उपलब्धि कविता की व्याख्या/मूल संवेदना
धर्मवीर भारती आधुनिक काल में नई कविता के प्रमुख कवियों में से एक हैं। तार सप्तक में इनकी भी कविताएं संकलित हैं। धर्मवीर भारती ने उपन्यास, कहानी, निबंध नाटक, आलोचना एवं संपादन करके हिंदी साहित्य में अपनी बहुमुखी प्रतिभा का परिचय दिया। गुनाहों का देवता और सूरज का सातवां घोड़ा इनके चर्चित उपन्यास हैं। अंधा युग इनके द्वारा रचित एक अत्यंत विख्यात गीति नाटक है। इनके द्वारा संपादित होने वाली पत्रिका धर्मयुग अपने समय की सबसे लोकप्रिय साहित्यिक पत्रिका थी। सात गीत वर्ष, ठंडा लोहा और कनुप्रिया इनके अत्यंत लोकप्रिय काव्य संकलन हैं।
उपलब्धि कविता इनके द्वारा रचित एक लघु आकार की परंतु सोचने पर विवश करने वाली कविता है। कविता सिर्फ कवि की ही नहीं, आम आदमी की ज़िंदगी से भी जुड़ी है। सामाजिकता के दबाव से कुचली वैयक्तिकता की बीच फंसे आधुनिक मानव का चित्रण यह कविता बखूबी करती है।
कवि अपनी जी हुई ज़िंदगी को लेकर प्रश्नाकुल हैं। उन्हें लगता है कि अपना जीवन उन्होंने क्या जिया है (अर्थात उन्होंने नहीं जिया), बल्कि जीवन ने उन्हें जिया। जीवन ने उन्हें इस्तेमाल करके खाली प्याले सा लुढ़का दिया।
कवि कहते हैं कि वह नहीं जले (अपने आप कष्ट नहीं चुने) वरन् उनके जीवन की चुनौतियां ने जलाने के लिए चुना। कवि ख़ुद अपने जलने से मना करते हैं और बताते हैं कि जीवन के कमज़ोर पलों ने मोमबत्ती बनाकर उन्हें मोड़ दिया और परिस्थितियों के प्रति कमज़ोर बना दिया।
कवि अत्यंत हताशा के साथ स्वीकार करते हैं कि वह एक अत्यंत तेजस्वी संभावना थे, परंतु समय की कठोरता ने उनके तेज को कुंद कर दिया। अब वह एक ऐसे सूरज के समान हैं जिसका प्रकाश मंद ही नहीं समाप्त हो चुका है।
उपलब्धि कविता के माध्यम से कवि ने उन सभी का व्यक्तियों की पीड़ा को शब्द दिए हैं जो परिस्थितिवश अपनी प्रतिभा के अनुकूल सफलता न प्राप्त कर अवसाद में पहुंच जाते हैं। कविता अस्तित्व वादी दर्शन से भी प्रभावित दृष्टिगोचर होती है। एक सामान्य व्यक्ति वस्तुतः अपने जीवन को स्वयं की इच्छा अनुसार न जी कर प्रस्तुत समस्याओं, परिस्थितियों और उपलब्ध उपायों के अनुसार ही जी पाता है। कविता अपने कथ्य को स्पष्ट करने में पूरी तरह से सफल है।
© डॉक्टर संजू सदानीरा
मेरे तो गिरधर गोपाल दूसरो न कोई पद की व्याख्या के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें..
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