Kargil vijay diwas कारगिल विजय दिवस 26 जुलाई
पृथ्वी का स्वर्ग कहे जाने वाले कश्मीर का एक ठंडा और शांत इलाका एक सुबह अचानक शोर-शराबे और अशांति से भर उठा, जब कारगिल नामक स्थान पर भारतीय सेना ने दुश्मन द्वारा की गई घुसपैठ के बदले में जवाबी कार्रवाई शुरू की। 1999 का वह साल भारत के इतिहास में हमेशा के लिए दर्ज हो गया, जब भारतीय सेना ने विषम परिस्थितियों और प्रतिकूल जलवायु के बावजूद अपने मजबूत इरादे और साहस की मिसाल कायम कर दी। 2 महीने से भी अधिक चले कठिन युद्ध में भारतीय सैनिकों ने अदम्य साहस और दृढ़ निश्चय का परिचय दिया।
देश की संप्रभुता को अक्षुण्ण बनाए रखने वाले इस विजय दिवस को देश प्रतिवर्ष 26 जुलाई को Kargil vijay diwas के रूप में मनाता है। इस दिन हम अपने सैनिकों की बहादुरी, बलिदान, त्याग, सेवा और संकल्प को सादर याद करते हैं और यह हमारे लिए अत्यंत गौरवपूर्ण क्षण होता है। कारगिल युद्ध न सिर्फ देश के भौगोलिक भूभाग और संप्रभुता की रक्षा के लिए महत्त्वपूर्ण है बल्कि यह हमारे उन संवैधानिक और लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा के लिए भी अहम है।
Kargil vijay diwas का ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य-
1947 में भारत की स्वतंत्रता के तुरंत बाद से ही भारत पाकिस्तान में तनावपूर्ण संबंध रहे हैं। भारत पाकिस्तान के बीच प्रथम कश्मीरी युद्ध 1947-48 में हुआ जब पाकिस्तानी घुसपैठियों ने अवैध रूप से कब्ज़ा करने का प्रयास किया। दूसरी बार भारत पाक युद्ध 1965 में हुआ और इस बार भी इसका कारण पाकिस्तानी घुसपैठ था। पाकिस्तान को यक़ीन था कि पाकिस्तान के स्थानीय निवासी उसका साथ देंगे मगर ऐसा न हो सका। इस युद्ध अभियान का नाम पाकिस्तान ने ‘जिब्राल्टर’ रखा था। इसमें भी पाकिस्तान को मुंह की खानी पड़ी और संयुक्त राष्ट्र के प्रयासों से युद्ध विराम हुआ और ताशकंद समझौता हुआ।
इसके बाद 1971 में पाकिस्तान और बांग्लादेश (तत्कालीन नाम पूर्वी पाकिस्तान) के बीच युद्ध की शुरुआत हुई जिसकी शुरुआत पाकिस्तान ने ही की थी। इसे बांग्लादेश का स्वतंत्रता संग्राम भी कहा जाता है क्योंकि इसके बाद बांग्लादेश पूरी तरह स्वतंत्र देश के रूप में अस्तित्व में आया। इसमें भारत ने बांग्लादेश की सहायता की थी और पाकिस्तान को मात्र 13 दिनों में घुटनों पर ला दिया। एक लाख के करीब पाकिस्तानी सैनिक भारत के सामने आत्म समर्पण करने को मजबूर हो गए। इस युद्ध का अंत 1972 के शिमला समझौते से हुआ। इस युद्ध ने भारत को वैश्विक परिप्रेक्ष्य में एक मजबूत देश के रूप में स्थापित किया।
Kargil vijay diwas (कारगिल विजय दिवस)-
भारत के सामने बार-बार हारने के बावजूद पाकिस्तान ने अपनी घुसपैठ की नीति नहीं छोड़ी। बार-बार कश्मीर में उन अधिकृत रूप से घुसने का प्रयास किया। इस कारण दोनों देशों के बीच संबंध कभी मधुर नहीं बन पाए। 1998 में दोनों देशों ने परमाणु परीक्षण किया इसके बाद भय और आशंका की वजह से देश में तनाव और बढ़ गया। इसी क्रम में कारगिल युद्ध की शुरुआत 3 मई, 1999 में हुई, जब पाकिस्तान ने अपने कुछ घुसपैठिए कारगिल के क्षेत्र में भेजे। कारगिल उसे समय जम्मू और कश्मीर राज्य के अंतर्गत (वर्तमान केंद्र शासित प्रदेश लद्दाख) में पड़ता था।
