सुभाष चंद्र बोस; जीवन परिचय : Subhas Chandra Bose ; Biography in Hindi

 

सुभाष चंद्र बोस ; जीवन परिचय Subhas Chandra Bose ; Biography in Hindi

 

सुभाष चंद्र बोस का नाम स्वतंत्रता संग्राम में अविस्मरणीय है। हालांकि अब हमारा देश पूर्ण रूप से स्वतंत्र और संप्रभु राष्ट्र के तौर पर विश्व पटल पर अपना नाम अंकित कर चुका है। एक ऐसा भी दौर था,जब हमारा भारत ब्रिटिश उपनिवेशवादी सत्ता के अधीन था। देश के करोड़ों नागरिक ग़ुलामी का जीवन जीने को अभिशप्त थे। आए दिन अंग्रेज़ों के भेदभावपूर्ण नियम- कानूनों से त्रस्त रहते थे।

ऐसे कठिन समय में कुछ ऐसी महान विभूतियां सामने आईं,जिन्होंने देश की आज़ादी के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया। ऐसे ही एक महान स्वतंत्रता सेनानी थे- नेताजी सुभाष चंद्र बोस। इनके द्वारा दिया गया ‘जय हिंद’ का नारा आज देश का राष्ट्रीय नारा बन चुका है। इसके अलावा इनका एक और बहुत लोकप्रिय नारा था- “तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आज़ादी दूंगा” यह भी स्वतंत्रता संग्राम के दौरान सेनानियों में जोश भरने में बहुत कारगर रहा।

 

सुभाष चंद्र बोस का जन्म एवं जीवन परिचय-

सुभाष चंद्र बोस का जन्म 23 जनवरी 1897 में कटक उड़ीसा में प्रभावती दत्त और जानकीनाथ बोस के घर पर हुआ। इनके पिता एक जाने-माने वकील थे और इनका परिवार सामाजिक और आर्थिक तौर पर समृद्ध और प्रतिष्ठित माना जाता था। सुभाष 9 भाई बहनों में से एक थे। इन्होंने एमिली शैकेल से विवाह किया था,जिसकी कभी सार्वजनिक घोषणा नहीं की। इसके पीछे एक दिलचस्प कहानी है।

ऑस्ट्रिया में इलाज के दौरान सुभाष चंद्र बोस अपनी आत्मकथा लिख रहे थे,जिसके लिए इन्हें टाइपिस्ट की ज़रूरत थी। इसी सिलसिले में एमिली शैकेल से उनकी मुलाक़ात हुई और साथ में काम करने के दौरान दोनों में प्रेम हो गया और इन्होंने साधारण तरीके से शादी कर ली। इनकी एक बेटी भी है जिसका नाम अनीता है। सुभाष चंद्र बोस स्वामी विवेकानंद के विचारों से काफी प्रभावित थे और उन्हें अपना आध्यात्मिक गुरु मानते थे,जबकि इनके राजनीतिक गुरु चितरंजन दास थे।

 

सुभाष चंद्र बोस की शैक्षणिक पृष्ठभूमि-

सुभाष चंद्र बोस की शुरुआती शिक्षा रेनेशॉ कॉलेजिएट स्कूल से हुई। इसके बाद इन्होंने प्रेसीडेंसी कॉलेज कोलकाता में एडमिशन लिया। किशोर वय से ही क्रांतिकारी विचारों के सुभाष कॉलेज के दौरान राष्ट्रवादी गतिविधियों में हिस्सा लेने लगे। इसकी वजह से इन्हें कॉलेज की पढ़ाई बीच में ही छोड़नी पड़ी। इसके बाद इन्होंने प्रतिष्ठित कैंब्रिज विश्वविद्यालय,लंदन से स्नातक की डिग्री ली। 

 

शुरुआती कॅरियर-

कॉलेज की पढ़ाई पूरी करने के बाद सुभाष चंद्र बोस ने देश की सबसे प्रतिष्ठित सेवा इंडियन सिविल सर्विसेज (ICS) की तैयारी की। पहले ही प्रयास में इन्होंने महज 23 साल की उम्र में यह परीक्षा पास कर ली लेकिन सिविल सर्विसेज में काम करने के दौरान इन्हें महसूस हुआ कि वे अंग्रेज़ों के अधीन रहकर अपने ही देशवासियों के विरुद्ध काम नहीं कर सकते इसलिए इन्होंने अपने पद से त्यागपत्र दे दिया। इस प्रकार नौकरी छोड़कर सुभाष चंद्र बोस पूरी तरह से स्वतंत्रता संग्राम में कूद पड़े।

