ऊधौ भली करी ब्रज आए पद की व्याख्या

ऊधौ भली करी ब्रज आए पद की व्याख्या

 

ऊधौ भली करी ब्रज आए

बिधि कुलाल कीन्हे काँचे घट, ते तुम आनि पकाए ||

रंग दीन्हौं हो कान्ह साँवरैं, अँग-अँग चित्र बनाए |

यातैं गरे न नैन नेह तैं, अवधि अटा पर छाए ||

ब्रज करि अँवा जोग ईंधन करि, सुरति आनि सुलगाए |

फूँक उसास बिरह प्रजरनि सँग, ध्यान दरस सियराए ||

भरे सँपूरन सकल प्रेम-जल, छुवन न काहू पाए |

राज-काज तैं गए सूर प्रभु , नँद-नंदन कर लाए ||

 

 

प्रसंग

ऊधौ भली करी ब्रज आए पद सूरदास जी द्वारा रचित भ्रमरगीत से लिया गया है, जिसका संपादन भ्रमरगीत सार के नाम से आचार्य रामचंद्र ने किया है।

 

संदर्भ

गोपियां उद्धव जी के समक्ष अपनी विरह दशा का वर्णन कटाक्ष के रूप में करते हुए कहती हैं कि उद्धव ने ब्रज में आकर उनके हृदय रूपी घड़े को अपने ज्ञान से पका दिया है।

 

व्याख्या

गोपियां उद्धव से कहती हैं कि उद्धव ने ब्रज में आकर बहुत अच्छा किया। ब्रह्मा जी ने उन्हें कच्चे घड़े के रूप में बनाया था,(वे भोली भाली प्राणी थीं, निर्गुण की चर्चा से मन पक गया उनका) उद्धव ने आकर उन्हें पका दिया( परिपक्व कर दिया)। श्रीकृष्ण ने उन्हें पूरी तरह से अपने रंग में रंग दिया था और उनके अंग प्रत्यंग पर अपनी लीलाओं के चित्र उकेर दिए थे।

श्रीकृष्ण के अचानक ब्रज से मथुरा चले जाने से गोपियों की आंखों से प्रेम रूपी अश्रु जल गिरने पर भी हृदय रूपी घड़े गल नहीं पाए क्योंकि वे गोपियों के ऊपर समय रूपी छत (अटारी) छवा कर गए हैं। अर्थात कृष्ण ने गोपियों से वापस आने का वादा किया था जिसके कारण वे अभी तक जीवित हैं।

गोपियां अत्यंत दारुण अवस्था में उद्धव को उलाहना देते हुए कहती हैं कि उन्होंने (उद्धव ने) ब्रज को आवां (मिट्टी के बर्तन पकाने वाली व्यवस्था ) और जोग (योग एवं ज्ञान) को उसका ईंधन बना दिया है और कृष्ण की स्मृतियों से उसे तीव्रता से सुलगा दिया है, यादों की आग लगा दी है।

गोपियों के दुख से निकली लंबी-लंबी सांसें विरह की ज्वाला जला रही हैं, फूंकणी का काम कर रही हैं, जिससे आग तीव्रता से जलती है और इसके कारण उनके हृदय रूपी घड़े पूरी तरह से पक गए हैं।

उद्धव से गोपियां कहती हैं कि योग रूपी ज्ञान की चर्चा करके उन्होंने कृष्ण का स्मरण गोपियों को करवाया है जिससे उन्हें अत्यंत ठंडक का एहसास हुआ है।

गोपियां आगे कहती हैं कि उन्होंने अपने हृदय रूपी घड़े में कृष्ण के प्रेम रूपी जल को भर लिया है, जिसे अब तक कोई भी स्पर्श नहीं कर पाया है। सूरदास लिखते हैं कि गोपियां कहती हैं कि उनके प्रभु श्रीकृष्ण राजकाज हेतु ब्रज से मथुरा गए हैं और जब वह वहां से लौट आने आएंगे तो उस जल को वे अपने हाथों से स्पर्श करेंगे।

 

विशेष

1.प्रेम में लौटने की आस सांसों को चलाती रहती है, इसका अत्यंत हृदयग्राही चित्रण इस पद में सूरदास जी ने किया है।

2.’पकाना’ क्रिया का अत्यंत सारगर्भित प्रयोग करते हुए गोपियों का उद्धव के ब्रह्म ज्ञान से ऊबना दिखाया गया है।

3. सूर ने इस पद में आवां, कुम्हार, ईंधन, फूंक इत्यादि के माध्यम से सान्गरूपक अलंकार का अत्यंत सुंदर प्रयोग किया है। इसके अलावा अनुप्रास का प्रयोग तो सुष्ठु रूप में हुआ ही है।

4.वियोग शृंगार और तादात्मीकरण का उदाहरण मर्मस्पर्शी है।

5.गेय पद है, मुक्तक काव्य रूप है।

6.शैली व्यंग्यात्मक है।

 

© डॉक्टर संजू सदानीरा

 

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Dr. Sanju Sadaneera

डॉ. संजू सदानीरा एक प्रतिष्ठित असिस्टेंट प्रोफेसर और हिंदी साहित्य विभाग की प्रमुख हैं।इन्हें अकादमिक क्षेत्र में बीस वर्षों से अधिक का समर्पित कार्यानुभव है। हिन्दी, दर्शनशास्त्र, मनोविज्ञान विषयों में परास्नातक डॉ. संजू सदानीरा ने हिंदी साहित्य में नेट, जेआरएफ सहित अमृता प्रीतम और कृष्णा सोबती के उपन्यासों पर शोध कार्य किया है। ये "Dr. Sanju Sadaneera" यूट्यूब चैनल के माध्यम से भी शिक्षा के प्रसार एवं सकारात्मक सामाजिक बदलाव हेतु सक्रिय हैं।

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