समलैंगिकता क्या है? : What is homosexuality in hindi
राजा रानी की कहानी हो या क्लासिक लव स्टोरी जैसे लैला मजनू, रोमियो-जूलियट, हीर-रांझा। इन सब में एक बात कॉमन है और वह है अपोजिट सेक्स के प्रति अट्रैक्शन और रोमांटिक रिलेशनशिप। लेकिन इससे अलग भी विभिन्न प्रकार के सेक्शुअल ओरियंटेशन के लोग मौजूद हैं। समय के साथ इनकी लाइफ में काफ़ी बदलाव आया है। इन्हें रिकॉग्निशन भी मिल रहा है और बेसिक ह्यूमन राइट के तहत अपनी मर्ज़ी से जीने का हक़ भी। परंतु यह सहूलियत हर जगह, हर समाज में, हर देश में और सभी के लिए उपलब्ध नहीं है। ज़्यादातर डिफरेंट सेक्शुअल ओरियंटेशन वाले लोगों को अजीब नजरों से देखा जाता है। इनके लिए कॉमन तौर पर एक अंब्रेला टर्म इस्तेमाल किया जाता है, जिन का परिचय इस प्रकार है-
समलैंगिकता क्या है
L-Lesbian लेस्बियन
ऐसी महिला जो महिलाओं के प्रति सेक्शुअली अट्रैक्टेड हो और उसे ही अपने पार्टनर के तौर पर रोमांटिसाइज करती हो। लेस्बियन कपल में दोनों पार्टनर्स फेमिनिन हो सकते हैं, दोनों मैक्सकुलिन हो सकते हैं। ऐसा भी हो सकता है कि दोनों में से कोई एक मैस्कुलिन और एक फेमिनिन हो सकता है। इसके अलावा ये जेंडरफ्लुएड भी हो सकते हैं।
G-Gay गे
ऐसे पुरुष जो पुरुषों के प्रति सेक्शुअली अट्रैक्टेड महसूस करते हैं उन्हें ‘गे’ कहा जाता है। गे पार्टनर्स में भी लेस्बियंस की तरह डिफरेंट जेंडर आईडेंटिटी हो सकती है अपने सेक्शुअल प्रेफरेंस के आधार पर जो खुद को ‘टॉप’ या ‘बॉटम’ से भी रिप्रेजेंट करते हैं। कई बार गे टर्म का इस्तेमाल गे और लेस्बियन दोनों के लिए यानी होमोसेक्शुअल्स के लिए किया जाता है।
B-Bisexual बाईसेक्शुअल
ऐसे लोग जो मेल और फीमेल दोनो के प्रति सेक्शुअली अट्रैक्टेड होते हैं, इन्हें बाईसेक्शुअल कहते हैं। स्त्री-पुरुष या थर्ड जेंडर कोई भी बाईसेक्शुअल हो सकता है। अक्सर यह देखा गया है कि बाईसेक्सुअल लोग पारंपरिक रूप से शादी करके स्ट्रेट कपल की तरह ज़िन्दगी बिताते हैं और अपना सेम सेक्स एक्सपीरियंस एक्सप्लोर नहीं कर पाते या फिर एक्सप्लोर करते भी हैं तो चोरी-छिपे। क्योंकि सोसाइटी में अभी भी इतना एक्सेप्टेंस नहीं है कि कोई अपनी डिफरेंट सेक्शुअल ओरियंटेशन के साथ सहज होकर जी सके।
T-Transgender ट्रांसजेंडर
इनमें जन्मजात जैविक जेंडर आईडेंटिटी के विपरीत फ़ील करते हैं। यानी पुरुष की शारीरिक संरचना वाला व्यक्ति मन से खुद को स्त्री महसूस करता है। इसके विपरीत स्त्री के शरीर में रहकर खुद को पुरुष जैसा भी महसूस कर सकते हैं। इनका बायोलॉजिकल सेक्स यानी जेनाइटल और साइकोलॉजिकल जेंडर दोनों डिफरेंट हैं। यहां यह बताना जरूरी है कि सेक्स एक बायोलॉजिकल फिनोमिना है, जो व्यक्ति की जेनाइटल ऑर्गन पर बेस्ड होता है। जबकि जेंडर उसके सेक्शुअल आईडेंटिटी का इंडिकेटर है। यानी, व्यक्ति साइकोलॉजिकली खुद को किस जेंडर का महसूस करता है। कई बार सेक्स रिअसाइनमेंट थेरेपी से यह अपनी जेंडर पहचान को अपने मन के अनुसार चेंज कर लेते हैं जबकि कुछ लोग अपने शरीर के साथ सहज रहते हैं।
Q-Queer क्वीयर
क्वीयर वो होते हैं जो खुद को मेजॉरिटी से अलग पाते हैं। चाहे वो अपनी सेक्शुअलिटी की वजह से हो या जेंडर की वजह से।वो समाज के बनाए ढांचे में खुद को फिट नहीं पाते। समाज के बनाए हुए नियम उनको असहज कर सकते हैं। एलजीबीटीक्यूआईए प्लस कम्युनिटी के अंतर्गत शामिल सारी कैटेगरीज को क्वीयर कहा जा सकता है।
I-Intersex इंटरसेक्स
ऐसे व्यक्ति जिनके पैदाइश के समय इनके जेनाइटल से यह साफ नहीं होता कि वे किस जेंडर के हैं। यह बड़े होकर मेल, फीमेल या ट्रांस के तौर पर अपनी जेंडर आईडेंटिटी बनाते हैं।
A-Asexual असेक्शुअल
ऐसे व्यक्ति जिनमें सेक्शुअल डिज़ायर कम या न के बराबर होती है उन्हें असेक्शुअल कहा जाता है। यह मेल, फीमेल, ट्रांस कोई भी हो सकता है। असेक्शुअल व्यक्ति रोमैंटिक रिलेशनशिप में तो रह सकते हैं लेकिन सेक्शुअल डिज़ायर महसूस नहीं करते। कुछ असेक्शुअल लोग अक्सर सिंगल रहना पसंद करते हैं। लेकिन कुछ सामाजिक तौर पर शादी बच्चे सब करते हैं।