 

सुभाष चंद्र बोस का राजनीतिक जीवन-

मोतीलाल नेहरू एवं चितरंजन दास द्वारा स्थापित ‘स्वराज पार्टी’ के बैनर तले प्रकाशित होने वाले समाचार पत्र ‘फॉरवर्ड’ के संपादक के तौर पर 1921 में सुभाष चंद्र बोस ने भारतीय राजनीति में क़दम रखा। 1923 में इन्हें अखिल भारतीय युवा कांग्रेस का अध्यक्ष चुना गया,जो इनके क्रांतिकारी जीवन के लिए मील का पत्थर साबित हुआ। यह वही समय था जब असहयोग आंदोलन की शुरुआत गांधी जी ने की थी। सुभाष चंद्र बोस ने इसमें सक्रिय सहभागिता की।

1924 में सुभाष जी कोलकाता नगर निगम में मुख्य कार्यकारी अधिकारी के रूप में चुने गए। 1925 में क्रांतिकारी गतिविधियों में शामिल होने के कारण इन्हें ब्रिटिश सरकार द्वारा मांडले जेल भेज दिया गया,जहां पर यह टीबी की बीमारी से ग्रसित हो गए। 1927 में इन्हे जेल से रिहा कर दिया गया और कांग्रेस के महासचिव का पदभार सौंपा गया। 1930 में इन्हें कलकत्ता शहर का मेयर नियुक्त किया गया। इसी साल इन्हें अखिल भारतीय ट्रेड यूनियन कांग्रेस के अध्यक्ष के तौर पर चुना गया।

1930 के दशक में सुभाष चंद्र बोस ने यूरोप की यात्रा की और अपने अनुभवों के आधार पर ‘द इंडियन स्ट्रगल’ नामक किताब लिखी। इस किताब में बोस ने भारत में होने वाले राष्ट्रीय आंदोलनों और ब्रिटिश सरकार की दमनकारी नीतियों के बारे में वर्णन किया। इसका नतीजा यह हुआ कि तत्कालीन ब्रिटिश सरकार ने इनकी किताब पर प्रतिबंध लगा दिया। 

 

सुभाष चंद्र बोस और महात्मा गांधी के बीच वैचारिक मतभेद और 1939 का कांग्रेस अध्यक्ष पद का चुनाव-

1907 के सूरत अधिवेशन के समय भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी में मतभेद हुआ और पार्टी नरम दल एवं गरम दल दो भागों में बंट गई। महात्मा गांधी जहां नरम दल का प्रतिनिधित्व करते थे,वहीं सुभाष चंद्र बोस गरम दल के प्रमुख लोकप्रिय नेता थे। हालांकि दोनों महान शख़्सियत थे, जिन्होंने देश की आज़ादी में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। भले ही इनके तरीके अलग थे परंतु इनका लक्ष्य एक था। ग़ौरतलब है कि सुभाष चंद्र बोस ने ही महात्मा गांधी को सबसे पहले ‘राष्ट्रपिता’ कहा था।

1939 में त्रिपुरा अधिवेशन में कांग्रेस अध्यक्ष के चुनाव हेतु गांधी जी के द्वारा प्रस्तावित उम्मीदवार आंध्र प्रदेश के पट्टाभि सीतारमैया थे, जबकि सुभाष चंद्र बोस इनके विपक्ष में उम्मीदवार थे। इसमें सुभाष चंद्र बोस अधिक वोटो से चुने गए परंतु गांधी जी ने पट्टाभि सीतारमैया की हार को अपनी व्यक्तिगत हार मान लिया। इस प्रकार पार्टी के अंदर गतिरोधों को देखते हुए सुभाष चंद्र बोस ने कांग्रेस अध्यक्ष के पद पर से इस्तीफा दे दिया। इसके बाद ही सुभाष चंद्र बोस ने 1939 में ‘ऑल इंडिया फॉरवर्ड ब्लॉक’ की स्थापना की और अपनी क्रांतिकारी गतिविधियों को अपने तरीके से संचालित करना शुरू कर दिया।

