विश्व ओज़ोन दिवस 16 सितंबर 2025: महत्त्व, इतिहास और संरक्षण के उपाय (World Ozone Day in Hindi)
सूरज हमारी धरती पर मौजूद सभी जीवों के जीवन का आधार है। यह न सिर्फ़ हमें रोशनी और ऊर्जा देता है बल्कि हमारे वजूद के लिए भी सबसे ज़रूरी है। लेकिन इसी सूरज की रोशनी अगर सीधे धरती पर पड़े तो यह जीवन के लिए उतना ही घातक भी साबित हो सकता है। सूरज की इसी ख़तरनाक पराबैंगनी (UV) करने से हमारी सुरक्षा करता है वायुमंडल में मौजूद ओज़ोन परत। इसके महत्त्व को देखते हुए हर साल पूरी दुनिया भर में विश्व ओज़ोन दिवस 16 सितंबर को दिवस मनाया जाता है।
इसके माध्यम से ओज़ोन परत के प्रति जागरूकता फैलाई जाती है और इसके संरक्षण के लिए वैश्विक स्तर पर प्रयास किए जाते हैं। विश्व ओज़ोन दिवस 1987 में किए गए मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल की याद में मनाया जाता है जब ओज़ोन परत को बचाने के लिए वैश्विक स्तर पर संकल्प लिया गया था।
ओज़ोन परत क्या है और क्यों ज़रूरी है?
पृथ्वी के वायुमंडल के समताप मंडल (Stratosphere) में लगभग 15 से 35 किलोमीटर की ऊँचाई पर ओजोन परत पाई जाती है जिसमें ओजोन गैस (O₃) का संकेंद्रण होता है। यह सूरज से आने वाले हानिकारक अल्ट्रावायलेट किरणों को सोख लेती है और पृथ्वी की सतह तक सीधे पहुंचने से रोकती है। ग़ौरतलब है कि सूर्य से आने वाली यह अल्ट्रावायलेट खेलने मानव पेड़-पौधे और जीव जंतुओं के लिए बेहद खतरनाक होती हैं।
इस तरह से देखा जाए तो ओज़ोन परत पृथ्वी की सुरक्षा के लिए एक ढाल की तरह काम करती है। यह मनुष्य के स्वास्थ्य, पेड़ पौधों और जीव जंतुओं के साथ ही पारिस्थितिक तंत्र को बनाए रखने के लिए बेहद ज़रूरी है। सूरत से आने वाली अल्ट्रावायलेट किरणें त्वचा कैंसर, आंखों की बीमारी का ख़तरा बढ़ा देती हैं और रोग प्रतिरोधक क्षमता को भी कमजोर कर सकती हैं। इसके अलावा यह फसलों के विकास पर भी असर डालता है जिससे उत्पादकता कम होने की आशंका बढ़ जाती है।
समुद्रों, नदियों, झीलों इत्यादि में रहने वाले जलीय जीवों के लिए भी अल्ट्रावायलेट किरणें ख़तरनाक हैं। यह जैव विविधता के लिए भी नुकसानदेह है, जो खाद्य श्रृंखला का आधार है। इस प्रकार मनुष्यों, पेड़ पौधों समेत सभी जीव जंतुओं और पर्यावरण के संतुलन को बनाए रखने के लिए ओज़ोन परत बेहद ज़रूरी है।
क्या है ओज़ोन संरक्षण से जुड़ा मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल?
20वीं सदी तक आते-आते वैज्ञानिकों ने देखा कि ओज़ोन परत कमजोर हो रही है जिसे उन्होंने ओज़ोन छिद्र का नाम दिया। यहां से होकर सूरज की ख़तरनाक अल्ट्रावायलेट किरणें धरती पर प्रवेश कर रही हैं जिससे यहां के पर्यावरण पर बुरा असर पड़ रहा है। जिसकी सबसे बड़ी वजह थी इंसानों द्वारा इस्तेमाल की जा रही क्लोरोफ्लोरोकार्बन (CFC) जैसी गैसें। इसके बाद 22 मार्च 1985 में ओज़ोन परत को बचाने के लिए विएना कन्वेंशन को औपचारिक रूप से अपनाया गया।
इसके ठीक 2 साल बाद 16 सितंबर 1987 को ओजोन परत को नुकसान पहुंचाने वाले पदार्थ का मसौदा तैयार किया गया। इसमें दुनिया भर के देशों द्वारा चरणबद्ध तरीके से उनके इस्तेमाल पर रोक लगाने के लिए संकल्प लिया गया, जिसे मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल के नाम से जाना गया। इसीलिए 16 सितंबर को ओज़ोन दिवस के रूप में मनाया जाता है।
संयुक्त राष्ट्र ने 1994 में 16 सितंबर को ओज़ोन दिवस घोषित किया और उसके बाद से हर साल इसी दिन पूरी दुनिया में ओजोन दिवस के रूप में मनाया जाता है। मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल का मकसद ओज़ोन परत को कमजोर या नष्ट करने वाले पदार्थों के उत्पादन और इस्तेमाल को नियंत्रित करके ओज़ोन परत को बचाना है। इसके तहत क्लोरोफ्लोरोकार्बन (CFC) और दूसरे हानिकारक रसायनों (ODS) को धीरे-धीरे बंद करने का प्रावधान किया गया। 2016 में इसमें किगाली संशोधन (Kigali Amendment) किया गया जिसके तहत ओज़ोन परत को नुकसान आने वाले पदार्थ में हाइड्रोक्लोरो कार्बन (HFCs) को भी शामिल किया गया।
क्या है ओज़ोन दिवस 16 सितंबर 2025 की थीम?
