राष्ट्रीय झंडा दिवस 22 जुलाई 2025: जानिए तिरंगे का इतिहास और महत्त्व
हर बार जब कभी किसी मौके पर तिरंगा फहराया जाता है तो हर भारतीय का दिल अपने आप जोश से भर जाता है। हमारे देश का राष्ट्रीय झंडा तिरंगा सिर्फ़ कपड़े का एक टुकड़ा नहीं बल्कि प्रतीक है हमारे देश को आजादी दिलाने में योगदान देने वाले जाने अनजाने अनगिनत स्वतंत्रता सेनानियों के साहस और बलिदान का। देश की स्वतंत्रता, अखंडता और संप्रभुता के प्रतीक तिरंगा झण्डा को 22 जुलाई 1947 को राष्ट्रीय ध्वज के रूप में अपनाया गया था। इसीलिए हर साल राष्ट्रीय झंडा दिवस 22 जुलाई को देश भर में मनाया जाता है। यह दिन देश के आत्म सम्मान और भारतीयता के पुनर्जागरण का एक महत्त्वपूर्ण दिन है।
राष्ट्रीय झंडा दिवस का महत्त्व
राष्ट्रीय झंडा दिवस 22 जुलाई को देश भर में मनाया जाता है क्योंकि इसी दिन 1947 में देश की संविधान सभा ने तिरंगे को भारत के राष्ट्रीय ध्वज के रूप में औपचारिक रूप से मान्यता दी थी। यह दिन देश के प्रति सम्मान, एकता, अखंडता और आजादी की भावना का प्रतीक है। इसके तीन रंग देश की अनेकता में एकता की भावना को भी प्रतिबिंबित करता है। इस दिन देश के स्कूल, कॉलेज और सरकारी संस्थानों और स्वयं से भी समूहों द्वारा देश भर में अनेक कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं जिसमें इसकी बनावट इसके इतिहास और संबंधित महत्त्वपूर्ण घटनाओं और तिरंगे के महत्त्व पर चर्चा की जाती है। इसके साथ ही जागरूकता फैलाने के लिए भी यह महत्त्वपूर्ण दिन है। इसी उद्देश्य से 2022 में स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर “हर घर तिरंगा” अभियान चलाया गया था। तब से हर साल 9 से 15 अगस्त तक इसे देश भर में मनाया जाने लगा है।
तिरंगे का ऐतिहासिक महत्त्व
देश के राष्ट्रीय ध्वज तिरंगे का इतिहास स्वतंत्रता संग्राम के साथ जुड़ा हुआ है। वर्तमान में मौजूद तिरंगा इसका आधुनिक रूप है इसके पहले इसकी डिजाइन में कई बार बदलाव किए गए जो कि विभिन्न ऐतिहासिक घटनाओं और आज़ादी के आंदोलन को दर्शाता है। भारत का पहला राष्ट्रीय ध्वज 7 अगस्त 1906 को कोलकाता के पारसी बागान स्क्वायर में फहराया गया था तभी से कोलकाता ध्वज के नाम से जाना जाता था इसमें तीन पट्टियां थीं- हरी, पीली और लाल। हरे रंग में आठ कमल, पीले रंग में वंदे मातरम् और लाल रंग में सूर्य और चंद्रमा के प्रतीक थे। यह तत्कालीन बंगाल विभाजन के विरोध में देश की एकता और अखंडता को प्रदर्शित करता है।
इसके बाद 1907 में मैडम भीकाजी कामा ने जर्मनी के पूर्वी घाट में आयोजित अंतरराष्ट्रीय समाजवादी सम्मेलन में भारतीय ध्वज फहराया था इसमें भी तीन पत्तियां थीं लेकिन इसका डिजाइन पहले वाले से अलग था। इसमें हरे रंग में 8 प्रांत यानी राज्यों को दर्शाते हुए तारे शामिल किए गए थे। तीसरी बार झंडे में बदलाव 1917 के होम रूल आंदोलन के दौरान आया जब एनी बेसेंट और बाल गंगाधर तिलक ने एक नया ध्वज प्रस्तावित किया था। जिसमें पांच लाल और चार हरी पत्तियां थीं। साथ ही सात तारे और एक यूनियन जैक का प्रतीक शामिल किया गया था।
