हरिकृष्ण ‘प्रेमी’ के नाट्य साहित्य की विशेषताएं
हिंदी एकांकी के महत्त्वपूर्ण नाम श्री हरिकृष्ण ‘प्रेमी’ (Harikrishna Premi) का जन्म ग्वालियर जिले के गुण में सन 1908 में हुआ था। उनकी मृत्यु 22 जनवरी, 1974 ईस्वी में हुई।
चूंकि उनका जन्म एक देशभक्त परिवार में हुआ था अतः देशभक्ति का बीज इनमें बचपन से ही अंकुरित था। इनके विचारों पर गांधीवाद का गहरा प्रभाव देखा जा सकता है।
उनके साहित्यिक जीवन की शुरुआत एक पत्रकार के रूप में माखनलाल चतुर्वेदी के साथ “त्याग भूमि” नामक पत्र से हुई। बाद में उन्होंने कविताएं भी लिखीं और फिर नाटकों की रचना की ओर उन्मुख हुए।
अनेक बार उन्होंने स्वाधीनता आंदोलन में भी सक्रिय भूमिका निभाई । उनकी पहली प्रकाशित रचना “स्वर्ण विहान” 1903 ईस्वी में आई थी । यह राष्ट्रीय भावनाओं से भरा एक रसात्मक गीत नाट्य ह था।
उनका पहला ऐतिहासिक नाटक “रक्षाबंधन” 1934 ईस्वी में आया, जो चित्तौड़ की रक्षा के लिए रानी कर्मावती द्वारा मुगल सम्राट हुमायूं को राखी भेजने की घटना पर आधारित है। इस रचना के द्वारा प्रेमी जी ने हिंदू-मुस्लिम संप्रदायों के बीच सामंजस्य बनाने की सफल कोशिश की है।
इनकी 1937 ईस्वी में प्रकाशित कृति “शिवा साधना” में औरंगजेब की कट्टर सांप्रदायिक छवि एवं शिवाजी के धर्मनिरपेक्ष और राष्ट्रीय भावनाओं के संरक्षक रूप को प्रकाशित किया गया है । 1937 ईस्वी में ही प्रकाशित “प्रतिशोध” में बुंदेलखंड के राजा छत्रसाल के द्वारा औरंगजेब से लोहा लेने के प्रेरक प्रसंग का चित्रण है।
इसी प्रकार से उनकी अन्य नाटक कृतियों –आहुति, स्वप्न भंग, नवीन संग्राम, शतरंज के खिलाड़ी, विष पान, उधार, भग्न प्राचीर, प्रकाश स्तंभ, कीर्ति स्तंभ, विदा और सांपों की सृष्टि इत्यादि में मध्यकालीन कथा प्रसंगों के माध्यम से ऐतिहासिक युद्धों एवं जय-पराजय की गाथाओं को भाव-प्रवण शैली में चित्रित किया गया है।
इतना ही नहीं हरिकृष्ण ‘प्रेमी’ ने अनेक सामाजिक समस्याओं का चित्रण करने के लिए नाट्य विधा का सहारा लिया। इनके “बंधन” नाटक में श्रमिकों एवं पूंजीपतियों के मध्य विरोधाभास एवं संघर्ष को दर्शाया गया है। हृदय परिवर्तन के गांधी जी के विचार पर आधारित “समस्या का हल” नाटक अनुकरणीय है। एक रचनाकार के आर्थिक संघर्षों का चित्रण “छाया कृति” में मर्मस्पर्शी शैली में अभिव्यक्त किया गया है। “ममता” नामक नाटक में दांपत्य जीवन की समस्याओं का प्रभावशाली चित्रण है।
प्रेमी जी के 1942 ईस्वी में दो एकांकी संग्रह “मंदिर” और “बादलों के पार” भी प्रकाशित हुए। वर्तमान सामाजिक समस्याओं का चित्रण करने वाले उनके एकांकी हैं- बादलों के पार, घर या होटल, वाणी मंदिर, नया समाज, यह मेरी जन्मभूमि है और पश्चाताप इत्यादि।
“यह भी एक खेद है, प्रेम अंधा है, रूप शिखा, मातृभूमि का मान और निष्ठुर न्याय इनके ऐसे एकांकी है जो ऐतिहासिक वर्ण्य विषयों के साथ-साथ प्रेम के आदर्शवादी और विद्रोही स्वरूप का मार्मिक चित्रण करते हैं।
फिर भी उनके नाटकों की सबसे बड़ी विशेषता बतानी हो तो वो बताई जा सकती है -साम्प्रदायिक सद्भाव और आपसी प्रेम। आज तो इस बात के महत्त्व से इन्कार नहीं किया जा सकता कि नाट्य साहित्य के लिए ऐसे विषय उठाना न सिर्फ़ बहुत ज़रूरी बल्कि एक नागरिक के तौर पर कत्तर्व्य भी है।
इस प्रकार कहा जा सकता है कि हिंदी नाटककारों में हरिकृष्ण ‘प्रेमी’ का अपना एक विशिष्ट स्थान है। इनके नाटक एवं एकांकी देशभक्ति, धर्मनिरपेक्षता तथा विश्व मैत्री का संदेश देने वाले हैं। रंगमंच की दृष्टि से इनके नाटक सफल हैं । इनके सामाजिक नाटक समाज की लगभग सभी विषमताओं एवं समस्याओं का न सिर्फ चित्रण ही करते हैं बल्कि अपनी ओर से अपने गांधीवादी नजरिए से उनका समाधान प्रस्तुत करने का भी प्रयास करते हैं।
© डॉ. संजू सदानीरा
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