त्यागपत्र उपन्यास के आधार पर प्रमोद की चारित्रिक विशेषताएं

त्यागपत्र उपन्यास के आधार पर प्रमोद की चारित्रिक विशेषताएं

 

जैनेंद्र हिंदी कथा साहित्य में एक बड़ा नाम हैं। उन्होंने अपने दार्शनिक विचारों, गहन चिंतनशीलता और नवीन सामाजिक दृष्टि से हिंदी उपन्यास एवं कहानी विधा को समृद्ध किया। दो चिड़ियां, वातायन, पाजेब, फांसी, चोर और तत्सत् उनकी प्रसिद्ध कहानियां हैं। कल्याणी, सुखदा, मुक्तिबोध, विवर्त एवं त्यागपत्र इनके लोकप्रिय उपन्यास हैं।

त्यागपत्र जैनेंद्र का एक ऐसा उपन्यास है जिसने दर्शन, चिंतन एवं स्त्री विमर्श के क्षेत्र में नई संभावनाओं का सृजन किया। इसी उपन्यास त्यागपत्र में प्रमोद एक सशक्त पात्र है। मृणाल और प्रमोद-इन्हीं दोनों के मध्य संवादों के माध्यम से इसका मूल प्रतिपाद्य स्पष्ट होता है। प्रमोद के व्यक्तित्व की महत्त्वपूर्ण विशेषताओं का वर्णन निम्न बिंदुओं के माध्यम से किया जा सकता है..

1.भतीजे के रूप में यादगार चरित्र

उपन्यास में प्रमोद मृणाल का भतीजा है। इनके बीच सिर्फ बुआ भतीजे का परंपरागत संबंध नहीं है। दोनों संवेदना के स्तर पर अत्यंत गहराई से जुड़े हैं। प्रमोद शारीरिक/लैंगिक रूप से एक किशोर अथवा युवा लड़का होता है। उपन्यास में उसे एक लड़के या पुरुष की बजाय अत्यंत भावुक, समझदार और भरोसेमंद इंसान के रूप में चित्रित किया है। समाज द्वारा निर्मित एक कठोर पुरुष की छाप प्रमोद पर नहीं है। वह एक आदर्श इंसान और भतीजे के रूप में दर्शाया गया है।

2.मृणाल का एकमात्र विश्वसनीय सहारा

त्यागपत्र उपन्यास में प्रमोद ही वह पात्र है जिस पर मृणाल आश्रित (सहानुभूति स्तर पर) है। यह प्रमोद की योग्यता है कि वह इस हद तक विश्वसनीय है। वह मृणाल की सभी बातों और निर्णयों का इकलौता साक्षी है।

3.संवेदनशील और जिज्ञासु

प्रमोद अपनी उम्र के अन्य बालकों की तुलना में बहुत अधिक संवेदनशील है। जानने और समझने की उसकी प्रवृत्ति बहुत प्रबल है। घटनाओं का होना देखकर वह उनके कारणों और परिणामों तक का विवेचन करता है या उसमें इसके लिए छटपटाहट है।

4.स्वाभाविक विकास

यह उपन्यास पूरी तरह फ्लैशबैक में चलता है। अधिकांश हिस्से में प्रमोद के आत्म चिंतन के माध्यम से घटनाएं चलती हैं। पूरे उपन्यास में अनेक ऐसे प्रसंग हैं जहां प्रमोद अपने ही व्यवहार अथवा निर्णय को प्रश्नों के दायरे में रखता है। वर्तमान में उसे अपने पुराने फ़ैसले या व्यवहार पर क्षोभ होता है और अब उसे बदलना चाहता है ,ऐसे तमाम चित्र उसके चरित्र के स्वाभाविक विकास को दर्शाते हैं।

5.विद्रोही और जिद्दी

प्रमोद किसी भी रूप में लकीर का फ़कीर नहीं था। बुआ का फूफा के साथ न जाने का मन देखकर वह साफ कह देता है कि अगर बुआ का जाने का मन नहीं है तो न जाए बस। इस “बस” पर वह ज़ोर देता है। उसके अनुसार न जाने की काफ़ी वज़हें हैं बाकी वजह जानना बेमानी है। इतना काफ़ी है कि बुआ का मन नहीं है। मां-बाप की हर बात को आंख मुंह कर नहीं मानने की अपनी ज़िद पर वह हमेशा क़ायम रहता है। मृणाल के बार-बार मना करने के बाद भी वह न सिर्फ़ उन्हें ढूंढने जाता है बल्कि इसी ज़िद के कारण उसकी सगाई भी टूट जाती है।

6.सांसारिक सफलताओं से मोहभंग

प्रमोद समाज के बनाए खांचों और उसकी सफलता और प्रसिद्धि की व्यर्थता को अच्छी तरह जान जाता है। ऊंची तनख्वाह पाने के लिए किए जाने वाले नीचे कामों की उसे खूब समझ है। वकील, जज और बड़े अधिकारी कैसे गोरखधंधे कर कर अपनी झूठी शान और प्रतिष्ठा पर गर्व करते हैं यह प्रमोद जानता है। इसी का नतीजा है कि बुआ की मृत्यु के बाद वह अपनी जजी (जज की कुर्सी/पोस्ट) से इस्तीफ़ा दे देता है। इस्तीफ़ा या त्यागपत्र देने की घटना के साथ ही उपन्यास फ्लैशबैक में खुलना शुरू होता है। इसी घटना के ऊपर उपन्यास का शीर्षक आधारित है।

कुल मिलाकर स्पष्ट है कि प्रमोद त्यागपत्र ही नहीं उपन्यास संसार का एक विशिष्ट चरित्र है। उसकी बुद्धि, उसका लगाव, उसका तनाव, उसकी सोच, त्याग देने की प्रवृत्ति उसके चरित्र की महत्त्वपूर्ण विशेषताएं हैं।

© डॉ. संजू सदानीरा

 

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Dr. Sanju Sadaneera

डॉ. संजू सदानीरा एक प्रतिष्ठित असिस्टेंट प्रोफेसर और हिंदी साहित्य विभाग की प्रमुख हैं।इन्हें अकादमिक क्षेत्र में बीस वर्षों से अधिक का समर्पित कार्यानुभव है। हिन्दी, दर्शनशास्त्र, मनोविज्ञान विषयों में परास्नातक डॉ. संजू सदानीरा ने हिंदी साहित्य में नेट, जेआरएफ सहित अमृता प्रीतम और कृष्णा सोबती के उपन्यासों पर शोध कार्य किया है। ये "Dr. Sanju Sadaneera" यूट्यूब चैनल के माध्यम से भी शिक्षा के प्रसार एवं सकारात्मक सामाजिक बदलाव हेतु सक्रिय हैं।

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