदभाव के खिलाफ़ सवाल उठाए। इनका काम सिर्फ़ महिलाओं को जागरूक करने तक सीमित नहीं था बल्कि इन्होंने समानता के लिए संघर्ष में सभी जेंडर्स को शामिल किया। इन्होंने पुरुषों युवाओं और हाशिए पर मौजूद समुदाय को भी इस संवाद में शामिल किया।
गीतों, कविताओं, कार्यशालाओं और विमर्श के जरिए इन्होंने नारीवादी राजनीति को निडर और उम्मीद से भरा बनाया। पितृसत्ता के दुष्प्रभावों के बारे में बात करते हुए इन्होंने न सिर्फ़ महिलाओं की बात की बल्कि किस तरह से पितृसत्ता पुरुषों को नुकसान पहुंचती है उस पर भी काफ़ी बल दिया। इसके साथ ही इन्होंने पितृसत्ता और जाति के गठजोड़ पर भी लोगों का ध्यान खींचा।
कमला भसीन ने महिलाओं के अधिकारों के लिए खुलकर बोलने के साथ-साथ कहीं-कहीं पितृसत्ता और पुरुषों को अलग-अलग रखा है। वे अक्सर कहा करती थीं कि पितृसत्ता का ख़ामियाजा पुरुषों को भी भुगतना पड़ता है। एक हद तक तो यह बात सही है लेकिन पूरी तरह नहीं क्योंकि किसी भी ख़ामियाजे के बावजूद पितृसत्ता के प्रिविलेज हर हाल में पुरुषों को मिलते ही हैं। उनको मिली सुविधाएं उनके विक्टिम होने से बहुत ज़्यादा हैं, जबकि महिलाओं के साथ इसका एकदम उल्टा है। जेंडर के नाम पर सुविधाएं नगण्य और बंदिशें व मुसीबतें बहुत ज्यादा!
अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कमला भसीन का योगदान
संयुक्त राष्ट्र के साथ लगभग दो दशकों से ज़्यादा समय तक काम करते हुए उन्होंने दुनिया भर की विकास नीतियों, कार्यक्रमों और योजनाओं को नज़दीक से देखा और समझा कि विकास योजनाएं अक्सर महिलाओं को सिर्फ लाभार्थी मानते हैं जबकि निर्णय लेने में उन्हें कोई भागीदारी नहीं दी जाती। भसीन का मानना था कि जेंडर जस्टिस के बिना विकास कोई मायने नहीं रखता। 2002 में इन्होंने संयुक्त राष्ट्र की अपनी नौकरी छोड़कर पूरी तरह से सामाजिक आंदोलन में जुट गईं।
कमला भसीन ने ‘संगत’ नाम के एक नारीवादी नेटवर्क की स्थापना की। यह एक दक्षिण एशियाई नारीवादी मंच है जो दक्षिण एशिया के देश हो जैसे कि भारत, पाकिस्तान, नेपाल, बांग्लादेश और श्रीलंका के नारीवादी कार्यकर्ताओं को आपस में जोड़ता है। इसका काम मुख्य रूप से नारीवादी नेतृत्व को विकसित करना, जेंडर एजुकेशन और जेंडर सेंसिटिविटी ट्रेनिंग उपलब्ध कराना है। इसके माध्यम से कमला भसीन ने सीमा पार भी एकजुटता पर काम किया। इनका मानना था कि राष्ट्रवाद के नाम पर अक्सर महिलाओं की आवाज़ दबा दी जाती है इसलिए शांति और लोकतंत्र के लिए नारीवाद बेहद ज़रूरी है।
कमला भसीन का नारीवादी लेखन
आम बोलचाल की भाषा में लिखे गए लेखों, गीतों कविताओं के लिए कमला भसीन बेहद लोकप्रिय हैं। इन्होंने हिंदी और उर्दू की आसान भाषा में पितृसत्ता, जेंडर और समानता जैसे मुद्दों को जनता तक पहुंचा। इनकी What Is Patriarchy, Understanding Gender और ऋतु मेनन के साथ लिखी गई Borders & Boundaries: Women in India’s Partition जैसी किताबें आज भी स्कूलों, कॉलेजों, विश्वविद्यालय और जेंडर वर्कशॉप्स में पढ़ाई और ट्रेनिंग का आधार बनी हुई हैं। इनकी एक लोकप्रिय कविता “क्योंकि मैं लड़की हूँ, मुझे पढ़ना है” लड़कियों की शिक्षा समानता और सम्मान की सशक्त अभिव्यक्ति के रूप में जानी जाती है।
1995 इन्होंने बेहद लोकप्रिय नारे ‘आज़ादी’ नारे को नारीवादी रूप दिया। जो जल्दी ही पितृसत्ता, ग़ैर बराबरी, हिंसा, जाति धर्म और जेंडर जैसी जकड़न से मुक्ति के रूप में भारत समेत दक्षिण एशियाई देशों में नारीवादी आंदोलन का प्रतीक बन गया। कमला भसीन का नारीवाद सामूहिक एकता, उम्मीद और उत्सव से भरा हुआ था। इसमें प्रतिरोध के साथ-साथ बदलाव के रास्ते भी शामिल थे। 25 दिसंबर 2021 को कमला भसीन ने दुनिया को हमेशा के लिए अलविदा कह दिया से उनके विचारों और कार्यों की प्रासंगिकता दिनों दिन बढ़ती जा रही है।
स्रोत:
https://en.wikipedia.org/wiki/Kamla_Bhasin
© प्रीति खरवार



