आकाशदीप कहानी की मूल संवेदना/सारांश
जयशंकर प्रसाद हिंदी साहित्य के एक अत्यंत प्रतिभाशाली और ख्यातिलब्ध साहित्यकार हैं । उन्होंने उपन्यास, कहानी, निबंध नाटक, एकांकी और संपादन सभी रूपों में साहित्य में अमूल्य योगदान दिया। उन्होंने छायावादी काव्यधारा का प्रवर्तन किया तो ऐतिहासिक नाटककार के तौर पर भी विशिष्ट पहचान बनाई। उनके पांच कहानी संकलनों में आकाशदीप तीसरा संकलन है ।आकाशदीप कहानी इस संकलन की अत्यंत महत्वपूर्ण कहानी है । इस कहानी में उनका कथा कौशल उत्कृष्टतम रूप में दिखाई देता है ।
आकाशदीप कहानी समुद्र की मचलती धार के बीच चलते एक सामुद्रिक जहाज से शुरू होती है जिस पर बुधगुप्त और चंपा दोनों अलग-अलग कारणों से बंदी हैं । रात्रि के गहन अंधकार में जिस प्रकार संवादों से कथारंभ होता है, वह अत्यंत रोचक, नाटकीय और कौतूहलवर्धक है। हवा की तीव्रता से हिचकोले खाते जहाज में एक बंदी दूसरे से टकराता है और बातों-बातों में दोनों एक दूसरे के बंधन काटने को राजी हो जाते हैं ।
एक बंदी (जिसका नाम चंपा है और जो कहानी की नायिका है ) लुढ़कते हुए मदिरा से अवसन्न प्रहरी की कमर से कटार निकाल लेती है और उसी तरह लुढ़कते हुए वापस दूसरे बंदी बुधगुप्त तक पहुंच जाती है। तूफान से बचने के लिए जहाज के साथ नौका भी बंधी होती है। आपसी बातचीत के बाद वे अपने को उसे जहाज से कटकर आजाद कर लेते हैं । नौका में प्रतिद्वंद्वी से मल्लयुद्ध के बाद बुधगुप्त विजयी होता है और उसे नायक मान लिया जाता है।
बुधगुप्त वस्तुत: एक समुद्री दस्यु (लुटेरा) है जिसने उस जहाज पर हमला कर दिया था। उस हमले में उससे लड़ते हुए जहाज के कई सैनिक मारे गए जिनमें चंपा के पिता भी शामिल थे। यह बात जानकर वह चंपा से क्षमाप्रार्थी भी होता है और यह भी विश्वास दिलाता है कि वह उनका हत्यारा नहीं है बल्कि उनकी हत्या किसी और के हाथों हुई थी । नाव चंपा और अन्य अनुयायियों के साथ समुद्र में चलती हुई बहुत दूर एक नवीन विस्तृत टापू पर पहुंचती है । चंपा के नाम पर बुधगुप्त उस टापू का नाम चंपा द्वीप रखता है । चंपा के लिए उसके मन में अत्यंत आदर और प्रेम है।
चंपा के पिता के लंबी समुद्री यात्राओं के लिए जाते समय चंपा की मां बांस की लंबी लकड़ी के सहारे दीपक को जलाकर आकाशदीप बनाकर रखती थी और अपने पति और उन जैसे लोगों को रास्ता दिखाने की प्रार्थना करती थी । चंपा भी कहीं न कहीं अपनी मां के इस आचरण से बहुत प्रभावित थी। वह भी चंपा द्वीप में ऊंचाई पर घेरे में सुरक्षित दीपक रखकर यात्रियों को मार्ग प्रशस्त करने की प्रार्थना प्रकृति से करती थी।
बुधगुप्त एक योद्धा व कठोर हृदय इंसान के रूप में चित्रित किया गया है तो दूसरी तरफ एक समर्पित प्रेमी के रूप में भी । चंपा अपने उस विशाल द्वीप की एकांत साम्राज्ञी बनकर भी प्रसन्न नहीं है क्योंकि उसे जीवन में सुकून और सादगी चाहिए । जबकि बुधगुप्त चंपा को धन ऐश्वर्य के तमाम साधनों से प्रसन्न करना चाहता है।चंपा कहीं न कहीं उसे अपने पिता का हत्यारा मानती है । उसके द्वारा दिए गए विवाह प्रस्ताव को वह ठुकरा देती है और उसे घृणा से देखती है ।
बुधगुप्त उसकी घृणा नहीं सहन कर पाता और उसके समक्ष नतमस्तक होकर उउसे अपना सर कलम कर देने की दुहाई देता है । चंपा अपनी कन्चुकी में छुपी कटार निकाल कर बुधगुप्त पर वार करने के बजाय उसके समक्ष ही उसे फेंक देती है कि वह उसे नहीं मार सकती।बुधगुप्त के अनुसार इतना समय साथ गुजार कर भी वे दूर दूर हैं। क्या वह कभी उसके विवाह प्रस्ताव को स्वीकार नहीं कर सकती?
चंपा उत्तर देती है कि जिस ह्रदय ने उसे धोखा दिया उस पर उसे और यकीन नहीं है अर्थात अपने पिता के हत्यारे से प्रतिशोध लेने से उसका मन हट गया तो वह फिर अपने हृदय पर भला कैसे यकीन करें ! चंपा परिणय-सूत्र में बंधने से इनकार कर देती है । बुधगुप्त अत्यंत शांत मन से उसकी खुशी पूछता है ।
चंपा बुधगुप्त को तमाम धन-संपदा लेकर जहाज में बैठकर भारतवर्ष चले जाने के लिए कहती है । जब बुधगुप्त पूछता है कि चंपा क्या करेगी तो चंपा बताती है कि वह स्वयं इस द्वीप पर रहकर आकाशदीप से यात्रियों को मार्ग दिखती रहेगी । इसी में उसकी खुशी है । बुधगुप्त उसकी बात मानकर हमेशा के लिए वह द्वीप छोड़कर विदा हो जाता है। बरसों बरस यात्रियों को अंधकार में प्रकाश दिखाने वाली चंपा एक दिन स्वयं अंतरिक्ष में विलीन हो जाती है ।
आकाशदीप कहानी की भाषा विद्यार्थियों की दृष्टि से क्लिष्ट है । जिन्हें साहित्य के पठन-पाठन में गहरी रुचि और संस्कृतनिष्ठ हिंदी का ज्ञान है, उनके लिए कहानी निस्संदेह है रसास्वादन योग्य है । प्रेम में मनुष्य के पूर्णतया निर्मल चित्त हो जाना, घृणा का समर्पण में बदल जाना और प्रिय पात्र की भावनाओं का सम्मान करना आकाशदीप कहानी बहुत अच्छी तरह सिखाती है । यह उनकी एक अत्यंत मार्मिक एवं प्रभावपूर्ण कहानी है।
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© डॉक्टर संजू सदानीरा