पाजेब कहानी की मूल संवेदना/सारांश
जैनेंद्र हिंदी साहित्य के एक ख्यातिलब्ध साहित्यकार हैं। उनके साहित्य में दर्शन और मनोविज्ञान प्रमुख रूप से समाहित है। स्त्री के प्रति मानवीय दृष्टिकोण और सामाजिक बुराइयों के प्रति उपेक्षा का भाव उनके साहित्य की अन्य विशेषताएं हैं। परख, सुनीता, त्यागपत्र, कल्याणी, विवर्त, सुखदा और मुक्तिबोध जैनेंद्र के महत्त्वपूर्ण उपन्यास हैं। फांसी, वातायन, नीलम देश की राजकन्या, दो चिड़िया, पाजेब इत्यादि उनके प्रमुख कहानी संग्रह हैं। पाजेब कहानी जैनेंद्र की एक अत्यंत चर्चित मनोवैज्ञानिक एवं मार्मिक कहानी है।
पाजेब कहानी शुरू होती है एक कस्बे की आम सी जिंदगी से। एक परिवार है जिसमें एक पति-पत्नी और उनके दो बच्चे हैं। बड़ा बच्चा है आशुतोष और छोटी बच्ची है मुन्नी। पाजेब का ज़िक्र कहानी में बहुत बारीकी से किया गया है। उस परिवार के आसपास के पड़ोस में एक नई डिजाइन की पाजेब सभी लड़कियां पहन रही हैं। जैनेंद्र ने नए फैशन के प्रति चाव का बढ़िया चित्रण किया है।
कहानी की मुन्नी को भी वैसी ही पाजेब चाहिए जो उसकी बुआ उसके लिए ले आती है। बड़ा भाई आशुतोष पहले तो सभी के यहां अपनी बहन को ले जाकर बहुत खुशी-खुशी उसकी पाजेब दिखाता है लेकिन थोड़ी ही देर में उसे भी अपने लिए बाइसिकल चाहिए। इस चित्रण में बच्चों की आपसी स्पर्धा और होड़ का अच्छा चित्रण हुआ है।
कहानी में ट्विस्ट आता है पाजेब के गुम होने के बाद। घर में एक पाजेब तो है, दूसरे पांव की पाजेब नहीं मिल रही। घर के हर संभावित असंभावित जगह उसकी तलाश शुरू होती है फिर न मिलने पर सबसे पहला संदेह घर के नौकर पर जाता है। वहां से निश्चिंत होने पर 8 वर्षीय बालक आशुतोष पर शक जाता है। अब जिस तरह से बच्चे से जबरन कुबूल करवाया जाता है-वह पारिवारिक वातावरण का बेहद मनोवैज्ञानिक खाका खींचता है। बच्चे ने पायल अपने दोस्त चुन्नू को दे दी होगी, पतंग वाले को देकर पतंगें और माझा ले आया होगा, यह सब मन ही मन सोच कर माता-पिता जासूस और पुलिस सब बने हुए हैं।
बच्चे के किशोर मन का हठीला चित्रण बेहद ही स्वाभाविक बन पड़ा है। बीच-बीच में आशुतोष और उसकी मां की बातचीत घरेलू वातावरण की रोजाना जैसी तस्वीर खींचती है। खोया सामान स्टडी टेबल पर ढूंढना, नौकर की लापरवाही के लिए पति को दोष देना, संवादों को सहजता प्रदान करता है। मुन्नी की मां का भी पाजेब लेने की इच्छा बताने पर उसे मुन्नी की उम्र की बताना और औरतों को बात फैलाने वाली दर्शाना, चुन्नू की मां द्वारा चुन्नू की बुरी तरह पिटाई के दृश्यों में औरतों की रूढ़ सामाजिक छवि को चित्रित कता है।
कथाकार ने ‘मैं’ शैली का प्रयोग करते हुए कहानी में स्वयं को ही आशुतोष के पिता की जगह दिखाया है। एक तरफ बिना जांच पड़ताल के एक कंडीशनिंग के तहत आशुतोष पर पाजेब वापस लाने का दबाव बनाना पेरेंटिंग के पारंपरिक ढर्रे को दिखाता है, वहीं दूसरी तरफ बच्चों के प्रति नरम सहज रहना चाहिए और जबरदस्ती नहीं करनी चाहिए जैसी मान्यताओं के बीच फंसे पिता की छवि निर्मित की गई है। बाल मनोविज्ञान के साथ-साथ मनोविश्लेषण और व्यवहार का सुंदर समायोजन इस कहानी में दिखाया गया है।
अंत में पाजेब मुन्नी की बुआ की बास्केट की पॉकेट में मिलती है जो ग़लती से उन्हीं के साथ चली गई थी। पिता को पाजेब देखते ही जिस प्रकार झटका खाते दिखाया गया है वहीं पर कहानी समाप्त हो जाती है।
घर की किसी वस्तु के चोरी हो जाने पर निरीह नौकर और बाद में बच्चे (पड़ोस के बच्चे, बच्चे के दोस्त) किस तरह निशाने पर आ जाते हैं, यह पाजेब कहानी में बखूबी दिखाया गया है। कहानी में बिना जांच, बिना सबूत के तय कर लेना, वस्तु की बरामदगी के लिए माहौल बनाना, बच्चों की प्रतिक्रिया, उनका दुख और आक्रोश बहुत ही जीवंत वातावरण तैयार करता है।
कहानी इस तथ्य पर जोर देती है कि मां-पिता जितने समझदार बनते हैं ज़रूरी नहीं उतने हों भी। वह पढ़े-लिखे होने के बावजूद अनावश्यक व्यवहार करके अपने बच्चों को मानसिक- शारीरिक प्रताड़ना दे सकते हैं और यह भी कि बड़े होते बच्चे क्रोध को किस प्रकार पीना सीख जाते हैं, झुकना पसंद नहीं करते हैं। कुल मिलाकर कहानी प्रभावोत्पादक बन पड़ी है।
© डॉक्टर संजू सदानीरा
पाजेब कहानी को और विस्तार से समझने के लिए कृपया नीचे दिये गये लिंक पर क्लिक करें
https://www.youtube.com/watch?v=SkCxsyOoJEg