यह धरती है उस किसान की कविता की मूल संवेदना : Yeh dharti hai us kisaan ki

 यह धरती है उस किसान की कविता की मूल संवेदना : Yeh dharti hai us kisaan ki

 

प्रस्तुत कविता यह धरती है उस किसान की प्रगतिवाद के कवियों में से एक कवि केदारनाथ अग्रवाल द्वारा रचित है। केदारनाथ अग्रवाल प्रगतिवादी कवियों में अपने प्रकृति प्रेम के लिए विशिष्ट स्थान रखते हैं। प्रगतिवादी कविता का मूल स्वर विद्यमान होने के साथ साथ प्रेम के स्निग्ध रूप का चित्रण भी इनके काव्य में मिलता है। 

“धूप खिली है चांदी की साड़ी पहने,मैके में आई बेटी की तरह मगन है “- सर्दियों की धूप के लिए लिखी इनकी पंक्ति उपमा के विशिष्ट सौंदर्य से युक्त है।युग की गंगा, नींद के बादल, अपूर्वा,लोक और अलोक, फूल नहीं रंग बोलते हैं और आग का आइना इत्यादि इनके प्रसिद्ध काव्य संकलन हैं।

अपूर्वा के लिए उन्हें 1986 ईस्वी में साहित्य अकादमी पुरस्कार प्रदान किया गया। फूल नहीं रंग बोलते हैं काव्य संकलन सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार से सम्मानित हैं। प्रगतिशील लेखक संघ से सक्रियता से जुड़े अग्रवाल जी का संपूर्ण काव्य प्रतिबध्दता से संयुक्त है। 

यह धरती है उस किसान की एक सीधी सरल सामाजिक सरोकार से भरी हुई एक प्रगतिवादी कविता है। इस कविता में कवि द्वारा किसान व धरती का संबंध तथा किसान का धरती पर अधिकार प्रत्यक्ष रूप से बताया गया है।

कवि कहता है कि यह धरती उस किसान की है,जो धरती पर आश्रित रहकर उसे अपना जीवन देता है। जो हर समय बरसात में, कड़ी धूप में, शीत ऋतु की बर्फीली हवाओं में भी तीखी छुरी से धरती का सीना चीर कर मिट्टी को जोतता है तथा उसमें बीज डालता है। वह किसान जो खेती के लिए मानसून से शर्तें लगाता है और अपना भाग्य ही दांव पर लगा देता है-यह उस किसान की धरती है।

यह धरती न ही कृष्ण की है, न ही राम की। न राजा की है न प्रजा की बल्कि उस किसान की है जो कि नए वर्ष में अनाज का ढेर लगा देता है। भीषण बादल भी इसे मोल नहीं ले पाए ,वो आसमान में गरज-गरज कर कभी भी धरती को जीत नहीं पाए। कितने ही भूचाल आए, भूकंप आए तब भी यह धरती मिटती नहीं है,अपितु हर बार उभर आती है।

धरती पर उसी किसान का अधिकार है जो उस मिट्टी को परख सकता है,जो उस मिट्टी के साथ धूप में तपता है, जलता है, गल जाता है। जो इस पर अपना जीवन खो देता है,जो उसी की महिमा गाते हुए उसी में समा जाता है और उसी रूप में जीवित रहता है- इस धरती का पूर्ण हकदार वह किसान है।

इस प्रकार यह कविता खेतों पर खेती करने वालों के हक़ की बात करती है। खेत किसी के नाम लिखें हों, दशकों से जो उसको अपने खून पसीने से सींच रहा है, उसकी उर्वरता के लिए मेहनत कर रहा है, उसे बंजर बनने से बचा रहा है- वस्तुतः वही उस खेत का असली हकदार है।कविता में अन्नदाता को ईश्वर से भी ऊपर रखा गया है। “ जो बोएगा, वो मालिक है “ की थीम पर आधारित यह कविता प्रगतिवादी दृष्टि से अपनी बात रखती है। 

 

© डॉ. संजू सदानीरा 

 

छात्रावास में कविता पाठ कविता की मूल संवेदना : Chhatrawas me kavita path

Dr. Sanju Sadaneera

डॉ. संजू सदानीरा एक प्रतिष्ठित असिस्टेंट प्रोफेसर और हिंदी साहित्य विभाग की प्रमुख हैं।इन्हें अकादमिक क्षेत्र में बीस वर्षों से अधिक का समर्पित कार्यानुभव है। हिन्दी, दर्शनशास्त्र, मनोविज्ञान विषयों में परास्नातक डॉ. संजू सदानीरा ने हिंदी साहित्य में नेट, जेआरएफ सहित अमृता प्रीतम और कृष्णा सोबती के उपन्यासों पर शोध कार्य किया है। ये "Dr. Sanju Sadaneera" यूट्यूब चैनल के माध्यम से भी शिक्षा के प्रसार एवं सकारात्मक सामाजिक बदलाव हेतु सक्रिय हैं।

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