मन रे परसि हरि के चरन पद की व्याख्या

मन रे परसि हरि के चरन पद की व्याख्या

 

मन रे परसि हरि के चरन।

सुभग सीतल कमल- कोमल त्रिविध – ज्वाला- हरन।

जो चरन प्रह्मलाद परसे इंद्र- पद्वी- हान।।

जिन चरन ध्रुव अटल कीन्हों राखि अपनी सरन।

जिन चरन ब्राह्मांड मेंथ्यों नखसिखौ श्री भरन।।

जिन चरन प्रभु परस लीने तरी गौतम धरनि।

जिन चरन धरथो गोबरधन गरब- मधवा- हरन।।

दास मीरा लाल गिरधर आजम तारन तरन।।

 

प्रसंग

मन रे परसि हरि के चरन पद राजस्थान की प्रख्यात कृष्ण भक्त कवयित्री मीरांबाई द्वारा रचित है।

 

संदर्भ

इस पद में मीरांबाई अपने आराध्य के चरण कमल की महिमा का बखान कर रही हैं।

 

व्याख्या

भक्त कवयित्री मीरां भक्ति में निमग्न होकर अपने मन को हरि (भगवान श्रीकृष्ण) के चरणों में लग जाने का निर्देश देती हैं। उन चरणों की प्रशंसा वह विविध उदाहरणों के साथ करते हुए कहती हैं कि हे मन! भगवान के चरणों का मन ही मन स्पर्श कर। वे चरण जो सुंदर, शीतल, कमल के समान कोमल हैं और ज्वालामुखी सदृश तीनों दुखों (दैहिक, दैविक, भौतिक) को हर लेते हैं, शांत कर देते हैं। जिन चरणों का ध्यान लगाकर प्रह्लाद ने इंद्र की पदवी पाई। इंद्रासन तक जिस प्रहलाद को प्रभु ने दे दिया, उन चरणों का ध्यान लगाने को मीरां अपने मन को कहती हैं।

ध्रुव ने जिन चरणों का ध्यान रखते हुए अपनी अटल तपस्या पूरी की। ‘ध्रुव’ अटल का ही पर्यायवाची बन गया है। मन उन चरणों का ध्यान लगा। जिन चरणों में संपूर्ण ब्रह्मांड आधारित है, धरती टिकी हो, नख से सर तक जिन चरणों ने इस पृथ्वी को सौंदर्य से भर दिया।

जिन चरणों के स्पर्श से गौतम ऋषि की पत्नी अहल्या का उद्धार हुआ, पत्थर से पुनः स्त्री रूप में आ गई, जिन चरणों से श्री कृष्ण ने कालिया नाग के फन को रौंदा और ग्वाल बालों के समक्ष लीला की, जिन चरणों से गोवर्धन पर्वत को धारण किया और इंद्र का गर्व हरण किया –वही श्री कृष्णा अपने ऐसे दिव्य चरणों में मीरा को अपनी दासी जानकर शरण दें,उनकी नैया पार लगाएँ।

 

विशेष

1.प्रभु कृपा पर आश्रित भक्त किस प्रकार उनके चरणों की महिमा का गान करता है पद से इसका भान होता है।

2.इस पद में प्रहलाद, ध्रुव, कालिया नाग, अहल्या इत्यादि अनेक प्रसंगों और अंतर्कथाओं का उल्लेख किया गया है।

3.संपूर्ण पद में दास्य भाव की भक्ति का चित्रण किया गया है।

4.प्रसाद गुण और पांचाली रीति है।

5.गेय मुक्तक पद है।

6. सुभग सीतल कमल कोमल में छेकानुप्रास और संपूर्ण पद में अंत्यानुप्रास अलंकार का प्रयोग दर्शनीय है।

7.राजस्थानी भाषा का स्वाभाविक प्रयोग हुआ है।

8.शैली वर्णनात्मक है।

 

© डॉक्टर संजू सदानीरा

 

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