वर्तमान तिरंगे झंडे को बनाने में पिंगली वेंकट का योगदान सबसे ज़्यादा महत्त्वपूर्ण माना जाता है। पिंगली वेंकट ने महात्मा गांधी के लिए एक ध्वज का डिजाइन तैयार किया था, जिसमें दो रंग थे। लाल हिंदुओं का प्रतीक था और हरा मुसलमानों के प्रतीक के रूप में लिया गया था। बाद में गांधी जी के सुझाव पर इसमें अन्य समुदायों के लिए सफेद रंग और स्वदेशी का प्रतीक चरखा जोड़ा गया। 1947 में जब संविधान सभा ने भारत के राष्ट्रीय ध्वज का प्रतीक अपनाया तो पिंगली वेंकट के डिजाइन में कुछ संशोधन किया जिसमें चरखे की जगह अशोक चक्र को शामिल किया गया जो धर्म शांति और प्रगति का प्रतीक है। इस ध्वज को 22 जुलाई 1947 को संविधान सभा द्वारा भारत के राष्ट्रीय ध्वज के रूप में औपचारिक रूप से अपनाया गया था। 15 अगस्त 1947 को देश की आज़ादी के साथ ही तिरंगे का यह स्वरूप देश का राष्ट्रीय ध्वज का प्रतीक बना हुआ है।
तिरंगे का डिज़ाइन और इसका प्रतीकात्मक महत्त्व
भारत का राष्ट्रीय झंडा तिरंगा तीन रंगों और अशोक चक्र से मिलकर बना हुआ है जिनका अपना विशेष महत्त्व है। सबसे ऊपर केसरिया रंग है जो साहस, बलिदान और त्याग की भावना को दर्शाता है। साथ ही यह स्वतंत्रता सेनानियों के बलिदान को रेखांकित भी करता है। झंडे के बीच की पट्टी सफेद रंग की है जो शांति, सत्य और पवित्रता का प्रतीक है। यह भारत में अनेकता में एकता को भी दर्शाता है। सबसे निचली पट्टी हरे रंग की है जो प्रकृति के प्रति सम्मान के साथ ही उर्वरता, विकास और खुशहाली को प्रदर्शित करती है। सफेद रंग की पट्टी में मौजूद अशोक चक्र गहरे नीले रंग का है जिसमें 24 तीलियां हैं जो दिन के 24 घंटों और जीवन के निरंतर चक्र को दर्शाती हैं। तिरंगा ध्वज का अनुपात 2:3 है, इसका मतलब है कि इसकी लंबाई चौड़ाई की दोगुनी होनी चाहिए। यह खादी के कपड़े से बनाया जाता है जो स्वदेशी आंदोलन का अहम हिस्सा था।
राष्ट्रीय ध्वज से जुड़े नियम और आचार संहिता
भारत में राष्ट्रीय ध्वज देश का हर नागरिक फहरा सकता है लेकिन इसके साथ ही इसके कुछ नियम कायदे हैं। भारत के राष्ट्रीय ध्वज के उपयोग के लिए ध्वज संहिता 2002 लागू है जिसके नियमों के अनुसार ही कोई राष्ट्रीय ध्वज फहरा सकता है। देश के नागरिक किसी दिन रात फहरा सकते हैं लेकिन इसके सम्मान का ध्यान रखते हुए जैसे की तिरंगा कभी भी जमीन पर नहीं छूना चाहिए। इसे कभी उल्टा नहीं फहराया जा सकता, हमेशा केसरिया रंग ऊपर होना चाहिए। इसे कभी क्षतिग्रस्त, फीके या फटे रूप में नहीं फहराया जा सकता। इसके अलावा इस कपड़ों, वस्तुओं या सजावट के रूप में इस्तेमाल नहीं किया जा सकता है। इन सब बातों को ध्यान में रखते हुए ही तिरंगे को फहराया जा सकता है।
राष्ट्रीय झंडा दिवस हमें तिरंगे के गौरवशाली इतिहास और स्वतंत्रता सेनानियों के साहस, त्याग और बलिदान की याद दिलाता है। यह हमें देश की स्वतंत्रता में निहित मूल्यों और कर्तव्यों की याद भी दिलाता है तिरंगा केवल एक झंडा नहीं बल्कि यह भारत की पहचान है जो हमें एकजुट करता है। इस ख़ास मौके पर हमें यह संकल्प लेना चाहिए कि हम तिरंगे में निहित स्वतंत्रता, संप्रभुता एकता और बंधुत्व जैसे मूल्यों कुछ संजोकर रखें और देश के विकास में अपना योगदान सुनिश्चित करें।
© प्रीति खरवार
मेटा डिस्क्रिप्शन