पराया शहर कहानी का सारांश

 

पराया शहर कहानी का सारांश

 

पराया शहर कहानी के शीर्षक की सार्थकता पर प्रकाश डालिए।

अथवा

पराया शहर कहानी के मूल भाव को स्पष्ट करें ।

पराया शहर कहानी प्रख्यात कथा लेखक कमलेश्वर की लेखनी से रचित एक मार्मिक कहानी है । कमलेश्वर एक बहुमुखी प्रतिभाशाली और नई कहानी आंदोलन के प्रणेता साहित्यकारों में से एक हैं। इनकी कहानी गांवों तथा कस्बों के आम आदमियों की ज़िंदगी को पूरी विश्वसनीयता के साथ उभारती है। व्यक्ति के मन की ऊहापोह और दाम्पत्य संबंधों पर भी इनकी कहानियां गहरा प्रकाश डालती हैं । इन्हें कस्बे का कहानीकार कहा जाता है, जैसे मोहन राकेश को महानगर का कथाकार माना जाता है।

 

पराया शहर कहानी कहानीकार कमलेश्वर की प्रतिनिधि कहानियां में से एक है। समीक्ष्य कहानी का विषय नितांत अछूता और मर्मस्पर्शी है, जिसे मनोवैज्ञानिक वातावरण में अंजाम तक पहुंचाया गया है। कहानी आधुनिक मानव के अकेलेपन, परायेपन और घुटन की नितांत निजी समझी जाने वाली समस्याओं की परतें मनोविश्लेषणात्मकता सहित उधेड़ती हैं।

आज मनुष्य पंख विहीन परिंदा है जो आसमान की ऊंचाई तो छू रहा है लेकिन घर की उष्मा से वंचित है। आज भी मनुष्य के जीवन में रिश्ते इतनी अहमियत रखते हैं है कि उनके बिना उसे जीवन खुद रिसते जख्म-सा दुखता है।

कहानी में पिता पुत्र दोनों अकेलेपन की सजा भुगत रहे हैं। पिता इस समस्या से निजात पाने के लिए एक युवती को उठाकर ले आता है और उससे विवाह कर लेता है । विवाह चूंकि समाज सम्मत रीति रिवाज के अनुसार नहीं होता इसलिए पिता समाज की नजरों से गिरकर परायापन भोग रहा है। बेटा पिता के इस कृत्य से इस कदर भयभीत और टूटा हुआ है कि शहर छोड़ कर भाग जाता है ।

पिता अपनी नई पत्नी के साथ खुश है परंतु असामाजिकता की दहलीज़ पर खड़ा है । बेटा पंद्रह वर्षों से दूसरे शहर में जीवन यापन कर रहा है। यह जीवन यापन की विवशता ही महज नए शहर में रहने का कारण है न कि शहरी परिवेश और मित्र !

बीच-बीच में पिता-पुत्र के रिश्तों की बर्फ पिघलती है कि अचानक एक नया हादसा घटित हो जाता है और फिर वह रिश्ता दम तोड़ने लगता है ।

कहानी में परायपन इस कदर हावी है कि पढ़ते-पढ़ते पाठक का मन भी परायेपन के दुखद एहसास से भर जाता है। यह परायापन कथा नायक को तब और ज्यादा सालता है जब कोई त्यौहार आता है। पिता के कारनामों के कारण पुश्तैनी शहर छूट चुका है और नए शहर में बचपन नहीं गुजरा इसलिए उसके लिए दोनों जगह पराई होती है। यह परायापन पिता और पुत्र दोनों के जीवन में लगातार बढ़ता ही जाता है । पिता के लिए उस शहर के लोगों के दिल में कोई जगह नहीं होने के कारण पिता अपने ही शहर से कट चुका है और बेटा अपने पिता की वजह से कट चुका है ।

कहानीकार ने एक जगह लिखा है कि इंसान के दो ही शहर अपने होते हैं एक वह जहां पर वह जन्म लेता है और पलता- बढ़ता है और दूसरा वह जहां इंसान रोजी-रोटी के लिए बस जाता है और यहीं पर आकर कथा नायक के मन में यह टीस उभरती है कि उसका तो इन दोनों में से कोई शहर अपना नहीं हो सका।

इस प्रकार से पराया शहर कहानी इंसान के जीवन के परायेपन के एहसास को पूरी गहराई से उभारती है ।सारे घटनाक्रम के अवलोकन के बाद सिद्ध होता है की कहानी का शीर्षक “पराया शहर” पूरी तरह से सटीक और सार्थक है।

 

© डॉ. संजू सदानीरा

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Dr. Sanju Sadaneera

डॉ. संजू सदानीरा एक प्रतिष्ठित असिस्टेंट प्रोफेसर और हिंदी साहित्य विभाग की प्रमुख हैं।इन्हें अकादमिक क्षेत्र में बीस वर्षों से अधिक का समर्पित कार्यानुभव है। हिन्दी, दर्शनशास्त्र, मनोविज्ञान विषयों में परास्नातक डॉ. संजू सदानीरा ने हिंदी साहित्य में नेट, जेआरएफ सहित अमृता प्रीतम और कृष्णा सोबती के उपन्यासों पर शोध कार्य किया है। ये "Dr. Sanju Sadaneera" यूट्यूब चैनल के माध्यम से भी शिक्षा के प्रसार एवं सकारात्मक सामाजिक बदलाव हेतु सक्रिय हैं।

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