मनहुं कला ससिभान पद की व्याख्या

मनहुं कला ससिभान पद की व्याख्या

 

मनहुं कला ससिभान, कला सोलह सो बन्निय ।

बाल बेसि ससि ता समीप, अम्रित रस पिन्निय ।।

विगसि कमल म्रिग भ्रमर, बैन षंजन मृग लुट्टिय ।

हीर कीर अरु बिम्ब, मोति नव सिष अहि घट्टिय ।।

छप्पति गयन्द हरि हंस गति, बिह बनाय संचै सचिय।

पदमिनिय रूप पदमावतिय, मनहुं काम कामिनि रचिय ।।

 

प्रसंग

प्रस्तुत पद्यांश मनहुं कला ससिभान पाठ्य पुस्तक में संकलित पृथ्वीराज रासो के पद्मावती समय से उद्धृत है, जिसके रचयिता चंदबरदाई हैं।

 

संदर्भ

समुद्र शिखर के राजा विजयपाल के यहां उनकी रानी पद्मसेन ने पुत्री को जन्म दिया है। पुत्री जिसका नाम पद्मावती रखा गया है, के अद्भुत मनोहरी रूप- सौंदर्य का चित्रण रचनाकार चंद्रबरदाई द्वारा अत्यंत आकर्षक तरीके से प्रस्तुत पद में किया गया है।

 

व्याख्या

पद्मावती नाम की वह बालिका इतनी सुंदर है कि ऐसा लगता है मानो स्वयं साक्षात चंद्रमा की कला ही हो एवं उसकी रचना चंद्रमा की सभी 16 कलाओं को मिलाकर की गई हो। शैशवावस्था की उसकी आभा,कोमलता, सरलता एवं भोलापन इस प्रकार से अतुलनीय है मानो प्रतीत होता है जैसे स्वयं चंद्रमा ने बालिका के समक्ष बैठकर अमृत तुल्य चांदनी को ग्रहण किया हो । उस बालिका पद्मावती के अतुलनीय सौंदर्य ने खिले हुए कमल, मृग,भ्रमर, वेणु तथा खंजन इत्यादि सौंदर्य प्रतिमानों को लूट लिया, उन्हें फीका कर दिया। प्रकारांतर से इसका अर्थ यह भी निकल सकता है कि पद्मावती के शरीर की विशेष सुरभि उसके कटाक्ष (आंखें),चरणों ने, चेहरे एवं हाथों ने कमल जैसे पुष्प की कांति भी अपने अलौकिक सौंदर्य की समक्ष आभाहीन कर दिया हो। पद्मावती के नेत्रों की विशालता ने हिरणों के नेत्रों की विशालता को पराजित कर दिया। उसकी केशराशि की कालिमा एवं सघन सुचिक्कनता (गहरी चमक) ने काले भंवरों को भी शर्मसार कर दिया।

उसके स्वर की मिठास एवं खनक के सामने बांसुरी की मिठास भी तुच्छ जान पड़ती है। उसके आकर्षक नेत्रों की बाल सुलभ चंचलता के सामने खंजन पक्षी की चंचलता मौन है। आपादमस्तक (सर से पांव तक) उसके रूप की अमंद कांति मोती की कांति (चमक) को भी मंद करते हुए निरंतर आभामय है। पद्मावती का गोरा रंग हीरे के समान दमक रहा है। उसकी नासिका का तीखापन तोते की चोंच की भ्रांति पैदा कर रहा है और उसके अधरों के लालिमा बिंबा फल की लालिमा के समान है। उसकी चाल इतनी मदमस्त है कि उसकी चाल को देखकर हाथी, हंस और सिंह (अपनी चाल की तुलना सुंदर चालों में देखकर) आज पद्मावती की चाल से शरमा कर दूर भाग खड़े हुए। पद्मावती के रूप को देखकर ऐसा प्रतीत होता है मानो सृष्टिकर्ता ने शची (इंद्राणी) का रूप ही ढाल दिया हो। सचिय को अगर सत्य माना जाए तो यह भी अर्थ हो सकता है कि विधाता ने मानो पद्मावती के रूप में सभी सात्विक उपकरणों का विधान एकत्रित/सृजित किया हो। चार प्रकार की नारी जातियों (?) में से सर्वश्रेष्ठ मानी जाने वाली पद्मिनी नारी के विशेष गुणों से कवि ने पद्मावती को युक्त चित्रित किया है। अंतिम पंक्ति में कवि चंद्रबरदाई ने पद्मावती को कामदेव की पत्नी रति का ही अवतार बताया है।

 

विशेष

1.पद्मावती के अद्वितीय रूप का चित्रण किया गया है।

2.आदिकाल और सूफ़ी काव्य में इसे परंपरागत रूप से देखा जा सकता है। नखशिख वर्णन इसी परिपाटी के अंतर्गत आता है।

3.रूप चित्रण का यह तरीका छायावाद के पहले तक प्रचलित रहा। छायावाद और नई कविता से नखशिख वर्णन की पारंपरिक शैली की जगह लाक्षणिक और भावात्मक यथार्थपरक चित्रण प्रारंभ हुआ।

4.’बाल बेस’ और ‘हरि हंस’ में छेकानुप्रास का प्रयोग प्रशस्य है। ‘मनहुं’ में उत्प्रेक्षा और संपूर्ण पद में अतिशयोक्ति अलंकार का प्रयोग हुआ है।

5.कवित्त छंद का प्रयोग हुआ है।

6. भाषा अपभ्रंश और अवहट्ठ मिश्रित है।

7.शैली वर्णनात्मक है।

8.आज के जमाने में इस नखशिख परंपरा को ‘मेल गेज़’ और पुरुषप्रधान समाज की मनोवैज्ञानिक समस्या के तौर पर चिन्हित किया जा सकता है।

9.एक और बात जो खटकने वाली है वह है एक बच्ची को पद्मिनी नारी और रति की तरह चित्रित करना। कभी-कभी ऐसे वर्णनों को पढ़कर कवियों के ‘पीडोफाइल’ होने की भी आशंका होती है।

इस प्रकार का नखशिख वर्णन, स्त्री शरीर का वर्णन कब साहित्य से हटेगा पता नहीं, शुरू तो आदिकाल से भी पहले से है ही।

 

© डॉक्टर संजू सदानीरा

 

केवल हिम कविता की व्याख्या/ भाव सौंदर्य

Dr. Sanju Sadaneera

डॉ. संजू सदानीरा एक प्रतिष्ठित असिस्टेंट प्रोफेसर और हिंदी साहित्य विभाग की प्रमुख हैं।इन्हें अकादमिक क्षेत्र में बीस वर्षों से अधिक का समर्पित कार्यानुभव है। हिन्दी, दर्शनशास्त्र, मनोविज्ञान विषयों में परास्नातक डॉ. संजू सदानीरा ने हिंदी साहित्य में नेट, जेआरएफ सहित अमृता प्रीतम और कृष्णा सोबती के उपन्यासों पर शोध कार्य किया है। ये "Dr. Sanju Sadaneera" यूट्यूब चैनल के माध्यम से भी शिक्षा के प्रसार एवं सकारात्मक सामाजिक बदलाव हेतु सक्रिय हैं।

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