सूफी काव्य/ प्रेमाख्यानक काव्य की विशेषताएं

सूफी काव्य/ प्रेमाख्यानक काव्य की विशेषताएं

 

 

भक्ति काल को पूर्व मध्यकाल भी कहा जाता है। इस काल को जॉर्ज ग्रियर्सन ने हिंदी साहित्य का स्वर्ण युग बताया है,जिसे हिन्दी के लगभग सभी सवर्ण विद्वान सर्व सम्मति से स्वीकार करते हैं।

भक्ति काल में साहित्य सृजन की दृष्टि से भक्ति साहित्य को मुख्यतः निम्न दो भागों में बांटा गया –

1.सगुण भक्ति साहित्य और

2. निर्गुण भक्ति साहित्य

इन दोनों को भी पुनः बांटते हुए सगुण भक्ति के दो भेद किये गये –

(क) रामभक्ति शाखा और

(ख) कृष्ण भक्ति शाखा ।

इसी तरह निर्गुण भक्ति के भी दो भेद किये गये –

(क)संत काव्य/ ज्ञानाश्रयी शाखा,

(ख) सूफी काव्य/ प्रेमाश्रयी शाखा/ प्रेमाख्यानक काव्य।

इस प्रकार सूफी साहित्य का संबंध भक्ति काल की निर्गुण परंपरा से है। इसके अन्य नाम प्रेमाश्रयी शाखा कौर प्रेमाख्यानक काव्य हैं। मलिक मोहम्मद जायसी,कुतुबन,मुल्ला दाउद,मंझन और नूर मोहम्मद इत्यादि प्रमुख सूफी कवि हैं।कुतुबन कृत मृगावती (1501 ई.) को आचार्य शुक्ल ने प्रथम सूफी काव्य माना है। हजारी प्रसाद द्विवेदी ने ईश्वर दास रचित सत्यवती कथा (1500) को प्रथम सूफी रचना माना है।

मोटे और सर्व स्वीकृत तौर पर मुल्ला दाउद रचित चंदायन (दूसरा नाम लोरकहा)को अवधी का प्रथम प्रबंध काव्य माना जाता है।इसकी रचना 1379 में हुई मानी जाती है। डॉ नगेंद्र ने असाइत रचित हंसावली (1370) को प्रथम माना।इसकी भाषा राजस्थानी हिन्दी है। मलिक मोहम्मद जायसी को सूफी अथवा प्रेमाख्यानक काव्य परंपरा का प्रतिनिधि कवि माना जाता है। इस काव्य की कुछ उल्लेखनीय विशेषताएं हैं,जो इसे अन्य काव्यों से अलग करती हैं।

सूफी काव्य की प्रमुख विशेषताएं निम्नलिखित हैं –

 

प्रेम का अलौकिक चित्रण

इस काव्य की सबसे बड़ी विशेषता है कि इसमें प्रेम के उदात्त रूप का चित्रण किया गया है। ये कवि स्वयं को प्रेमी और परमात्मा (खुदा) को प्रेयसी मान कर प्रेम को अत्यंत अलौकिकता के साथ चित्रित करते हैं। कवि इश्क मिजाजी से इश्क हकीकी ( लौकिक से अलौकिक) का सफर करते हैं। प्रेम यहां समर्पण और उदात्त भाव को रूपायित किया जाता है।

उदाहरण –

कागा सब तन खाइये

मेरो चुन चुन खाइये मांस

दो नैना मत खाइये

मोहे पिया मिलन की आस।

***

तीन लोक चौदह खण्ड सबै रहे मोहि सूझि।

प्रेम छाड़ि किछु और न लीना जौ देखौ मन बूझि।।

 

2. साम्प्रदायिक सद्भाव

 

