नौका विहार कविता की मूल संवेदना : Nauka vihar kavita ki mool samvedna
प्रश्न- नौका विहार कविता के आधार पर पंत जी के प्रकृति सम्बंधी विचारों का वर्णन करें।
अथवा
नौका विहार कविता का भाव सौन्दर्य स्पष्ट करें।
उत्तर-
नौका विहार कविता की रचना करने वाले सुमित्रानंदन पंत छायावादी कविता के प्रतिष्ठापक कवियों में से हैं और अपनी भाषा की मसृणता (कोमलता)के लिए जगत प्रसिद्ध है। इन्हें “प्रकृति का सुकुमार कवि” भी कहते हैं।
नौका विहार कविता पंत जी की एक अत्यंत लोकप्रिय कविता है। इस कविता में उनके द्वारा ग्रीष्म ऋतु की एक चांदनी रात में गंगा के पानी में नौका विहार के मनोहारी दृश्यों का चित्रण किया गया है। कवि ने ग्रीष्मकाल के कारण कृशकाय हो गई गंगा के सौन्दर्य का चित्ताकर्षक चित्रण किया है।
अर्द्ध रात्रि में नीरव आकाश की स्निग्ध छाया में गंगा स्वच्छ, श्वेत चांदनी में सैकत शैया( बालूका राशि रूपी सेज) पर थकी हुई विश्राम कर रही है । गंगा नदी रात्रि में उस भांति शांत है,जैसे कोई तपस्वी बाला हो,जिसके चंद्र-मुख पर लहरों का आचंल अखेलियाँ कर रहा हो ।
कवि ने गंगा का मानवीय रूप में चित्रण किया है,जिस पर लहरों का सुंदर आंचल लहरा रहा हैं।यह सौंदर्य निरूपण नूतन, ताजगी पूर्ण और प्रकृति के प्रति अनुराग से आपूरित करने वाला है।
कवि नौका विहार के अपने अनुभव को बताते हुए कहते है की चांदनी रात के प्रथम पहर में गंगा के चल जल ( बहते पानी में) अपनी नाव लेकर वे अपने मित्रों के साथ शीघ्र आगे बढ़ चले। नौका को लघु हंसिनी बताते हुए कवि ने अप्रतिम वर्ण मैत्री और नाद सुंदर दिखाया है। प्रकृति अपनी छटा बिखेर रही है। रेत रूपी खुली हुई सीपी पर ज्योति रूपी मोती विचर रहा है अर्थात चांदनी शोभित हो रही है।
कवि की नौका ज्यों-ज्यों किनारे की ओर बढ़ती है,त्यों- त्यों कवि के विचार अनेक रूपों में सामने आते हैं। अर्ध रात्रि को कूकते पक्षी में उन्होंने विरह व्याकुल कोकी पक्षी की कल्पना की है तो नदी के बीच खड़े टापू में माँ की गोद में समाए शिशु को देखा है।
लहरों में किरणें, मोती, मणि,लता अनेक कल्पनाएँ उनकी प्रकृति को देखने की विराट दृष्टि का परिचय देती हैं। दशमी के चांद को मुग्धा नायिका बता कर चाक्षुष बिम्ब का सृजन किया है।
कविता की अंतिम पंक्तियों तक आते-आते कवि की सौन्दर्य पूर्ण दृष्टि दर्शन से भर जाती हैं। लहरों के पानी के सातत्य में उन्हें जीवन की निरंतरता दिखाई देने लगती है। “हम न रहेंगे, तुम न रहोगे, रह जाएंगी निशानियाँ” की तर्ज़ पर कवि को नदी, नौका लहरों के माध्यम से सृष्टि के शाश्वत चक्र का भान होता है।
जीवन का आवागमन अनवरत चलता रहेगा और स्वयं जीवन नये रूपों में विद्यमान रहेगा, इस सकारात्मक संदेश के साथ कविता समाप्त होती है। भाव और कला सौन्दर्य की दृष्टि से यह कविता अपनी अमिट छाप छोड़ने में सफल होती है।
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© डॉ. संजू सदानीरा
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