समरथ को नहीं दोष गोसाईं: शिल्प और संवेदना/ मूल संवेदना

 “समरथ को नहीं दोष गोसाईं” एकांकी के शिल्प व संवेदना पर प्रकाश डालें। ” 


“समरथ को नहीं दोष गोसाईं” एकांकी नुक्कड़ नाटकों

की परम्परा का सटीक एवं सशक्त उदाहरण है।

नुक्कड़ नाटक लोककला की श्रेणी में आते है। खुले मैदान जन समुद्र के बीच बिल्कुल अनौपचारिक रूप से खेला जाता है, जिसमें स्थान एवं समय के अनुसार तत्कालीन परिस्थितियों में परिवर्तन भी होते रहते हैं। 


“समरथ को नहीं दोष गोसाईं” भी समय-समय पर परिवर्तित और परिवर्धित होता रहा है। यह एकांकी के रूप में हमारे पाठ्यक्रम में संकलित है, परन्तु मूलत: नुक्कड़ नाटक की समस्त विशेषताओ को वहन करता है। यह मूलतः एक आन्दोलनपरक एवं विचारात्मक एकांकी है। इसके माध्यम से लेखक ने समाज की अनेक बुराईयों पर ख़ुद पैनी नज़र डाली है। 


मुनाफ़ाखोरी, मिलावटखोरी, कालाबाजारी, जमाखोरी इत्यादि समस्याएं जिससे जनता बुरी तरह त्रस्त है, इन पर लेखक सफदर हाशमी ने बहुत ही बढ़िया व्यंग्य किया है। अफसर, नेता, पुलिस के गठजोड़ से नुकसान को भी जीवन्त शैली में दर्शाया गया है। 


राजनीतिक दलों के निहित स्वार्थों और जनता से झूठे वादे करने की प्रवृत्ति पर भी लेखक का ध्यान गया है। राजनीतिक दल किस तरह धर्म का इस्तेमाल लोगों की एकता और सौहार्द को तोड़ने एवं उन्हे असली मुद्दों से भटकाने के लिए करते हैं, इन सभी पहलुओं पर भी करारा व्यंग्य किया गया है। राशन कार्ड, रहने के लिए घर की व्यवस्था इत्यादि प्रश्नों के साथ घुमन्तू जातियों, जिनका कोई स्थायी निवास नहीं होता,इनकी समस्याओं से भी एकांकी में पाठकों को जोड़ा गया है।


साधनहीन लोगों की रोज़मर्रा की तमाम समस्याओं पर एकांकीकार ने संवेदनात्मक दृष्टि डाली है। उनकी इस स्थिति के ज़िम्मेदार व्यक्तियों की नकारात्मक भूमिका पर उन्होंने क्षोभ भी व्यक्त किया है।


निष्कर्ष:- कुल मिलाकर यह कह सकते हैं, कि ये एकांकी आम आदमी की रोज़ की समस्याओ और ज़रूरतों पर मानवीय दृष्टि से पड़ताल करने वाला है। इसके माध्यम से राजनीतिज्ञों की स्वार्थ दृष्टि,अफसरों की रिश्वतखोरी और आम आदमी की लाचारी पर मानवीय दृष्टि से सोचने के साथ- साथ तमाम विसंगतियों पर व्यंग्य की तीखी बौछार भी लोकनाट्य शैली में भी गई है।


-डॉक्टर संजू सदानीरा

विभागाध्यक्ष हिंदी साहित्य

मोहता पीजी कॉलेज

सादुलपुर, चूरू, राजस्थान

Priti Kharwar

प्रीति खरवार एक स्वतंत्र लेखिका हैं, जो शोध-आधारित हिंदी-लेखन में विशेषज्ञता रखती हैं। बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय से मनोविज्ञान में परास्नातक प्रीति सामान्य ज्ञान और समसामयिक विषयों में विशेष रुचि रखती हैं। निरंतर सीखने और सुधार के प्रति समर्पित प्रीति का लक्ष्य हिंदी भाषी पाठकों को उनकी अपनी भाषा में जटिल विषयों और मुद्दों से सम्बंधित उच्च गुणवत्ता वाली अद्यतन मानक सामग्री उपलब्ध कराना है।

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