डॉ. मीतू खुराना Dr Mitu Khurana

 

डॉ. मीतू खुराना: लिंग चयन और कन्या भ्रूण हत्या के  ख़िलाफ़ डॉक्टर का संघर्ष

 

कन्या पूजन वाले इस देश में कन्या भ्रूण हत्या जैसी कुरीति भी उतनी ही आम है। 21वीं सदी के डिजिटल इंडिया में लिंग भेद और लिंग निर्धारण का जारी रहना यह दिखाता है कि समाज में आमूलचूल बदलाव की जरूरत है। 1994 में कन्या भ्रूण हत्या को रोकने के लिए बनए ‘गर्भधारण पूर्व और प्रसवपूर्व निदान तकनीक’ (Pre-Conception and Pre-Natal Diagnostic Techniques- PCPNDT) के बावजूद आज भी इसे रोका नहीं जा सका है।

इस सबके जड़ में है- लिंग भेद जिसके तहत स्त्री को पुरुष से कमतर समझा जाता है और दोयम दर्ज़े पर रखा जाता है। कन्या भ्रूण हत्या को ख़त्म करने के लिए बहुत सारे समाज सुधारकों ने अपना योगदान दिया, इसी में से एक हैं- डॉक्टर मीतू खुराना। ख़ुद बच्चों का डॉक्टर होने के बावजूद उन्हें समाज की उसी रूढ़िवादी सोच का सामना करना पड़ा, जिसकी वजह से उन्होंने इस भेदभाव के ख़िलाफ़ लड़ाई लड़ने का फैसला किया।

 

कौन हैं डॉक्टर मीतू खुराना?

मीतू खुराना का जन्म 19 मार्च 1975 को दिल्ली में डॉक्टर एसी खोसला (पिता) और कमलेश खोसला (मां) के घर हुआ। बचपन से ही पढ़ाई लिखाई का अच्छा माहौल मिला। जिससे आगे चलकर डॉक्टर के तौर पर इन्होंने दिल्ली के डॉक्टर राम मनोहर लोहिया अस्पताल में काम किया। 2004 में उनकी शादी डॉक्टर कमल खुराना के साथ हुई। शुरू में सब कुछ ठीक रहा लेकिन गर्भावस्था के दौरान इन्हें बेटा पैदा करने के दबाव से गुज़रना पड़ा। एक पढ़ी-लिखी डॉक्टर होने के बावजूद उन्हें अपने लिए फ़ैसले लेने के लिए संघर्ष करना पड़ा।

डॉक्टर खुराना की मर्ज़ी के ख़िलाफ़ इनकी जानकारी के बिना जयपुर के एक निजी क्लीनिक में लिंग परीक्षण कराया गया। जब जांच में पता चला कि उनके गर्भ में दो जुड़वां बेटियां पल रही हैं तो उसी दिन से इनके ऊपर मानसिक प्रताड़ना बढ़ती गई। इन्हें कम से कम एक बेटी का गर्भपात कराने के लिए मजबूर किया गया। घर लौटने पर इन्हें अपने पति और ससुराल वालों से घरेलू हिंसा का सामना करना पड़ा।

एक बार तो जानबूझकर गर्भपात के इरादे से इनके पति ने इन्हें सीडीओ से धक्का दे दिया। इसके बाद इन्हें बिना खाना और दवाई के कमरे में बंद कर दिया गया। इन सारी घटनाओं की वजह से मीतू खुराना अंदर से टूट गईं और डिप्रेशन में चली गईं इसके बावजूद इन्होंने हिम्मत नहीं हारी और रिद्धि और रायका नाम की दो जुड़वा बेटियों को जन्म दिया।

 

PCPNDT एक्ट के तहत मीतू खुराना की क़ानूनी लड़ाई

2008 में नीतू ने दिल्ली उच्च न्यायालय में एक याचिका दायर की जिसमें उन्होंने PCPNDT एक्ट के तहत अपने पति, ससुराल वालों और संबंधित डॉक्टर पर ग़ैर क़ानूनी तरीके से लिंग परीक्षण का आरोप लगाया। इसके साथ ही इस अधिनियम के तहत मामला दर्ज़ करने वाले देश की पहली महिला बन गईं। इनका आरोप था कि प्राइवेट क्लीनिक में अवैध रूप से लिंग निर्धारण किया जाता है और लिंग परीक्षण के नतीजे उजागर कर चिकित्सा की गोपनीयता का उल्लंघन किया जाता है।

इसके अलावा गर्भ में लड़की का पता चलने पर इन पर गर्भपात के लिए मानसिक दबाव बनाया गया। हालांकि 2015 में हाईकोर्ट में पर्याप्त सबूत न होने का हवाला देते हुए केस ख़ारिज कर दिया लेकिन मीतू ने हार नहीं मानी और उन्होंने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। लेकिन उन्हें यहां भी निराशा मिली और सुप्रीम कोर्ट ने उनका केस ख़ारिज कर दिया।