विकिपीडिया के अनुसार इन घुसपैठियों की संख्या 5000 के करीब थी। पाकिस्तान की इस मिशन का नाम था ‘ऑपरेशन बद्र’। इसका उद्देश्य था- कश्मीर और लद्दाख के बीच के लिंक को तोड़ना, जिससे अनधिकृत रूप से इलाके में कब्जा किया जा सके। स्थानीय चरवाहों ने सबसे पहले इसकी सूचना दी थी। सूचना मिलने पर 5 मई को भारतीय सेवा ने अपना गश्ती दल संबंधित क्षेत्र में भेजा। इसके बाद भारतीय सेवा ने ‘ऑपरेशन विजय’ नाम से एक अभियान शुरू किया ।
सैनिकों की सूझबूझ, साहस, दूरदर्शिता और पराक्रम से इस युद्ध में भी भारत को जीत हासिल हुई। 60 दिन चले इस युद्ध के बाद 26 जुलाई 1999 को ऑपरेशन विजय की सफलता और भारत की जीत की औपचारिक घोषणा हुई। इसलिए 1999 से अब तक प्रतिवर्ष 26 जुलाई Kargil vijay diwas के रूप में देशभर में मनाया जाता है।
Operation vijay (ऑपरेशन विजय)-
कारगिल युद्ध के समय भारत के प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई थे जबकि उनके पाकिस्तानी सबकक्ष नवाज शरीफ थे। 5 मई से 26 जुलाई 1999 तक लगभग 2 महीने चले इस अभियान ‘ऑपरेशन विजय’ में भारतीय सेना का नेतृत्व जनरल वेद प्रकाश मालिक ने किया था वहीं पाकिस्तान की तरफ से युद्ध का नेतृत्व जनरल परवेज मुशर्रफ ने किया था। आंकड़ों के अनुसार युद्ध में जहां 527 भारतीय सैनिक शहीद हुए वहीं पाकिस्तान की तरफ से 600 से अधिक सैनिकों ने जान गंवाई।
भारतीय सैनिकों ने देश की रक्षा के लिए जान की बाजी लगा दी जिसमें से सैकड़ों शहीद हुए और हजारों घायल हुए। इनमें कुछ प्रमुख नाम जैसे कैप्टन विक्रम बत्रा (जिन्हें मरणोपरांत परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया), मेजर अनुज नायर, मेजर पद्मपाणि अचार्य, लेफ्टिनेंट मनोज पांडेय, स्क्वाड्रन लीडर अजय आहूजा आदि विशेष तौर पर उल्लेखनीय हैं। इसके साथ ही सौरभ कालिया का जिक्र करना भी जरूरी है जिन्होंने पाकिस्तानियों की क्रूर यातना सहने के बावजूद कुछ नहीं बोला और वीरगति को प्राप्त हुए। सभी सैनिकों का नाम लेना संभव नहीं है परंतु सभी जवानों ने अपनी तरफ से जान की बाजी लगा दी जिसका परिणाम है कि हम आज Kargil vijay diwas मना रहे हैं।
Operation white sea (ऑपरेशन श्वेत सागर)-
भारतीय वायु सेवा ने 26 मई को भारतीय थल सेना के साथ सहयोग करने के लिए अपना एक मिशन भेजा जिसे ऑपरेशन वाइट श्वेत सागर के नाम से जाना जाता है। इस समय श्रीनगर हवाई अड्डा की सेवा आम नागरिकों के लिए बंद कर दी गई थी जिसे वायु सेना सही तरीके से इस्तेमाल कर सके। मिग- 21, मिग-23 और मिग 27, जगुआर, मिराज-2000 जैसे लड़ाकू विमानों के साथ वायु सेना ने भारतीय थल सेना के साथ ऑपरेशन विजय की सफलता में सक्रिय योगदान दिया।
