चन्द्रयान अभियान Mission Chandrayan; news on Chandrayan 2; Chandrayan 3;

चन्द्रयान अभियान, Mission Chandrayan 

जिज्ञासा मनुष्य का नैसर्गिक स्वभाव है। वह अपने आसपास की दिखने वाली तमाम चीजों के बारे में जानने और समझने के लिए उत्सुक रहता है। यथासंभव इसके लिए प्रयास भी करता है। इसी कड़ी में नित नई खोज और अनुसंधान होते रहते हैं। विज्ञान के अनुसार कोई भी सत्य अंतिम सत्य नहीं होता और कोई भी निष्कर्ष अंतिम निष्कर्ष नहीं होता। वैज्ञानिक अपने प्रयोग और अनुसंधान के माध्यम से हमेशा तथ्यों की तलाश में रहते हैं।

जब से मानव सभ्यता का विकास प्रारंभ हुआ धरती के अतिरिक्त मनुष्य के जीवन में आमूलचूल परिवर्तन लाने वाले दो कारक सबसे ज़्यादा महत्वपूर्ण रहे हैं-सूर्य और चंद्रमा। पृथ्वी पर होने वाले दिन-रात, जलवायु, मौसम और वर्षा के लिए सूर्य और चंद्रमा महत्त्पूर्ण हैं। इसमें सूर्य तक जाना या कोई भी वैज्ञानिक खोज या अनुसंधान करना बहुत ही मुश्किल काम है। परंतु चंद्रमा के बारे में पता लगाने के लिए बहुत सारे अभियान किए गए हैं और वर्तमान में भी लगातार किए जा रहे हैं।

इसमें से भारत के लिए जो सबसे महत्त्वपूर्ण अभियान है वह है- चन्द्रयान। चन्द्रयान का एक बार फिर से सुर्खियों में आने का कारण है चन्द्रयान 3 का लॉन्च होना। 14 जुलाई 2023 चन्द्रयान 3 अभियान लॉन्च किया गया।

 

चन्द्रयान अभियान-

चन्द्रयान दो शब्दों से मिलकर बना है चंद्र+ यान। अर्थात चंद्रमा के लिए एक विशेष वाहन। चन्द्रयान भारत के ISRO यानी इंडियन स्पेस रिसर्च आर्गेनाईजेशन की एक महत्वाकांक्षी परियोजना है जिसके तहत चंद्रमा पर अनुसंधान और अध्ययन किया जा रहा है। इसमें खास तौर पर चंद्रमा का मानचित्रण, सतह पर उपस्थित बर्फ के कणों, खनिज, चट्टानों, रसायन आदि का अध्ययन शामिल है।

इसके तहत दशकों से विभिन्न देशों द्वारा प्रयास किया जा रहे हैं। इसमें मानव सभ्यता के लिए ऐतिहासिक दिन था जब सबसे पहली बार संयुक्त राज्य अमेरिका के अपोलो मिशन के तहत नील आर्मस्ट्रांग ने ने 20 जुलाई 1969 को चांद पर पहला कदम रखा। इसके अलावा रूस, चीन, भारत, जापान और इज़रायल ने विभिन्न चंद्र अभियानों के माध्यम से अपनी उपस्थिति दर्ज की।

 

चन्द्रयान 1 अभियान –

भारत ने चांद पर जाने के लिए पहला सफल प्रयास 2008 में किया। 22 अक्टूबर 2008 वह ऐतिहासिक दिन था जब चन्द्रयान की लॉन्चिंग हुई। हालांकि इसके लिए प्रयास 2003 से ही शुरू हो चुके थे उस समय भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान केंद्र (ISRO) के प्रमुख जी माधवन नायर थे जिनके दिशा निर्देश में यह मिशन कामयाब हुआ। यह आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा के ‘सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र’ से प्रक्षेपित किया गया। इसका कुल वजन 1380 किलोग्राम शक्ति 700 वॉट थी।

Chandrayan 1, 22 अक्टूबर 2008 से लेकर 30 अगस्त 2009 यानी कुल 10 माह 6 दिन तक सक्रिय रहा। चन्द्रयान 1 को चंद्रमा तक पहुंचने में 5 दिन लगे जबकि इसे पूरी तरह से स्थापित होने में 15 दिन लग गए। इसी के साथ भारत चंद्र मिशन को सफलतापूर्वक अंजाम देने वाला छठा देश और चंद्रमा पर अपने देश का झंडा गाड़ने वाला चौथा देश बना। चन्द्रयान 1 मिशन अपनी ऊर्जा संबंधी आवश्यकताओं के लिए सौर ऊर्जा पर निर्भर था। इसमें 700 वॉट क्षमता का सौर पैनल लगा था जिसमें लिथियम-आयन बैटरी के माध्यम से ईंधन की पूर्ति करनी थी।

 

चन्द्रयान 2 अभियान –

यह चंद्रयान प्रथम का उन्नत संस्करण है। इसे तत्कालीन इसरो प्रमुख के सेवन की निगरानी में प्रथम पूर्ण स्वदेशी चंद्र मिशन चंद्रयान 2, 22 जुलाई 2019 को आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा में स्थित सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से प्रक्षेपित किया गया। हालांकि पहले इसकी लॉन्चिंग डेट 15 जुलाई 2019 प्रस्तावित थी परंतु तकनीकी गड़बड़ी की वजह से इसको स्थगित कर 22 जुलाई को करना पड़ा। Chandrayan 2 का कुल वजन 3877 किलोग्राम था। इस मिशन के साथ भारत चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर सॉफ्ट लैंडिंग करने वाला दुनिया का पहला देश बना।

