फ़ातिमा शेख़ : भारत की पहली मुस्लिम महिला शिक्षक : Fatima Sheikh ; India’s first muslim female teacher

 

फ़ातिमा शेख़ : भारत की पहली मुस्लिम महिला शिक्षक

 

“शिक्षित बनो, संगठित रहो, संघर्ष करो।”

डॉ अंबेडकर का यह कथन निश्चय ही जीवन को सार्थक करने की दिशा में अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। शिक्षा मनुष्य को तर्कशील और जागरुक बनाती है और ज्ञान के लिए नए दरवाजे खोलते है लेकिन इसके साथ ही यह और भी ज़रूरी है कि शिक्षा प्राप्ति का अवसर सभी के लिए समान रूप से उपलब्ध हो।

हमारे संविधान में स्वतंत्रता, समानता और न्याय मौलिक अधिकारों में वर्णित हैं, हालांकि यह किस सीमा तक नागरिकों को प्राप्त हो रहा है, यह विचारणीय है। फिर भी संविधान लागू होने के बाद से अब तक धीमी गति से ही सही परंतु काफ़ी बदलाव सामने आ रहे हैं। शिक्षा से जागरुकता बढ़ती है और जागरुकता न्याय के लिए आधार का काम करती है। आज हम यह कह सकते हैं कि जब संविधान ने हमें समान दर्ज़ा दिया है तो हमें समान अवसर भी मिलना चाहिए।

लेकिन क्या आप कल्पना कर सकते हैं उस समय की, जब संविधान का कोई अस्तित्व नहीं था और शूद्रों,पिछड़ों और महिलाओं के लिए शिक्षा की बात कल्पना से भी परे की चीज थी। जब समाज के नियम-क़ायदे एक वर्ग विशेष द्वारा धार्मिक रूढ़ियों के आधार पर तय किए जाते थे। जब आम वर्ग की राय का कोई मूल्य न था, इसमें भी महिलाओं की दशा और भी चिंतनीय थी। ऐसे में महाराष्ट्र की दो महिलाओं ने शिक्षा के क्षेत्र में ऐसे अभूतपूर्व कार्य किये, जिसने इन्हें हाशिए से लाकर मुख्यधारा में पहले पायदान पर खड़ा कर दिया।

फ़ातिमा शेख़ और सावित्रीबाई फुले भारत की पहली महिला शिक्षिकाएं थी जिन्होंने भारत में सभी के लिए शिक्षा सुनिश्चित करने का प्रयास किया। इन्होंने न सिर्फ़ महिला शिक्षा की बात की अपितु सभी वर्ग के लोगों के लिए शिक्षा की मांग की। वह भी ऐसे समय में जब शिक्षा उच्च वर्ग के पुरुषों तक सीमित थी। इन्होंने सभी वर्ग के पुरुषों और विशेषकर महिलाओं के लिए शिक्षा का प्रबंध किया।

फ़ातिमा शेख़

भारत की पहली मुस्लिम महिला शिक्षक फ़ातिमा शेख़ का जन्म 9 जनवरी 1831 को पुणे के एक साधारण मुस्लिम परिवार में हुआ था। फ़ातिमा और उनके भाई उस्मान शेख ने सावित्रीबाई फुले और उनके जीवनसाथी ज्योतिबा फुले के साथ मिलकर निम्न माने जाने वाली जाति के लोगों को शिक्षित करने के लिए अथक प्रयास किया। हालांकि इस वज़ह से फ़ातिमा शेख़ और उनके भाई को बहुत सी समस्याओं का सामना करना पड़ा फिर भी इनका मनोबल नहीं टूटा।

फ़ातिमा शेख़ की सावित्रीबाई फुले से मुलाक़ात-

जब पिछड़ों दलितों और महिलाओं के लिए सावित्रीबाई फुले और ज्योतिबा फुले ने पहला स्कूल खोला तभी से कट्टर रूढ़िवादी लोग इनके दुश्मन बन गए। इन पर कीचड़, गोबर, पत्थर तक फेंका जाने लगा । तरह- तरह से इन्हें शारीरिक व मानसिक यंत्रणा का सामना करना पड़ा। आख़िरकार एक दिन जब ज्योतिबा फुले के पिता ने समाज के दबाव में आकर इन्हें घर से निष्कासित कर दिया, तब जाकर फ़ातिमा शेख़ और उस्मान शेख ने इन्हें अपने घर में जगह दी और इस तरह फ़ातिमा शेख़ और सावित्रीबाई फुले की दोस्ती हुई।