सूफी काव्य वास्तव में ही सूफीयाना अंदाज़ (ऊंची सोच) लेकर चला। इस काव्य में कवियों ने स्वयं मुस्लिम होते हुए भी हिन्दू देवी-देवताओं के सगुण रूप का चित्रण किया।इनके नायक – नायिका अधिकतर हिंदू घरों के युवक – युवतियां होते हैं, जिन्हें मंदिर में अपने ईष्ट की की उपासना करते और साधु बनते भी दिखाया गया है। जिस सगेपन से दूसरे धर्म की मान्यताओं और रीति-रिवाजों को इस काव्य में दिखाया गया है,वह अन्यत्र दुर्लभ है।

 

3. हिन्दू तीज-त्योहारों का सजीव चित्रण

इन प्रेमाख्यानक काव्यों में हिन्दू घरों की मान्यताओं को सम्मान की दृष्टि से देखा गया है । जायसी, मंझन, मुल्ला दाउद और नूर मोहम्मद इत्यादि सभी कवियों ने बसंत पंचमी, रंगोत्सव, दीपोत्सव एवं सरोवर पूजन इत्यादि प्रसंगों का अत्यंत सजीव एवं मनोरम चित्रण किया है।

 

4. रहस्यमय आध्यात्मिक उपाभास

शुक्ल जी के अनुसार सूफी काव्य में कथा के मध्य रहस्यानुभूति के ऐसे दृश्य आते हैं जो आध्यात्मिकता की अनुभूति कराते हैं। देव दृश्य (अलौकिक) तुल्य आभास को संभवतः उन्होंने रहस्यमय आध्यात्मिक उपाभास कहा है। शुक्ल जी के अनुसार सूफी मत में यह समस्त विश्व एक ऐसे रहस्यमय प्रेम सूत्र में बंधा है, जिसका आलंबन करके जीव उस प्रेम मूर्ति तक पहुंचने का मार्ग पा सकता है,जो आध्यात्मिक पथ का आधार है।

उदाहरण –

ऐ रानी मन देखु बिचारी।एहि नैहर रहन दिन चारी।।

***

हिय कै जोति दीप वह बूझा।यह जो दीप अंधियारा बूझा।।

उलटि दीठि माया सौं रूठी।पलटि न फिरी जानि कै झूठी।।

***

देखि मानसर रूप सोहावा।हिम हुलास पुरहिन होई छावा।।

गा अंधियार रैन मसि छूटी। भा भिनसार किरन रवि फूटी।।

 

5. गुरु की महत्ता

सूफी काव्य में भी संत काव्य की तरह गुरु का महत्त्व और जीवन में सर्वोच्च स्थान दर्शाया गया है। बिना गुरु के आध्यात्मिक ऊंचाई और अनहलक तक का सफर नामुमकिन बताया गया है। इश्क़ मिजाज़ी से इश्क हक़ीक़ी तक की यात्रा और दुनियावी गोरख धंधे से निजात दिलाने में सूफी काव्य में गुरू की भूमिका को असंदिग्ध माना गया है।

‘गुरु सूवा जेहि पंथ देखावा,बिनु गुरु जगत को निर्गुण पावा।’

6. विरह का उच्चतम स्थान

सूफी काव्य में परमात्मा (खुदा) को माशूका ( प्रियतमा) और जीवात्मा ( बंदा) को उसकी तलाश में भटकता उदग्र व्यग्र माशूक (प्रियतम) ! सूफी कवियों के अनुसार विरह उनकी साधना पद्धति का प्रमुख साधन है, इसके बिना उपासना का मार्ग पूरी तरह उस उच्च सोपान को प्राप्त नहीं होता,जो अंततः प्रेम के एकाकार और ईश्वर से अदाकार होने का माध्यम बनता है।

उदाहरण –

यह तन जारौ छार के,कहौं कि पवन उड़ाव।

मकु तेहि मारग उड़ि पड़ै, कंत धरै जहं पांव।।

 

