मोहल्ले वाले कहानी का सारांश अथवा मूल भाव

मोहल्ले वाले कहानी का सारांश अथवा मूल भाव

मोहल्ले वाले कहानी हर्ष दर्शन सहगल द्वारा रचित है। उनका जन्म 26 फरवरी 1935 को कुंदियाँ, जिला मियाँवाली (अब पाकिस्तान) में हुआ था। इनकी कर्म स्थली और आगामी जीवन यात्रा राजस्थान में रही।

सहगल जी पहले रेलवे विभाग में नौकरी करते थे। सेवानिवृत्ति के उपरांत साहित्य रचना करना प्रारंभ किया। संभवतः साहित्य उनका पहला प्यार था, जिसे पाने के लिए उन्हें अपनी सेवानिवृत्ति का इंतजार करना पड़ा। वे साहित्य के गलियारों की राजनीति से दूर रहकर साहित्य रचना में संलग्न रहते हैं। अपने रचना कर्म के लिए इन्हें राजस्थान साहित्य अकादमी द्वारा पुरस्कृत भी किया गया । अन्य अनेक पुरस्कारों और सम्मानों से भी इन्हें नवाजा गया।

अपने सहज लेखन से हिन्दी के पाठकों में एक विश्वास पैदा करने का अच्छा प्रयास उन्होंने किया है। जीवन के लगभग हर क्षेत्र और रुप को इन्होंने अपने सृजन में स्थान दिया।

मोहल्ले वाले कहानी एक वातावरण प्रदान कहानी है। इस कहानी में मोहल्ले वाले लोगों की मानसिकता का जैसा वास्तविक चित्रण लेखक द्वारा किया गया है वह कहानी के यथार्थ को लक्षित करता है।

कहानी के कथानक में ग़जब की विश्वसनीयता दिखाई पड़ती है जैसे मोहल्ले के लोगों का सुनाम से सहानुभूति प्रकट करना बहुत ही आम-सा दृश्य है। मोहल्ले वालों के परिवार निम्न मध्यम वर्ग के हैं जिनके पास शब्दों की सहानुभूति के सिवा और कुछ नहीं है या फिर जो सहानुभूति पर शब्दों से ज्यादा कुछ खर्च नहीं कर सकते।

लेखक ने कहानी के माध्यम से लोगों की मनोवृतियों का चित्रण भी सहजता से किया है। हमारे समाज में किसी के साथ किसी दुखदाई घटना के घटित होने पर लोग सहानुभूति प्रकट करते हैं। यह लोगों की मनोवृत्ति होती है या सामाजिक व्यवहार से लोग ऐसा आदतन करने लगते हैं।

ऐसा ही मोहल्ले के लोगों का सुनाम के साथ व्यवहार है । सुनाम के पिता की मृत्यु होने पर उसके हिस्से की सारी संपत्ति सुनाम के बड़े भाई सुनीते एवं सुनाम के भतीजे जोकरे और पोकरे ने हथिया ली। सुनाम को कुछ नहीं मिला। यह धन के लिए परिवार के लोगों की कुटिल मनोवृति का परिचायक है ।

मनुष्य की मनोवृत्ति ही उसे अच्छा या बुरा बना देती है। सुनाम के साथ उसके भाई, भतीजे और भाभी ने बुरा व्यवहार किया लेकिन सुनाम अपने बड़े भाई को पिता तुल्य समझता है।

कहानी में सुनाम अपने उसी बड़े भाई की मृत्यु होने पर गांव आया था। उसके आने से भतीजे व भाभी खुश नहीं थे। उन्होंने आधी रात को ही सुनाम, उसकी बीमार पत्नी एवं बीमार बच्चे को घर से निकाल दिया। इस घटना के बाद मोहल्ले के लोग सुनाम को घेरे रहे ।जब वह वापस जाने की कहता तो लोग उसे तेरहवीं तक रुकने का कहते हैं।

मोहल्ले वालों की यह सहानुभूति केवल शाब्दिक थी,उससे आगे कुछ नहीं था। बार बार रुकने को बोलने वालों में से किसी ने भी उसे अपने घर में रुकने का प्रस्ताव नहीं दिया।

मोहल्ले के लोगों की शाब्दिक सहानुभूति पाकर सुनाम को कुछ धैर्य हुआ। उसने भी सोचा कि रुकने से शायद कुछ समझौता हो जाए लेकिन कुछ नहीं हुआ।

मोहल्ले वालों से उसे केवल दिखावटी सहानुभूति और समर्थन मिला। अंत में सुनाम अपनी बीमार पत्नी और बीमार बच्चों को लेकर गाड़ी में बैठ जाता है। जाने से पहले सुनाम ने पहलवान हलवाई जिसने बच्चे के लिए दूध भेजा था और डॉक्टर जिसने इंजेक्शन लगाया था – दोनों के पैसे देकर उनका भी हिसाब कर दिया ।

कहानी वातावरण प्रधान है। सुनाम का गांव पहुंचना,भतीजे के द्वारा उसे घर से निकाल दिया जाना, तब मोहल्ले के लोगों का उसे घेर कर बैठ जाना सब फिल्म के दृश्य के समान आंखों के सामने दिखाई पड़ता है।

उस समय सुनाम मोहल्ले के तमाम लोगों तथा नाते-रिश्तेदारों की असीम अनुकंपा और सहानुभूति के बोझ से इस प्रकार दब गया कि उनसे दूर जाना उसके बस की बात नहीं रही। सबका आग्रह उसे सच्चा आग्रह लग रहा था।

मोहल्ले के लोग परिस्थितियों के अनुसार ही सुनाम से सहानुभूति दिखाते रहे जिससे अपनेपन की भावना रहती है लेकिन इरादा नहीं! आदमी टूटता भी नहीं और जुड़ता भी नहीं। हां,धीरे-धीरे एक भ्रम टूटता है और कड़वी हकीकत से सामना होता है।

कहानी के लेखक हर्षदर्शन सहगल ने अपने आसपास घटित होने वाली एक आम सी घटना को कहानी का विषय बनाया है। पारिवारिक तनाव, संपत्ति के कारण भाइयों में फूट और धोखाधड़ी उसके बाद आस-पड़ोस के लोगों की प्रतिक्रिया, झूठी सहानुभूति और व्यक्ति का अकेलापन इस कहानी का मूल भाव है।

 

© डॉक्टर संजू सदानीरा

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Dr. Sanju Sadaneera

डॉ. संजू सदानीरा एक प्रतिष्ठित असिस्टेंट प्रोफेसर और हिंदी साहित्य विभाग की प्रमुख हैं।इन्हें अकादमिक क्षेत्र में बीस वर्षों से अधिक का समर्पित कार्यानुभव है। हिन्दी, दर्शनशास्त्र, मनोविज्ञान विषयों में परास्नातक डॉ. संजू सदानीरा ने हिंदी साहित्य में नेट, जेआरएफ सहित अमृता प्रीतम और कृष्णा सोबती के उपन्यासों पर शोध कार्य किया है। ये "Dr. Sanju Sadaneera" यूट्यूब चैनल के माध्यम से भी शिक्षा के प्रसार एवं सकारात्मक सामाजिक बदलाव हेतु सक्रिय हैं।

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