कर्पूरी ठाकुर : Karpoori Thakur in Hindi

 

कर्पूरी ठाकुर जीवन परिचय : Karpoori Thakur biography in hindi

 

 जब भी देश की राजनीति की बात होती है काफ़िले, ऐशोआराम वाले बाहुबली नेताओं की तस्वीर सामने आती है लेकिन कर्पूरी ठाकुर जैसे नेता इसमें अपवाद हैं। पिछले कुछ दशकों में राजनीति का अपराधीकरण बड़े पैमाने पर हुआ है। वैसे इसे अपराध का राजनीतिकरण कहें तो यह ज्यादा तर्कसंगत होगा। धर्म और राजनीति वैसे भी अपराधियों की अंतिम शरणस्थली मानी जाती है।

आज भी अधिकांश दलों के कद्दावर माने जाने वाले नेता बड़े ही ठाट बाट वाले रसूख़दार होते हैं। इनसे मिलना आम आदमी के लिए अत्यंत दुर्लभ होता है। लेकिन अगर हम कहें कि ऐसे भी नेता हुए हैं जो दो-दो बार मुख्यमंत्री रह चुके फिर भी उनके पास निजी संपत्ति के नाम पर अपना घर और गाड़ी तक नहीं थी, तो आपको शायद ही यक़ीन होगा!

आज हम ऐसे ही एक लोकप्रिय नेता के बारे में बात कर रहे हैं। हाल ही में भारत रत्न पुरस्कार से सम्मानित बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर के बारे में चर्चाएं जोर शोर से होने लगीं, जब इनके 100वें जन्मदिवस के अवसर पर एक दिन पहले 23 जनवरी 2024 को इन्हें मरणोपरांत भारत रत्न देने की घोषणा की गई।

जन्म एवं व्यक्तित्व जीवन-

जननायक के नाम से मशहूर कर्पूरी ठाकुर का जन्म 24 जनवरी 1924 को बिहार के समस्तीपुर में पितौंझिया नामक स्थान पर हुआ था। इनकी माता श्रीमती रामदुलारी देवी तथा पिता गोकुल ठाकुर थे, जो कि अपना पारंपरिक पेशा यानी नाई का काम किया करते थे। इनका बचपन बेहद साधारण बीता। इन्होंने 1940 में मैट्रिक की परीक्षा पास की।

इसके बाद 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान राजनीति में सक्रिय रूप से हिस्सा लेने लगे। जननायक कर्पूरी ठाकुर का निधन 64 साल की उम्र में 17 फरवरी, 1988 को दिल का दौरा पड़ने से हुआ था और इस तरह स्वच्छ राजनीति के एक उत्कृष्ट उदाहरण का अंत हो गया।

 

राजनीतिक जीवन-

भारत के स्वतंत्रता सेनानी शिक्षक और राजनीतिज्ञ कर्पूरी ठाकुर को 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन में शामिल होने की वजह से जेल जाना पड़ा। पूरे 26 महीने भागलपुर के जेल कैंप में इन्हें ब्रिटिशर्स द्वारा प्रताड़ित किया गया। 1945 में कर्पूरी ठाकुर को जेल से रिहा कर दिया गया। इसके बाद से इन्होंने अपना जीवन पूरी तरह से राजनीति के क्षेत्र में समर्पित कर दिया।

समाजवादी विचारधारा के प्रबल समर्थक कर्पूरी ठाकुर ने 1948 में आचार्य नरेंद्र देव एवं जय प्रकाश नारायण के समाजवादी दल में प्रादेशिक मंत्री का कार्यभार संभाला। 1952 में बिहार विधानसभा के चुनाव में हुए विधायक के तौर पर चुने गए। यहां से शुरू हुआ इनका विधायक पद का सफर 1988 तक बना रहा। बीच में बस दो बार 1977 में लोकसभा सांसद बनने और 1984 में विधानसभा चुनाव हारने के अलावा यह अपने मृत्युपर्यंत बिहार विधानसभा सदस्य में विधायक के तौर पर काम करते रहे। 

1984 में इंदिरा गांधी की हत्या के बाद उपजी सहानुभूति लहर की वजह से अपने जीवन काल में सिर्फ एक बार कर्पूरी ठाकुर को चुनाव में हार का सामना करना पड़ा था। कर्पूरी ठाकुर ने दो बार बिहार के मुख्यमंत्री (1970-71,1977-79), एक बार उप मुख्यमंत्री और एक बार बिहार के शिक्षा मंत्री के तौर पर काम किया।

हालांकि मुख्यमंत्री के तौर पर एक बार भी ये अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाए थे। लेकिन सामाजिक न्याय की समाजवादी अवधारणा को मूर्त रूप देते हुए इन्होंने राजनीति में एक नई परिपाटी कायम की। 1967 के आम चुनाव में संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी का नेतृत्व किया। उनके कुशल नेतृत्व में संयुक्त सोशल इस पार्टी राजनीति के मैदान में एक बड़ी ताकत के रूप में उभरी। 