7. कथानक रूढ़ियों का प्रयोग

कथानक और रूढ़ि दो शब्दों से मिलकर बने इस तत्त्व का मतलब है कथा क्रम में ऐसी चमत्कारी बातों का आवृत्ति के साथ समावेश,जो वैज्ञानिक रूप में तो सिद्ध नहीं की जा सकती परन्तु कथाकार अपने काव्य में जिनका प्रयोग लगातार करते आये हों। उदाहरण के लिए शुक – शुकी संवाद, मनुष्य का पशु या पक्षी में बदल जाना, मुंह में गोली रख कर अंतर्ध्यान हो जाना, पशु – पक्षी का मनुष्यों की तरह बातचीत करना इत्यादि। सभी सूफी कवियों ने इनमें से एक या एकाधिक कथानक रूढ़ियों का का प्रयोग अपनी कथा में किया है।

8. अवधी भाषा का सौंदर्य

सूफी काव्य में अवधी भाषा का ही प्रयोग अधिकतर किया गया है। अवधी के ग्रामीण एवं परिनिष्ठित दोनों रूपों का प्रयोग अत्यंत सुघड़ता के साथ प्रयोग सूफी काव्य में हुआ है। जायसी,कुतुबन, एवं मुल्ला दाउद इत्यादि सूफी कवियों ने अवधी को वह साहित्यिक ऊंचाई प्रदान की कि उसका साहित्य में सदैव के लिए उल्लेखनीय स्थान सुरक्षित हो गया।

9. मसनवी शैली

प्रेमाख्यानक काव्यों में अधिकतर मसनवी शैली का ही प्रयोग किया गया है। इस शैली में पांच अथवा सात चौपाई के बाद दोहे का चलन होता है।इस शैली में रदीफ़ और क़ाफ़िये की पाबंदी नहीं होती। पंक्तियां कितनी भी हो सकती हैं।रचना के प्रारंभ में ईश वंदना/ पैगंबर की तारीफ,शाहे वक्त की प्रशंसा , गुरु वंदना और फिर आत्म परिचय होता है। भारतीय महाकाव्य के लक्षण ( सर्ग बद्धता, उच्च कुलोत्पन्न नायक, महान उद्देश्य की प्राप्ति,सुखांत फलागम इत्यादि) के विपरीत सूफी काव्य में सर्ग बद्धता न होकर घटनाओं के नाम पर कथा आगे बढ़ती है।

इस प्रकार संत काव्य की तरह एक तरफ जहां सूफी काव्य ने धार्मिक सौहार्द एवं साम्प्रदायिक सद्भाव का संदेश दिया, वहीं प्रेम की पीड़ का चित्रण हृदयग्राही रूप में किया। प्रेम की उच्च भाव भूमि, विरह का मार्मिक चित्रण,कथानक रूढ़ियों का प्रयोग, अवधी भाषा का संपूर्ण सौंदर्य व छंदों व अलंकारों का सुष्ठु प्रयोग इस काव्य की महत्वपूर्ण पहचान है।

 

© डॉ संजू सदानीरा

 

न को हार नह जित्त पद की व्याख्या

Dr. Sanju Sadaneera

डॉ. संजू सदानीरा एक प्रतिष्ठित असिस्टेंट प्रोफेसर और हिंदी साहित्य विभाग की प्रमुख हैं।इन्हें अकादमिक क्षेत्र में बीस वर्षों से अधिक का समर्पित कार्यानुभव है। हिन्दी, दर्शनशास्त्र, मनोविज्ञान विषयों में परास्नातक डॉ. संजू सदानीरा ने हिंदी साहित्य में नेट, जेआरएफ सहित अमृता प्रीतम और कृष्णा सोबती के उपन्यासों पर शोध कार्य किया है। ये "Dr. Sanju Sadaneera" यूट्यूब चैनल के माध्यम से भी शिक्षा के प्रसार एवं सकारात्मक सामाजिक बदलाव हेतु सक्रिय हैं।

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