अंधेर नगरी नाटक की मूल संवेदना

 

अंधेर नगरी नाटक की मूल संवेदना

अंधेर नगरी हिन्दी नाटक के जनक ‘भारतेन्दु हरिशचन्द्र  का एक अत्यन्त चर्चित एवं महत्वपूर्ण नाटक है। सिर्फ एक रात में रचित यह यह नाटक अनेक निहितार्थ छुपाए हुए है। 

प्रत्येक व्यक्ति की राजनीतिक विचार धारा होती है, वह उससे भले ही अनजान हो। जो यह कहते हैं, कि मैं राजनीति में नही पड़ता वे भी अपने विशेष स्वार्थ परक राजनीति का परिचय देते हैं। 

अंधेर नगरी में नाटककार की अपनी राजनीतिक दृष्टि का भी पता चलता है एवं नाटक के कथ्य में निहित राजनीति का भी। नाटककार ने जहाँ -जहाँ नाटक में पद्म में अपनी बात कही है, वहाँ -वहाँ किंचित पारम्परिक अथवा रूढ़िवादी सोच का भी पता चलता है। विशेषकर जिस हिस्से में वे पत्नी एवं वेश्या,पंडित एवं भड़वा और गाय एवं बकरी के बीच भेदभाव होने से अपना दुख व्यक्त करते हैं,वहाँ उनकी संकुचित दृष्टि का पता चलता है। दूसरे धर्म का होना विधर्मी होना और अपत्तिजनक दर्शाया गया है।

इन उपर्युक्त बातों के साथ अंधेर नगरी हास्य-व्यंग्य की चुटकियों सहित एक गंभीर विषय को उठाकर शासन एवं जनता के मानसिक स्वास्थ्य पर अच्छा विमर्श प्रस्तुत करता है। नाटक में भली-भांति स्थापित किया गया है कि जहाँ पर वस्तुओं की उपलब्धता और गुणवत्ता के आधार पर उसका मूल्यांकन नहीं किया जाता वह जगह रहने के लिए कदापि उपयुक्त नहीं है। लालच मनुष्य के पतन का मूल कारण है, नाटक में यह भी स्पष्ट रूप से दिखाया गया है।

गोवर्धन दास व चौपट राजा दोनों के माध्यम से दो अलग- अलग तरह के मनुष्यों की मूल प्रवृति पर प्रकाश डाला गया है। बिना रूप, गुण, उपलब्धता एवं दुर्लभ होने की अवस्था के सभी वस्तुओं को एक तराजू पर तौलना अच्छा नहीं बल्कि घातक दृष्टिकोण है। लोभ में आ जाने वाले व्यक्ति मूर्ख गोवर्धन दास की तरह होते हैं लेकिन बुद्धिमान गुरु और मित्र कैसे मुसीबत से निकाल लाते हैं, इसका भी चित्रण अंधेर नगरी नाटक में किया गया है।

राजा अगर विवेकहीन है, तो न्याय परिहास की वस्तु बन जाता है,यह भी इस नाटक में दिखाया गया है। ऐसे राज्य की प्रजा हमेशा आसन्न संकट से आशंकित रहती है और सभी प्रकार की उन्नति से वंचित रह जाती है। ऐसे राज्य में विद्वानों और संतों का कोई भविष्य नहीं होता। मूर्ख राजा न्याय के नाम पर मजाक से अधिक कुछ नहीं कर पाता। ऐसे राज्यों को नाटककार ने अंधेर नगरी और ऐसे राजा को चौपट राजा कहा है। ऐसे राज्य में अमले और प्यादे राज करते हैं। चारों तरफ अराजकता फैली होती है। राज व्यवस्था का हाल ऐसा होता है मानो राजा विदेश में रहता है।

अंधेर नगरी में भारतेंदु हरिश्चंद्र ने अपने राजनीतिक दृष्टिकोण का परिचय देते हुए एक अच्छे शासक के गुण भी बताए हैं।

कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि अंधेर नगरी अपने कथ्य के कारण कालजयी रचना है और राजनीति की परिस्थितियों एवं शासन व्यवस्था पर व्यंग्यात्मकता के साथ बात करती है।

© डॉक्टर संजू सदानीरा

 

Leave a Comment