सोहनलाल द्विवेदी की कविता ‘रे मन’ का भावार्थ
सोहनलाल द्विवेदी आधुनिक काल के सुप्रसिद्ध कवि हैं। खड़ी बोली को साहित्य में प्रतिष्ठित करने वाले कवियों में इनका महत्त्वपूर्ण योगदान है। सोहनलाल द्विवेदी का जन्म 22 फरवरी 1906 को उत्तर प्रदेश के फतेहपुर जिले की बिंदकी तहसील के सिलौजी गाँव में हुआ था। सोहनलाल द्विवेदी, द्विवेदी युग के अत्यंत महत्त्वपूर्ण कवि हैं। इनके काव्य में देशभक्ति, युवाओं को प्रेरणा और गांधीवाद के स्वर मुख्य रूप से गुंथे हुए हैं।
“कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती” लोकप्रिय कविता सोहनलाल द्विवेदी द्वारा रचित है, जिसे भ्रमवश लोग हरिवंश राय बच्चन की कविता समझ लेते हैं। इन्हें अपनी साहित्यिक यात्रा के दौरान अनेक पुरस्कार प्राप्त हुए, जिनमें से नागरिक सम्मान पद्मश्री महत्त्वपूर्ण है। महात्मा गांधी के लिए लिखी उनकी कविता “हे कोटिमूर्ति तुमको प्रणाम” अत्यंत प्रसिद्ध कविता है। सुनो कहानी, अंधेर नगरी, पूजा गीत, बढ़े चलो व प्रकृति संदेश इत्यादि इनकी अन्य रचनाएँ हैं। स्वतंत्रता सेनानी और देशभक्त कवि के रूप में इनका योगदान उल्लेखनीय है।
रे मन कविता के माध्यम से कवि सोहनलाल द्विवेदी अपने मन के माध्यम से लोगों विशेषकर युवाओं को हर परिस्थिति में सकारात्मक बने रहने की प्रेरणा दे रहे है।
कवि प्रेरित करते हुए कह रहे हैं कि कितना भी भयंकर तूफान हो ,उनका मन अचल हिमवान बना रहे अर्थात प्रबल वेग के तूफान के समय भी जिस भांति बर्फ के पहाड़ जमे-टिके रहते हैं, वैसे ही उनका मन भी विपरीत परिस्थितियों में विचलित न हो।
रात कितनी भी घनी हो,धरती का कोना भी दिखाई न देता हो, उनका मन पश्चिम में डूबने वाला सूर्य न बने बल्कि स्वर्णिम सबेरा बन कर पूरब में खिले। कहने का भाव है कि प्रतिकूल समय में जैसे लोग अस्त हो जाते हैं, समाप्त हो जाते हैं,कवि का मन समाप्त न हो वरन् अनुकूल समय की प्रतीक्षा करे और फिर नये सूर्य की तरह उदित हो!
जीवन-सागर में कितना भी भयानक तूफान आ जाए, किनारे की थाह दूर तक न दिखे,कवि अपने मन से चाहते हैं कि (वह) उनका मन ऐसी विषम प्राकृतिक परिस्थिति में सागर का भरोसेमंद जलयान बन कर उनको संबल दे।
वाटिका में कमल पुष्प की कलियां संकुचित (सिकुड़) हो गयी हों, किरणें भी बिखर गयी हों, तुषारावृत्त अंधेरे कूप से समय में कवि अपने मन से भ्रमर की मनोहर तान बनने की कामना करते हैं। कदाचित कवि कहना चाहते हैं कि बुरे समय में भी मधुर संगीत मन को बुझने से बचाता है।
ध्यातव्य है कि कविताओं में जो शब्द आते हैं,वे सिर्फ़ अपना अभिधेयार्थ (शाब्दिक अर्थ) ही व्यक्त नहीं करते, बल्कि लक्षणा और व्यंजना में भी अर्थ ध्वनित करते हैं। कविता में तो वस्तुत: अभिधा से ज्यादा लक्षणा और व्यंजना का ही अधिक काम लिया जाता है।
ये आंधी, तूफान, जल की तीव्र लहरियां वास्तव में जीवन के विभिन्न पड़ावों में आने वाली मुसीबतें हैं। कवि अपने मन को मजबूती से डटे रह कर विपरीत प्रभाव से बचे रहने की आशा करते हैं। मानव जीवन में कठिनाइयों रूपी झंझावात आते रहते हैं,यह बिल्कुल स्वाभाविक है। असल बात है,उन झंझावातों को झेल जाना और पुनः ऊर्जस्वित होकर जीवन पथ पर बढ़ते चलना।
यह एक प्रेरणा गीत है। इसे उद्धबोधन गीत, प्रयाण गीत या संदेश गीत भी कहा जा सकता है। हर युग की अपनी चुनौतियां रही हैं, रहेंगी, ऐसे में यह प्रेरक गीत हर युग में प्रासंगिक रहेगा।
सरल शब्दों में प्रभावी ढंग से कवि अपनी भावनाओं को प्रकट करने में सफल रहे हैं।
© डॉ. संजू सदानीरा
रे मन – सोहनलाल द्विवेदी
प्रबल झंझावत में तू
बन अचल हिमवान रे मन।
हो बनी गम्भीर रजनी,
सूझती हो न अवनी,
ढल न अस्ताचल अतल में
बन सुवर्ण विहान रे मन।
उठ रही हो सिन्धु लहरी
हो न मिलती थाह गहरी
नील नीरधि का अकेला
बन सुभग जलयान रे मन।
कमल कलियाँ संकुचित हो,
रश्मियाँ भी बिछलती हो,
तू तुषार
गुहा गहन में
बन मधुप की तान रे मन !