कर्पूरी ठाकुर द्वारा लिए गए ऐतिहासिक फ़ैसले –

अपने कार्यकाल के दौरान कर्पूरी ठाकुर ने मैट्रिक परीक्षा से अंग्रेज़ी की अनिवार्यता ख़त्म करके प्रदेश में भाषा विमर्श को एक नया आयाम दिया। सरकारी कामकाज में भी इन्होंने हिंदी के साथ उर्दू को राजकीय स्तर पर पहचान दिलाने में अहम भूमिका निभाई। ये प्रदेश की जनता में बेहद लोकप्रिय फ़ैसले के तौर पर जाने गए। साथ ही इनका लड़कियों के लिए पढ़ाई मुफ़्त करने का फ़ैसला भी काफ़ी याद किया जाता है। 

इसके अलावा इन्होंने अपने कार्यकाल के दौरान प्रदेश के 9000 से अधिक बेरोजगार डॉक्टर्स और इंजीनियर्स को सरकारी नौकरी प्रदान की, जो अपने आप में एक बड़ा रिकॉर्ड है। इसके अलावा आज शराबबंदी के लिए देश भर में जाना जाने वाले राज्य बिहार में सबसे पहली बार शराब बंदी कर्पूरी ठाकुर ने ही करवाई थी।

बिहार में पहली बार पिछड़ों, अति पिछड़ों, मुस्लिमों, महिलाओं और सामान्य वर्ग के ग़रीब व्यक्तियों को आरक्षण देने का प्रावधान भी कर्पूरी ठाकुर ने  किया था। इसके लिए इन्होंने मुख्यमंत्री बनने के बाद 1970 में मुंगेरीलाल आयोग की स्थापना की और समिति की सिफारिशों को 1978 में लागू किया।

सादा जीवन उच्च विचार की अनोखी मिसाल-

कर्पूरी ठाकुर को जननायक कहे जाने के पीछे उनका गरीब, वंचितों और पिछड़ों को एक समान समझना और ख़ुद भी एक सामान्य जीवन शैली में रहना बड़ी वज़ह है। मुख्यमंत्री कार्यालय की लिफ्ट में चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों को प्रवेश की अनुमति सबसे पहले कर्पूरी ठाकुर ने ही दिलवाई थी। ख़ुद हमेशा साधारण और पुराने कपड़ों में रहते थे और सार्वजनिक वाहनों का प्रयोग करते थे। एक बार तो पार्टी के सदस्यों ने मिलकर चंदा इकट्ठा कर इन्हें अपने लिए कपड़े लेने की व्यवस्था तक की थी।

एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स की रिपोर्ट के मुताबिक 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में निर्वाचित 241 विधायकों में से 194 विधायक करोड़पति हैं। वहीं कर्पूरी ठाकुर दो बार मुख्यमंत्री बनने के बावजूद एक घर और गाड़ी तक नहीं ले पाए थे। इनके मुख्यमंत्रित्व काल के दौरान भी इनकी पत्नी को घरेलू काम करते और बकरियां चराते और खेतों में काम करते हुए देखा जा सकता था। इसके अलावा अपनी बेटी की शादी में इन्होंने राजनयिकों या नौकरशाहों के शामिल होने यहां तक कि दरभंगा के हेलीपैड पर हेलीकॉप्टर तक उतरने पर रोक लगा दी थी, क्योंकि कर्पूरी ठाकुर बेहद साधारण तरीके से विवाह का कार्यक्रम संपन्न करना चाहते थे।

लोकनायक जयप्रकाश नारायण एवं समाजवादी डॉक्टर राम मनोहर लोहिया के आदर्शों पर चलने वाले जननायक कर्पूरी ठाकुर लालू प्रसाद यादव, नीतीश कुमार, रामविलास पासवान और सुशील कुमार मोदी के राजनीतिक गुरु माने जाते हैं। लालू प्रसाद यादव ने इन्हें देर से भारत रत्न मिलने पर सवाल भी उठाया है।

कर्पूरी ठाकुर के बेटे रामनाथ ठाकुर का इस मामले में कहना है कि 34 साल के संघर्ष के बाद जाकर पिता कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न मिल रहा है। इस अवसर पर न सिर्फ़ कर्पूरी ठाकुर के योगदानों को याद करने का दिन है, बल्कि उनके आदर्शों को आत्मसात करने का भी दिन है। ख़ासतौर पर राजनीतिज्ञों के लिए कर्पूरी ठाकुर ने अपने जीवन से जो आदर्श प्रस्तुत किए हैं, वे सदियों तक इनके मार्गदर्शन का काम करते रहेंगे।

© प्रीति खरवार 

 

 

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