Kargil war memorial (कारगिल युद्ध स्मारक)-
कारगिल युद्ध में शहीद हुए जवानों की स्मृति में द्रास में टाइगर हिल के पार ‘कारगिल वॉर मेमोरियल’ की स्थापना की गई। इसके प्रवेश द्वार पर जाने-माने कवि माखनलाल चतुर्वेदी की लोकप्रिय कविता ‘पुष्प की अभिलाषा’ का अंकन किया गया है जो शहीदों को समर्पित है। इसके साथ ही कारगिल युद्ध में शहीद हुए सैनिकों के नाम भी खुदाई करके लिखे गए हैं। इसके साथ ही इससे जुड़ा एक संग्रहालय भी अवस्थित है जिसमें युद्ध में प्रयुक्त हथियारों और स्मृति चिह्नों को संजो कर रखा गया है। यह हमें शहीदों के अदम्य साहस, देश भक्ति और बलिदान की याद दिलाता है और हमें देश के लिए कुछ करने का उत्साह और प्रेरणा देता है।
कारगिल युद्ध के वैश्विक मायने-
कारगिल युद्ध के संदर्भ में वैश्विक स्तर पर पाकिस्तान की निंदा हुई। पाकिस्तान में सबसे पहले तो सेवा के शामिल होने से इनकार कर दिया था। पाकिस्तान का कहना था कि जो भी हुआ है सब कश्मीरी अलगाववादियों ने किया है इसमें पाकिस्तान का कोई हाथ नहीं। परंतु बाद में कारगिल युद्ध के दौरान शामिल व शहीद पाकिस्तानी सैनिकों को ‘निशान-ए- हैदर’ व अन्य बहादुरी पुरस्कार से सम्मानित किए जाने की ख़बर फैल जाने पर पाकिस्तान को मजबूरन स्वीकार करना पड़ा।
इससे दुनिया भर में पाकिस्तान की छवि धूमिल हुई और इसी के साथ विभिन्न देशों ने भारत का खुले तौर पर समर्थन किया। समर्थन करने वाले देशों में जी-8 कंट्रीज, आसियान, संयुक्त राज्य अमेरिका, यूरोपीय यूनियन आदि प्रमुख रूप से उल्लेखनीय हैं। सब ने पाकिस्तान के ‘लाइन ऑफ कंट्रोल’ क्रॉस करने पर भारत के कदमों की प्रशंसा की। अंतर्राष्ट्रीय दबाव के आगे आखिरकार पाकिस्तान को झुकना पड़ा और अपनी सेना वापस बुलानी पड़ी। इस प्रकार कारगिल युद्ध भारत के लिए कूटनीतिक तौर पर भी एक बड़ी जीत साबित हुई।
इस प्रकार Kargil vijay diwas हमें शहीदों के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करने का मौका देता है साथ ही देश के प्रति कुछ करने का जज़्बा भी देता है। हमें याद रखना चाहिए कि युद्ध किसी मसले का हल नहीं है। इसमें सिर्फ नफ़रत की जीत होती है और मानवता हारती है। हमें याद रखना है यह दिन सिर्फ श्रद्धांजलि का दिन नहीं है बल्कि देश की विरासत को संभालने और संजोने का दिन भी है।
यह दिन देश के आधारस्तम्भ संवैधानिक और लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा का संकल्प लेने का भी दिन है। देश के प्रति अपने कर्तव्यों को सुनिश्चित करने का भी दिन है। यह दिन देश की प्रगति और विकास के लिए कुछ करने का भी दिन है। तभी सही मायनो में देश के सभी नागरिकों को आधारभूत मानवाधिकार प्राप्त हो सकेंगे और देश प्रगति और विकास के पथ पर अग्रसर हो पाएगा।
© प्रीति खरवार
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बहुत बहुत धन्यवाद इस ज़रूरी एवम् उपयोगी पोस्ट के लिए!