हालांकि सेक्शुअल डिज़ायर न होने की वजह से इंटिमेसी इन्हें ख़ास पसंद नहीं होती। ये उस समय कुछ फ़ील नहीं कर पाते हैं। बहुत से असेक्शुअल लोग पारिवारिक- सामाजिक आदि दबाव की वजह से सामाजिक मानकों के अनुसार ही व्यवहार करते हैं और खुद मन ही मन घुटते रहते हैं।
इन सबके अलावा भी पैनसेक्शुअल यानी जेंडर से परे होकर रोमांटिक अट्रैक्शन फील करने वाले व्यक्ति होते हैं। इसी तरह की एक और कैटेगरी है डेमिसेक्शुअल की। ऐसे लोग किसी भी व्यक्ति के साथ इमोशनल अटैचमेंट के बाद ही इंटिमेसी फील कर पाते हैं। एक होते हैं सेपियोसेक्शुअल यानी ऐसे व्यक्ति जो सिर्फ इंटेलेक्चुअल्स को लेकर ही सेक्शुअल अट्रैक्शन फील कर पाते हैं। इसी तरह बहुत सारे आयाम है सेक्शुअलिटी के। इन सभी के लिए अंब्रेला टर्म एलजीबीटीक्यूआईए प्लस इस्तेमाल किया जाता है। इस कम्युनिटी का आईडेंटिटी फ्लैग रेनबो फ्लैग होता है, जो हम अक्सर प्राइड परेड वगैरह में देखते हैं।
90 के दशक में LGBTQ+ और इस से रिलेटेड मूवमेंट काफी पॉपुलराईज हुआ। जिसके बाद कई देशों ने होमोसेक्शुअलिटी से जुड़े कानूनों में बदलाव किया और एलजीबीटीक्यूआइए प्लस कम्युनिटी के अधिकारों पर बड़े पैमाने पर बहस शुरू हुई। स्टैटिस्ता डिपार्टमेंट के 2021-22 के एक सर्वे के अनुसार 3% रेस्पोंडेंट ने खुद खुद को होमोसेक्शुअल डिक्लियर किया। यह अध्ययन 27 देशों में किया गया था। इसमें 4% ने बाईसेक्शुअल और 1% ने पैन सेक्सुअल की कैटेगरी में खुद को रखा भारत की अगर बात की जाए तो विकिपीडिया के 2021 के एक सर्वे के अनुसार 3% भारतीय होमोसेक्शुअल 9% बाईसेक्शुअल 2% असेक्शुअल 1% पैनसेक्शुअल टोटल 17% आबादी अपने आप को नाॅन बाइनरी के तौर पर यानी एलजीबीटीक्यूआइए+ के तहत आईडेंटिफाई करती है।
यहां ध्यान देने लायक बात यह है कि, यह स्थिति तब है जब सोशल स्टिग्मा की वजह से लोग अपने डिफरेंट सेक्शुअल ओरियंटेशन को खुलकर ज़ाहिर नहीं कर पाते हैं। इसके अलावा बहुत सारे लोगों को समलैंगिकता क्या है इस बारे में जानकारी ही नहीं होती। इससे यह अंदाजा लगाया जा सकता है कि एलजीबीटीक्यू+ कम्युनिटी जिसे हाशिए पर रखा जाता है, नेग्लेक्ट किया जाता है उनकी संख्या हक़ीक़त में आबादी के 17% से भी अधिक है।
वर्तमान कानूनी और संवैधानिक प्रावधानों की बात करें तो भारत में 6 सितंबर 2018 के सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक फैसले में आईपीसी की धारा 377 को आंशिक तौर पर रद्द कर दिया गया। आईपीसी की धारा 377 होमोसेक्शुअल रिलेशन को अप्राकृतिक और ग़ैरकानूनी मानती है।
1860में ब्रिटिश काल के इस रिग्रेसिव कानून को ख़त्म करके संविधान में लिखित फंडामेंटल राइट के तहत समानता सही मायनों में स्थापित करने की एक कोशिश की गई। अब कानून दो वयस्क होमोसेक्शुअल व्यक्तियों को भी किसी हेट्रोसेक्शुअल कपल की तरह आपसी सहमति से साथ रहने की और आपस में फिजिकल रिलेशन बनाने की इजाज़त देता है।
हालांकि अभी यह नहीं कहा जा सकता कि, इस कम्युनिटी को समान अधिकार मिल चुका है। क्योंकि ‘हिंदू कोड बिल,, ‘स्पेशल मैरिज एक्ट’ या मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के किसी भी कानून में होमोसेक्शुअल कपल को शादी करने का लीगल राइट अभी तक नहीं दिया गया है। इसके लिए कानूनी लड़ाई लगातार जारी है। कानून में बदलाव होना निश्चित रूप में इस दिशा में एक अहम पड़ाव है, लेकिन सामाजिक तौर पर भी एक्सेप्टेंस मिलना वाकई बहुत ज़रूरी मसला है।
समलैंगिकता और समलैंगिक विवाह (same sex marriage) पर भारत के वर्तमान संवैधानिक और कानूनी प्रावधानों तथा चुनौतियों एवं संभावनाओं पर विस्तार से जानने के लिए कृपया नीचे दिये गये आर्टिकल की लिंक पर क्लिक करें..
© प्रीति खरवार
बहुत उपयोगी आलेख है. थैंक्यू ❤