हर साल ओज़ोन दिवस की एक विशेष थीम होती है जो उस 1 साल का लक्ष्य होती है। यह एक तरीके का शॉर्ट टर्म गोल होता है जिसे हासिल करने के लिए सभी देशों को प्रयास करना होता है। ओज़ोन दिवस 16 सितंबर 2025 की थीम है- “विज्ञान से वैश्विक कार्रवाई तक” (From Science to Global Action)। इसका मतलब है ओजोन परत की सुरक्षा केवल विज्ञान या वैज्ञानिक शोध तक सीमित नहीं है बल्कि इसे वास्तविक जीवन में लागू करने की भी ज़रूरत है।
विज्ञान और तकनीक के माध्यम से हमें जानकारी मिल रही है कि कौन सी चीज ओज़ोन परत को कमजोर कर रही है और कहां किस तरह से काम किया जाना ज़रूरी है। 2025 में वियना कन्वेंशन के 40 साल पूरे हो रहे हैं, जो मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल की नींव था। इस बार का थीम यह दिखाता है कि वैज्ञानिक शोध, नीतियां और वैश्विक सहयोग तथा साझेदारी मिलकर इस धरती को बचा सकते हैं।
चुनौतियां और संभावनाएं
मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल से लेकर अब तक ओज़ोन परत की सुरक्षा के लिए दुनियाभर के देशों ने काफ़ी काम किया है लेकिन अभी भी इसके सामने चुनौतियां बरक़रार हैं। प्रतिबंधित खतरनाक रसायनों की ग़ैर क़ानूनी खरीद-बिक्री इसकी सबसे बड़ी समस्या है। इसके साथ ही विकासशील देशों के सामने पर्यावरण अनुकूल तकनीक अपनाने के लिए संसाधनों की कमी और आर्थिक चुनौतियां भी इसकी राह में एक बड़ी बाधा का काम करती हैं।
जलवायु परिवर्तन से होने वाले बदलाव समस्या को और जटिल बना रहे हैं। इन सब से निपटने के लिए सटीक नीतियां, कठोर निगरानी, आर्थिक सहयोग और तकनीकी नवाचार की ज़रूरत है। विएना कन्वेंशन, मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल और किगाली संशोधन जैसे अंतर्राष्ट्रीय समझौते यह साबित करते हैं कि अगर पूरी दुनिया मिलकर प्रयास करे तो किसी भी पर्यावरणीय समस्या का समाधान संभव है। विकसित देशों द्वारा विकासशील देशों को आर्थिक और तकनीकी मदद उपलब्ध कराना भी विकसित देशों की ज़िम्मेदारी है।
सही इरादे के साथ अगर पूरी दुनिया मिलकर विज्ञान, तकनीकी और जन भागीदारी करे तो ओज़ोन परत का संरक्षण ही नहीं पूरे पर्यावरण को सुरक्षित किया जा सकता है। इसके लिए सही नीतियां बनाने के साथ ही उसको ठीक तरीके से लागू करना भी ज़रूरी है। पर्यावरण को बचाने और धरती को सुरक्षित रखने के लिए ओजोन परत का संरक्षण करना सरकार के साथ ही एक ज़िम्मेदार नागरिक के तौर हम सब की भी ज़िम्मेदारी बनती है। इसलिए ओज़ोन संरक्षण के लिए हम सभी को एक साथ आना होगा और अपने हिस्से की ज़िम्मेदारी निभानी होगी तभी हम धरती का भविष्य सुरक्षित बना सकते हैं।
© प्रीति खरवार





1 thought on “विश्व ओज़ोन दिवस 16 सितंबर 2025: महत्त्व, इतिहास और संरक्षण के उपाय (World Ozone Day in Hindi)”