“अगर आप उड़ नहीं सकते तो दौड़ो, यदि दौड़ नहीं सकते तो चलो, यदि चल नहीं सकते तो रेंगते रहो लेकिन आपको आगे बढ़ते रहना है..”
मार्टिन लूथर किंग का ये फेमस quote लगभग आप सब ने सुना होगा। यहां सवाल यह उठता है कि आखिर जाना कहां है? आपको इस बात पर हंसी आ सकती है। लेकिन यह मजाक का विषय बिल्कुल नहीं है। हमें से ज्यादातर लोगों को यह पता ही नहीं होता कि करना क्या है? हर सुबह उठते हैं, आदतन रूटीन निपटाते हैं और दिन इस तरह बीत जाता है और अगले दिन फिर यही प्रोसेस रिपीट किया जाता है।
स्वामी विवेकानंद ने एक बहुत ही जरूरी बात कही थी, “उठो, जागो और तब तक ना रुको, जब तक लक्ष्य प्राप्त ना हो जाए”
स्वामी विवेकानंद ने एक बहुत ही जरूरी बात कही थी, “उठो, जागो और तब तक ना रुको, जब तक लक्ष्य प्राप्त ना हो जाए”
आखिर जीवन में एक मकसद होना क्यों जरूरी है ? ज़रा सोचिए आपने जोमैटो या स्विगी से अपना पसंदीदा खाना ऑर्डर किया और एड्रेस ही नहीं डाला या फिर ई-कॉमर्स कंपनी जैसे फ्लिपकार्ट अमेज़ॅन से कोई सामान ऑर्डर किया और एड्रेस नहीं डाला क्या आपका सामान आप तक पहुंच सकता है ? नहीं न ! जब बिना गोल सेट किए एक छोटी सी चीज हासिल नहीं हो सकती तो इंसान बिना गोल के कहां पहुंच सकता है? सोचिए अगर अर्जुन को पता ही नहीं होता कि कहां निशाना लगाना है तो वह मछली की आंख भेद पाता?
सफलता का पैमाना भले ही अलग हो, लेकिन हर इंसान अपने जीवन में सफल होना चाहता है। सफलता हमारे जीवन में वह सब कुछ देती है, जिसकी हमें ज़रूरत जीने के लिए पड़ती है। एक व्यक्ति की सफलता से उससे जुड़े और आसपास के लोग इन्स्पायर होते हैं। जिससे उनमें भी कुछ करने का जुनून आता है। इस तरह गोल सेट करना न सिर्फ खुद के लिए बल्कि इनडायरेक्टली सभी के लिए फ़ायदेमंद साबित होता है । क्योंकि गोल सेट करना गोल को अचीव करने की दिशा में पहला क़दम है। जब तक पहला कदम नहीं उठेगा, मंजिल की कल्पना भी कोरी कल्पना ही रह जाती है । इसलिए गोल सेट करना सफलता की सीढ़ी का पहला क़दम है।
गोल्स हमें हर दिन के टारगेट को पूरा करने के लिए ‘किक’ का काम करते हैं, हमें टाइम मैनेजमेंट सिखाते हैं। वरना लोग तो इंस्टा के रील्स देखने में घंटों यूं ही गुजार देते हैं। जब आप एक गोल सेट करते हैं तो उसके हिसाब से कई सारे शॉर्ट टर्म गोल्स भी बनाते हैं। शॉर्ट टर्म गोल्स पर ऐक्शन प्लान बनाना, मेजर करना, फीडबैक लेना ईजी होता है। अपनी मेहनत का रिजल्ट जल्दी जल्दी मिलने से मोटिवेशन भी बना रहता है। आपके गोल सेटिंग का जो असर होता है न, वह आस-पास के लोगों पर भी पड़ता है। उनको लगने लगता है कि यह तो हम भी कर सकते हैं। इस तरह आप और उनके लिए भी इंस्पिरेशन का काम करते हैं।
हर व्यक्ति फ्यूचर में कुछ बेहतर करने, कुछ बड़ा करने के सपने देखता है। गोल्स इसी सपने को पूरा करने के लिए एक रोडमैप का काम करते हैं।
गोल्स आपको फोकस्ड बनाते हैं। इससे डिसीजन मेकिंग एबिलिटी बढ़ती है, जिससे आप और कॉन्फिडेंट होते हैं। यह सारे फैक्टर्स गोल्स को लेकर डेडीकेशन और कमिटमेंट पैदा करते हैं। इससे एक मॉडरेट लेवल का स्ट्रेस जनरेट होता है, जो परफॉर्मेंस को बढ़ाता है। यानी आप अपना हंड्रेड परसेंट दे सकते हैं और हंड्रेड परसेंट देने से प्रोडक्टिविटी बढ़ती है। इससे एक औसत दर्जे का इंसान भी बड़ी सक्सेस हासिल कर सकता है।
गोल्स आपको फोकस्ड बनाते हैं। इससे डिसीजन मेकिंग एबिलिटी बढ़ती है, जिससे आप और कॉन्फिडेंट होते हैं। यह सारे फैक्टर्स गोल्स को लेकर डेडीकेशन और कमिटमेंट पैदा करते हैं। इससे एक मॉडरेट लेवल का स्ट्रेस जनरेट होता है, जो परफॉर्मेंस को बढ़ाता है। यानी आप अपना हंड्रेड परसेंट दे सकते हैं और हंड्रेड परसेंट देने से प्रोडक्टिविटी बढ़ती है। इससे एक औसत दर्जे का इंसान भी बड़ी सक्सेस हासिल कर सकता है।
अगर आप कुछ एक्स्ट्राऑर्डिनरी करना चाहते हैं तो यकीन मानिए गोल सेट किए बिना इसकी कल्पना भी बेमानी है। सही दिशा में अगर धीरे-धीरे ही सही लगातार बढ़ते रहे तो एक दिन सफलता निश्चित है। गोल्स आपको अधिक प्रभावी, कुशल, मेहनती और मोटिवेटेड बनाते हैं। जिससे असंभव लगने वाला काम भी संभव हो जाता है।
निदा फ़ाज़ली ने इस पर क्या खूब लिखा है..
“कोशिश भी कर, उम्मीद भी रख, रास्ता भी चुन
फिर इसके बाद थोड़ा मुक़द्दर तलाश कर..”
निदा फ़ाज़ली ने इस पर क्या खूब लिखा है..
“कोशिश भी कर, उम्मीद भी रख, रास्ता भी चुन
फिर इसके बाद थोड़ा मुक़द्दर तलाश कर..”
© प्रीति खरवार