महादेवी वर्मा रचित “जो तुम आ जाते एक बार” कविता की मूल संवेदना

महादेवी वर्मा रचित जो तुम आ जाते एक बार  कविता की मूल संवेदना 

 

महादेवी वर्मा छायावाद के कवि चतुष्टयी में सम्मिलित प्रसिद्ध कवियों में से एक हैं। उनकी न सिर्फ़ कविताएं वरन संस्मरण और रेखाचित्र भी हिंदी साहित्य की अमूल्य निधि हैं।

 

जो तुम आ जाते एक बार महादेवी की एक संवेदनापूरित प्रेम कविता है। आकारगत लघुता वाली इस कविता का कथ्य अत्यंत गंभीर एवं मार्मिक है।

 

जो तुम आ जाते एक बार  कविता में कवयित्री अपने प्रिय को संबोधित करते हुए कहती हैं कि अगर वह पधारें तो पूरी प्रकृति में अनेकानेक परिवर्तन होंगे। करुणा व मानवता के सौरभ से पथ आपूरित हो जाएगा। प्रिय के दर्शन से प्रियतमा के प्राणों का तार-तार अनुराग भरा उन्माद राग गाएगा। अर्थात हृदय की अनंत अतल गहराइयों तक संयोग के सुख का संचार होने से मन में संगीत प्रवाहित होने लगेगा। प्रेयसी कदाचित अपने प्रिय के पांव वियोग जनित पीड़ा से उपजी अश्रु धारा से धो देती!

 

चिर वियोग के पश्चात मिलन का संयोग बनते ही रोती-रोती आंखें मुस्कुरा देतीं! होठों से विषाद (दुःख) की रेखा भी घुल जाती! जीवन में वसंत ऋतु का आगमन हो जाता एवं चिर संचित विराग (प्रियविहीन मानस उजाड़-सा हो जाता है) मिलन-सुख से धुल जाता और मन रागमय हो जाता! सांसें प्रिय की छवि पर स्वयं का सब कुछ निसार कर देतीं!

 

महादेवी ने अत्यंत भाव प्रवणता के साथ प्रेम की संयोग की अवस्था में प्रिय में आने वाले सुखद परिवर्तनों का चित्रण किया है। वियोगावस्था में मनःस्थिति की विषण्णता का भी स्वाभाविक चित्रण किया है।

 

छायावाद की समस्त विशेषताओं से युक्त जो तुम आ जाते एक बार कविता का भाव सौंदर्य दर्शनीय है। प्रिय आगमन हेतु प्रेयसी की यह लालसा, स्वागत-भाव, पूर्व उद्विग्नता सभी प्रेम के प्रगाढ़ रूप का दर्शन कराते हैं और महादेवी की चिर परिचित शैली का परिचय देते हैं। कविता अपने कथ्य को स्पष्ट करने में पूरी तरह सफल है। अलंकारों और शब्द विन्यास का भी कविता में स्मरणीय स्थान है।

© डॉ. संजू सदानीरा 

 

 

महादेवी वर्मा

 

जो तुम आ जाते एक बार

 

कितनी करुणा कितने संदेश

 

पथ में बिछ जाते बन पराग;

 

गाता प्राणों का तार तार

 

अनुराग भरा उन्माद राग;

 

आँसू लेते वे पद पखार!

 

हँस उठते पल में आर्द्र नैन

 

धुल जाता ओठों से विषाद,

 

छा जाता जीवन में वसंत

 

लुट जाता चिर संचित विराग;

 

ऑंखें देतीं सर्वस्व वार!

 

इसी तरह अगर आप महादेवी वर्मा की एक अन्य कविता मैं नीर भरी दुख की बदली की मूल संवेदना पढ़ना चाहते हैं तो कृपया नीचे दिये गये लिंक पर क्लिक करें..

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