 

सुभाष चंद्र बोस का स्वतंत्रता संग्राम में योगदान-

1930 में शुरू हुए नमक आंदोलन में सुभाष चंद्र बोस ने सक्रिय रूप से सहभागिता की।1941 में बोस अफगानिस्तान और सोवियत संघ के रास्ते जर्मनी पहुंचे। इस समय तक द्वितीय विश्व युद्ध की शुरुआत हो चुकी थी और इन्होंने जर्मनी के नाज़ी नेताओं हिटलर, मुसोलिनी एवं धुरी राष्ट्रों से अंग्रेजों के विरुद्ध भारतीयों की लड़ाई में मदद करने का आग्रह किया। 1942 में इन्होंने ‘आज़ाद हिंद रेडियो’ प्रारंभ किया, जिसका उद्देश्य अंग्रेजों के ख़िलाफ़ लड़ाई में भारतीयों को जागरुक करना और उनमें उत्साह का संचार करना था। 

 

आज़ाद हिंद फौज-

सुभाष चंद्र बोस जापान होते हुए बर्मा पहुँचे और वहाँ भारतीय राष्ट्रीय सेना यानी ‘आज़ाद हिंद फौज’ को संगठित करने और जापान की सहायता से अंग्रेजों को भारत से बाहर निकालने और भारत को आज़ाद कराने का प्रयास किया। ग़ौरतलब है कि आज़ाद हिंद फौज की स्थापना का विचार सर्वप्रथम कैप्टन मोहन सिंह के मन में आया था। आज़ाद हिंद फौज में सिंगापुर जेल में बंद भारतीयों एवं दक्षिण एशियाई भारतीयों को सैनिक के रूप में शामिल किया गया था। इनकी संख्या 50000 के क़रीब बताई जाती है।

 

अस्थाई सरकार की स्थापना-

21 अक्टूबर 1943 को सुभाष चंद्र बोस ने आज़ाद हिंद फौज के माध्यम से स्वतंत्र भारत की अस्थायी सरकार बनाई, जिसे जर्मनी,जापान,फ़िलीपीन्स,कोरिया,चीन,इटली,मान्चुको और आयरलैंड सहित 11 देशो की सरकारों ने भी मान्यता दी थी। इस अस्थाई सरकार की विदेश नीति के तहत जापान ने अण्डमान और निकोबार द्वीपसमूह भी इन्हें प्रदान किया, जिसका नामकरण सुभाष चंद्र बोस ने किया था। 

 

सुभाष चंद्र बोस की विवादास्पद मृत्यु-

सुभाष चंद्र बोस की मृत्यु आज इतने सालों के बाद भी विवादास्पद है। अब तक प्राप्त साक्ष्यों के आधार पर 18 अगस्त 1945 को इनका शहीद दिवस मनाया जाता है,जिसका कारण ताइवान में हुई विमान दुर्घटना बताया जाता है। ध्यातव्य है कि भारत में रहने वाले बोस के वंशजों का मानना है कि उनकी मृत्यु विमान दुर्घटना में नहीं हुई थी, बल्कि उसके बाद वे सालों रूस में नज़रबंद रहे थे।

सुभाष चंद्र बोस की रहस्यमयी मृत्यु की जांच के लिए 1946 में कर्नल जॉन फिगेस और 1956 में शाहनवाज समिति का गठन किया गया था परन्तु सरकार द्वारा उनकी मृत्यु से संबंधित जांच रिपोर्ट और दस्तावेजों को सार्वजनिक नहीं किया गया। 

निस्संदेह सुभाष चंद्र बोस भारत के स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण सेनानी थे। करिश्माई व्यक्तित्व, उत्कृष्ट नेतृत्व शैली और अदम्य साहस की मिसाल सुभाष चंद्र बोस का नाम भारत के इतिहास में स्वर्णाक्षरों में अंकित है। इनका जीवन सदियों तक देश के नागरिकों के लिए प्रेरणास्रोत बना रहेगा। 

 

© प्रीति खरवार 

Leave a Comment