दोनों ओर प्रेम पलता है कविता की मूल संवेदना

दोनों ओर प्रेम पलता है कविता की मूल संवेदना

प्रस्तुत दोनों ओर प्रेम पलता है कविता मैथिलीशरण गुप्त द्वारा रचित “साकेत” महाकाव्य के नवम सर्ग से ली गई है। इस कविता में विरहिणी उर्मिला का लक्ष्मण के प्रति अगाध प्रेम, विश्वास और प्रेम की एकांत पीड़ा का चित्रण किया गया हैं।

वन में गए लक्ष्मण की स्मृतियों से विह्वल उर्मिला प्रेम की वियोग जनित पीड़ा से आविष्ट (प्रभावित) होकर लक्ष्मण को याद कर रही है। वह जानती है कि प्रेम दोनों के मध्य है। लक्ष्मण भी अवश्य ही वियोगाग्नि की तपिश महसूस करते हुए उर्मिला को याद करते होंगे। 

दीपक और पतंगे के उदाहरण से उर्मिला अपनी बात को समर्थन देती है।यदि पतंगा जलता है तो दीपक भी तो जलता है।दीपक पतंगे को रोकता है कि वह उसकी लौ से दूर रहे लेकिन पतंगे की नियति है दीपक की लौ में झुलस कर मर जाना ।

पतंगे की विवशता है कि वह दीपक से दूर नहीं रह सकता। पतंगा अपनी जान बचा कर भी क्या करेगा क्योंकि इस जान बचाने के क्रम में वह अपने प्रेम से दूर हो जाएगा। आखिर मरने के अलावा उसके पास विकल्प ही क्या है? क्या यह उसकी असफलता है कि वह प्रेम के लिए सर्वस्व न्योछावर कर देता है? पतंगा दीपक को महान व स्वयं को क्षुद्र बताता है और फिर  पूछता है कि क्या क्षुद्र के लिए अपनी जान दे देना भी उसके हाथ में नहीं है।

आश्रय तो एक प्रकार से छलना है, भ्रम है। पतंगे को इस बात का भी अफ़सोस है कि दीपक के जलने को भी शुभता के प्रतीक के रूप में देखा जाता है जबकि पतंगे का जलना दूषित रूप में दर्शाया जाता है। इनके भाग्य की लिपि किस कदर काली है,यह सोचकर पतंगा दुखी है। 

उर्मिला के माध्यम से कविता की अंतिम पंक्तियों में कवि ने संसार की स्वार्थ वृत्ति पर चोट की है। पतंगा व दीपक दोनों जलते हैं।संसार दीपक के बलिदान को याद करता है क्योंकि उससे संसार को लाभ होता है।पतंगे के न्योछावर हो जाने को कभी किसी भी रूप में याद नहीं किया जाता है।

उर्मिला के माध्यम से कवि ने संसार की भेदभावमूलक दृष्टि पर प्रश्नचिन्ह लगाया है-जहाँ लक्ष्मण का भाई के प्रति प्रेम व त्याग जगत प्रसिद्ध है जबकि उर्मिला का त्याग सरलता से भुला दिया गया।

इस प्रकार गुप्त जी की दोनों ओर प्रेम पलता है कविता कैकेयी की भाँति उर्मिला की पीड़ा को वाणी देती है। दूसरी तरफ प्रेम की एकांतिक साधना और त्याग भावना का भी मार्मिक चित्रण करती है।

 

© डॉक्टर संजू सदानीरा

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