कौन तुम शुभ्र किरण वसना कविता की मूल संवेदना
कौन तुम शुभ्र किरण वसना कविता छायावाद के प्रतिनिधि कवि सूर्यकांत त्रिपाठी निराला द्वारा रचित है। निराला जी छायावादी कवियों में सबसे विशिष्ट स्थान रखते हैं। कविता को छंद के बंधन से मुक्त करना, नवीन छंदों का निर्माण करना और ओज व करूणा से युक्त सामाजिक पक्षों पर अपने भावों का प्रकाशन करना उनकी अपनी विशेषताएं हैं। अणिमा ,अपरा, अनामिका, परिमल और गीतिका निराला जी के प्रमुख काव्य संकलन हैं। “तुलसीदास” इनके द्वारा रचित खंडकाव्य है।
कौन तुम शुभ्र किरण वसना निराला जी की छायावाद की समस्त विशेषताओं से युक्त एक अत्यंत प्रसिद्ध कविता है। प्रकृति का मानवीकरण (जो कि छायावाद की एक उल्लेखनीय विशेषता है) करते हुए कवि ने इस कविता में चांदनी रात को स्त्री के रूप में प्रस्तुत किया है। कुछ विद्वान मानते हैं कि यह कविता उनकी पत्नी मनोहरा देवी के लिए लिखी गई है।
3 वर्ष की अल्पायु में मां के स्नेह से वंचित रह जाने वाले निराला का किशोर उम्र में प्राप्त पत्नी के प्रति प्रेम स्वतः स्फूर्त था। अपने हिंदी प्रेम की प्रेरणा भी निराला ने अपनी पत्नी को माना था। 20 वर्ष की आयु में पत्नी के देहांत के बाद उनका विषाद सर्वविदित है फिर भी कविता में किसी का नाम न आने के कारण हम आगे इसे चांदनी रात के सौंदर्य चित्रण के रूप में देखेंगे।
कवि निराला रात्रि के समय धवल चांदनी को अपनी आंखों से निहारते हुए प्रश्न करते हैं कि इस प्रकार के किरणों के उज्ज्वल वस्त्रों को धारण किए हुए वह कौन है? कवि बताते हैं कि चांदनी हमेशा मंद-मंद मुसकान से युक्त रहती है। यहां कवि का आशय है कि चांदनी सूर्य की किरणों की तरह चुभती नहीं है वरन् सुखदायी होती है इसलिए उसे हंसते हुए परिकल्पित किया गया है।
मलय पर्वत की ओर से आने वाली सुगंधित हवा चांदनी को मधुरिम सुरभि से युक्त कर रही है। काले टेढ़े-मेढ़े बादल ऐसे लगते हैं जैसे चांदनी रूपी युवती की घुंघराली लटें हैं। मनोरम केशराशि युक्त इस चांदनी का खाद्य सुंदर -स्वच्छ पुष्प गुच्छ हैं। कहने का मतलब है कि इस अलौकिक चांदनी रात में सुगंधित पुष्पों का सौंदर्य नयनाभिराम है।
अगली पंक्तियों में कवि चांदनी की प्रगल्भता को इंगित करते हुए बताते हैं कि वह किसी भी प्रकार की लज्जा, अनीति और दुख से युक्त नहीं है। कवि ने सामाजिक परिदृश्य में स्त्रियों की स्थिति को प्रकारांतर से दर्शाया है कि उन्हें कहीं रात्रि में जाने हेतु या तो लज्जा सिखाई गई है अथवा उन्हें डर लगता है। विपरीत परिस्थितियों में उन्हें झूठ व अनीति का सहारा भी लेना पड़ जाता है। परंतु चांदनी रूपी नायिका तथाकथित नारी सुलभ लज्जा को धारण नहीं किए हुए है बल्कि वह सतेज, नीतिपूर्ण और दुख से रहित है।
उसके हृदय पर प्रेम रूपी आंचल लहरा रहा है। बिना किसी प्रयास के ही इसका मुख प्रकाशित हो रहा है (चांदनी अपने आप में ही ज्योतिपूर्ण होती है) । स्नेह रूपी बंधन में वह सभी को बांध लेती है, अर्थात चांदनी का आकर्षण अपने में दर्शकों को बांधने वाला होता है।
चांदनी को कवि ने मुग्धा नायिका और रूपगर्विता युवती के रूप में दर्शाते हुए लिखा है कि वह अपने रुप के गर्व से भरी हुई गतिमान है। चंचलता जहां उसके प्रवाहित होते रहने को भी इंगित करता है।वह स्वतः स्फूर्त झरने की मानिन्द कल-कल बह रही है। अपने रूप की अथाह राशि के कारण वह धीरे-धीरे इधर-उधर हो रही है। कुंद के फूलों के समान उसकी श्वेत दंत पंक्तियां हैं।
कवि ने अपनी पत्नी रूपी प्रेयसी और चांदनी की किरणों के अतुलित सौंदर्य को एक साथ कौन तुम शुभ्र किरण वसना कविता में चित्रित किया है। बहुत अधिक नेह में व्यक्ति किस प्रकार अपने प्रिय पात्र को एक रहस्यमयी आवरण और जिज्ञासा की दृष्टि से देखता है ,कविता पढ़कर इसका भी आभास होता है। कविता में श्रृंगार रस, उपमा, रूपक, आक्षेप और अनुप्रास अलंकारों का सुंदर प्रयोग किया गया है। छायावादी काव्य की समस्त विशेषताओं से यह कविता युक्त है।
© डॉक्टर संजू सदानीरा
कौन तुम शुभ्र-किरण-वसना? (निराला)
कौन तुम शुभ्र-किरण-वसना?
सीखा केवल हँसना-केवल हँसना-
शुभ्र-किरण-वसना !
मन्द मलय भर अंग-गन्ध मृदु
बादल अलकावलि कुञ्चित-ऋतु,
सुकृत-पुञ्ज-अशना ।
नहीं लाज,भय,अनृत, अनय,दुख
लहराता उर मधुर प्रणय-सुख,
अनायास ही ज्योतिर्मय-मुख
स्नेह-पाश-कसना
चञ्चल कैसे रूप-गर्व-बल
तरल सदा बहतीं कल-कल-कल,
रूप-राशि में टलमल-टलमल,
कुन्द-धवल-दशना।
(“गीतिका” से)
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