फ़ातिमा शेख़ और सावित्रीबाई फुले की दोस्ती इतनी गहरी हो गई कि इन्होंने जीवन भर एक-दूसरे का साथ नहीं छोड़ा। यहां तक कि 1856 में प्लेग के रोगियों की सेवा करते समय जब सावित्रीबाई बीमार पड़ गईं तब फ़ातिमा शेख़ ने स्कूल और मिशन का सारा काम संभाल लिया। इस तरह फ़ातिमा शेख़ ने शिक्षा के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया।

फ़ातिमा शेख़ का शिक्षा के क्षेत्र में योगदान-

1 जनवरी 1848 को जब फुले दंपति ने लड़कियों के लिए पहला स्कूल खोला, तो फ़ातिमा शेख़ वहां की पहली छात्रा बनीं। इसके बाद अमेरिकी मिशनरी शिक्षण प्रशिक्षण संस्थान से टीचर्स ट्रेनिंग लेने के बाद फ़ातिमा शेख़ ने इसके साथ ही उन सभी पांच स्कूलों में पढ़ाया,जिनकी स्थापना फुले दंपति ने की थी। इसके अलावा फ़ातिमा ने 1851 में मुंबई में दो स्कूलों की सह-स्थापना भी की थी।

फ़ातिमा शेख़ सावित्रीबाई के साथ घर-घर जाकर दलितों,पिछड़ों एवं मुस्लिम समुदाय के बच्चों विशेषकर लड़कियों को शिक्षा के लिए जागरुक करती थीं। फ़ातिमा शेख और सावित्रीबाई फुले इन्हें स्वदेशी पुस्तकालय में पढ़ने के लिए भी प्रेरित किया करती थीं। इन्होंने सभी धर्म और जातियों के बच्चों को पढ़ाया और अपना पूरा जीवन शिक्षा के लिए समर्पित कर दिया। फ़ातिमा शेख़ के योगदानों को देखते हुए 9 जनवरी 2022 को गूगल ने उनकी 191वीं जयंती में डूडल बनाकर इनके योगदान को याद और इन्हें सम्मानित किया। 

अन्य सामाजिक योगदान-

फ़ातिमा शेख़ न सिर्फ भारत की पहली मुस्लिम महिला शिक्षक थीं बल्कि ये समाज सुधारक और नारीवादी कार्यकर्ता भी थीं। इन्होंने समाज में व्याप्त कुरीतियों जैसे- जातिवाद, लिंगभेद,अंधविश्वास इत्यादि के ख़िलाफ़ तन-मन और धन से काम किया। कट्टर रूढ़िवादियों की धमकियों के बावजूद फ़ातिमा डरीं नहीं और सावित्री के साथ मिलकर लगातार समाज सेवा में जुटी रहीं। जब सावित्री ने बाल हत्या प्रतिबंधक गृह खोला तो फ़ातिमा ने पूरे मनोयोग से उसमें प्रसूताओं की सेवा सहायता की। आगे चलकर फ़ातिमा ने स्कूलों में प्रधानाचार्य और प्रबंधक के तौर पर भी काम किया।

इस तरह फ़ातिमा शेख़ को भले ही इतिहास में हाशिए पर रखा हो,लेकिन समाज इनके योगदानों को कभी विस्मृत नहीं कर सकता। स्त्री शिक्षा के साथ ही इन्होंने ख़ासकर मुस्लिम समुदाय की कुरीतियों और ग़ैरबराबरी के ख़िलाफ़ जो संघर्ष किया, वह सदियों तक लोगों के लिए प्रेरणा का काम करता रहेगा। 

 

इसी तरह अगर आप सावित्रीबाई फुले के बारे में जानकारी हासिल करना चाहते हैं तो कृपया नीचे दिये गये आर्टिकल की लिंक पर क्लिक कर पूरा आर्टिकल पढ़ें..

https://www.duniyahindime.com/2023/07/Savitribai%20Phule%20.html

 

© प्रीति खरवार

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