हालांकि केस ख़ारिज हो गया लेकिन डॉक्टर मीतू खुराना के इस संघर्ष ने देशभर में कन्या भ्रूण हत्या और लिंग परीक्षण पर राष्ट्रीय बहस शुरू कर दिया। सवाल यह था कि जब एक उच्च शिक्षित और आत्मनिर्भर डॉक्टर को न्याय नहीं मिला तो आम महिला की लड़ाई कितनी मुश्किल होगी? हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट से न्याय न मिलने के बावजूद नीतू रुकीं नहीं और उन्होंने स्कूल, कॉलेज और सार्वजनिक मंचों पर जाकर व्यक्तिगत स्तर पर आंदोलन की शुरुआत कर दी। 19 मार्च 2020 को अपनी मृत्यु के ठीक पहले तक वे जगह-जगह जाकर वे लोगों में लिंग परीक्षण, लिंग निर्धारण और कन्या भ्रूण हत्या के ख़िलाफ़ जागरूकता फैलाने का काम करती रहीं।

 

संघर्ष का सामाजिक असर और बदलाव

मीतू खुराना ने लिंग परीक्षण और कन्या भ्रूण हत्या के ख़िलाफ़ जमीनी स्तर पर बदलाव लाने के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया। इन्होंने “सेव द गर्ल चाइल्ड” मिशन में सक्रिय भागीदारी की। उनके प्रयासों से ग्रामीण क्षेत्रों में अल्ट्रासाउंड मशीनों की निगरानी बढ़ गई। उनके योगदान को देखते हुए आमिर खान के पॉपुलर टीवी शो ‘सत्यमेव जयते’ में भी इन्हें आमंत्रित किया गया। स्कूलों में जेंडर इक्वलिटी वर्कशॉप के लिए डॉक्टर नीतू खुराना को एक टीवी चैनल के द्वारा ‘आइडिया सिटिजन जर्नलिस्ट’ पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया।

इसके साथ ही मीतू खुराना डॉक्यूमेंट्री ‘इट्स अ गर्ल: द थ्री डेडलिएस्ट वर्ड्स इन द वर्ल्ड’ में भी नज़र आईं। इनके अभियानों की वजह से उत्तर भारत के कई इलाकों में लिंग परीक्षणों में कमी देखी गई। 2020 में स्वास्थ्य मंत्रालय ने इसके लिए ऑनलाइन रिपोर्टिंग सिस्टम लागू किया, जोकि आने वाले समय में काफ़ी असरदार रहा। इसके अलावा 2021 में सुप्रीम कोर्ट ने PCPNDT एक्ट के तहत डॉक्टरों की सख़्त मॉनिटरिंग के दिशानिर्देश जारी किए। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर UN Women ने भी 2023 में मीतू खुराना को “ग्रासरूट एक्टिविस्ट” के रूप में सम्मानित किया।

द हिंदू में मीतू कहती हैं, “भारत में कन्या भ्रूण हत्या एक फलते-फूलते उद्योग के रूप में प्रचलित है। यूनिसेफ की एक रिपोर्ट के अनुसार, यहां प्रतिदिन 7,000 कन्या भ्रूण हत्या के मामले होते हैं। यह प्रथा व्यापक रूप से फैली हुई है। अल्ट्रासाउंड मशीनों और अन्य आधुनिक तकनीकों से लैस निजी क्लीनिक कानून का घोर उल्लंघन करते हुए खूब मुनाफा कमा रहे हैं। हर जगह लोग अजन्मे बच्चे का लिंग जानने के लिए पैसे दे रहे हैं और लड़की का गर्भपात कराने के लिए और भी अधिक पैसे दे रहे हैं। मोबाइल क्लीनिक जैसी सुविधाओं के माध्यम से यह तकनीक दूरदराज के इलाकों तक भी पहुंच चुकी है।”

आगे का रास्ता

डॉ. मीतू खुराना की कहानी साहस, संघर्ष और जिजीविषा की बेहतरीन मिसाल है। इन्होंने सिखाया कि सिर्फ़ एक व्यक्ति भी बदलाव का ज़रिया बन सकता है। हालांकि संघर्ष कुछ साहस का मिसाल देते हुए महिमा मंडित किया जाता है लेकिन समाज को यह सोचना चाहिए कि किसी को इतना झेलने की ज़रूरत ही क्यों पड़े?

भेदभाव, उत्पीड़न और संघर्ष किसी भी सभ्य समाज का परिचायक नहीं हो सकता। पूरी दुनिया में मानव अधिकार और देश में संविधान के माध्यम से मिले समानता के मौलिक अधिकारों के बावजूद 21वीं सदी में इस तरह का भेदभाव निंदनीय है। इसे जितनी जल्दी मुमकिन हो ख़त्म किया जाना चाहिए। हर व्यक्ति बिना किसी शर्त ऐसी ज़िंदगी का हक़दार होता है जिसे वह अपनी शर्तों पर अपने हिसाब से जी सके।

© प्रीति खरवार

 

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Priti Kharwar

प्रीति खरवार एक स्वतंत्र लेखिका हैं, जो शोध-आधारित हिंदी-लेखन में विशेषज्ञता रखती हैं। बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय से मनोविज्ञान में परास्नातक प्रीति सामान्य ज्ञान और समसामयिक विषयों में विशेष रुचि रखती हैं। निरंतर सीखने और सुधार के प्रति समर्पित प्रीति का लक्ष्य हिंदी भाषी पाठकों को उनकी अपनी भाषा में जटिल विषयों और मुद्दों से सम्बंधित उच्च गुणवत्ता वाली अद्यतन मानक सामग्री उपलब्ध कराना है।

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