इस मिशन की खास बात यह है कि इसकी लागत महज 978 करोड़ थी जो कि किसी हॉलीवुड फिल्म के बजट से भी काम है। इसकी तुलना अगर NASA के चंद्र मिशन LRO (lunar reconnaissance orbiter) से की जाए, जिसकी लागत 3450 करोड़ थी तो यह बेहद मामूली लागत है। चंद्रयान 2 मिशन को अप्रूवल 2008 में ही मिल गया था परंतु इसे ‘रूसी अंतरिक्ष केंद्र’ के सहयोग से डिजाइन किया जाना था। रूस के बार-बार टालने की वजह से इसमें विलंब होता गया और आखिरकार इसरो ने इसे पूर्ण स्वदेशी मॉडल से विकसित करने का प्रयास किया और इसमें काफी हद तक सफलता भी मिली।

 

चन्द्रयान की संरचना –

Chandrayan 2 एकीकृत 3 इन 1 मिशन था। जिसमें तीन प्रमुख भाग थे-ऑर्बिटर, लैंडर और रोवर। ऑर्बिटर का वजन 3290 किलोग्राम था। इसे हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (HAL) की सहायता से विकसित किया गया था। इसे चंद्रमा की सतह से 100 किलोमीटर ऊपर रहकर अपना काम करना था। लैंडर, इसका नाम भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान के जन्मदाता विक्रम साराभाई के नाम पर विक्रम रखा गया था। लैंडर का वजन 1471 किलोग्राम और शक्ति 650 वॉट थी।

चंद्रयान 2 के रोवर का नाम प्रज्ञान था जिसका वजन 27 किलोग्राम और शक्ति 50 वॉट थी। इसे चंद्रमा की सतह पर 6 पहिए की सहायता से उतार गया। इसे 500 मीटर के क्षेत्र में काम करना था। चंद्रयान टू में 0.3 किलोमीटर का हाई रेजोल्यूशन कैमरा लगा हुआ था। जिससे मानचित्रण का काम और बारीकी से हो सके और अनुसंधान में सहायता मिले। 

 

उपलब्धियां-

हालांकि Chandrayan 2 मिशन के आखिरी चरण में विफल रहा। उसका लैंडर चंद्रमा की सतह पर झटके से टकराया और धरती से उसका संपर्क टूट गया। परंतु इसका अर्थ यह बिल्कुल नहीं कि यह मिशन ही असफल रहा। क्योंकि यह देश का पहला पूर्णतः स्वदेशी चंद्र मिशन था। इसकी लागत दुनिया के दूसरे देशों की तुलना में काफी कम थी। साथ ही चंद्रयान 2 की वजह से भारत चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर पहली बार सॉफ्ट लैंडिंग करने वाला पहला देश बना। इसके साथ ही इसने चंद्रयान3 के लिए भी रास्ता बनाया।

 

चंद्रयान 3-

यह चंद्रयान2 का पूरक मिशन है। ये लॉन्च व्हीकल मार्क 3 की सहायता से 14 जुलाई 2023 को आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा में स्थित ‘सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र’ से लॉन्च किया गया । चंद्रमा पर इसके सॉफ्ट लैंडिंग की अनुमानित तिथि 23-24 अगस्त है। Chandrayan 3 ने डार्क साइड ऑफ़ द मून पर लैंड किया। यह चंद्रयान 2 से इस मामले में अलग है कि इसमें कोई ऑर्बिटर नहीं है, बल्कि प्रोपल्शन माड्यूल को जोड़ा गया है। साथ ही लैंडर और रोवर चंद्रयान 2 की तरह थे।

इसमें किसी भी आकस्मिक दुर्घटना से बचने के लिए अतिरिक्त सुरक्षा उपकरण लगाए गए हैं साथ ही इसके इंपैक्ट लेग को और भी मजबूत बनाया गया है। चंद्रयान 2 के संपर्क टूटने वाली घटना से सबक लेते हुए इसमें अतिरिक्त ट्रैकिंग के लिए यूरोपियन अंतरिक्ष एजेंसी (ESA) द्वारा अंतरिक्ष ट्रैकिंग सपोर्ट भी लिया गया है। इसके लॉन्च के लिए जीएसएलवी MK3 और LVM-3 का प्रयोग किया गया।

 

चंद्रमा पर पानी की संभावनाएं-

चंद्रमा की अब तक के अनुसंधान में जितनी भी तस्वीरें मिली हैं उसमें एक बात स्पष्ट रूप से दिखाई देती है कि चंद्रमा की सतह पर गड्ढेनुमा आकृतियां है। जिसका प्रभाव यह है कि उन गड्ढों के अंदर कभी सूरज की धूप नहीं पहुंच पाती। जब सूर्य का प्रकाश चंद्रमा पर पड़ता है तो वहां का तापमान 125°c के लगभग हो जाता है जिसकी वजह से पानी का अस्तित्व संभव नहीं है। क्योंकि जल के अस्तित्व के लिए 0°c से लेकर 100°c  तक का तापमान आदर्श तापमान है। 0°c से कम होने पर पानी के बर्फ बनने की स्थिति उत्पन्न हो जाती है जबकि 100 डिग्री सेल्सियस से ऊपर तापमान जाने पर पानी जलवाष्प बन जाता है।

अब क्योंकि सूरज की रोशनी पड़ने पर सतह का तापमान 125 डिग्री सेल्सियस से ज्यादा होता है अतः प्रकाश वाले क्षेत्र में जल की संभावना नगण्य हो जाती है। इसी तरह छाया वाले हिस्से पर यानी जहां सूर्य की रोशनी नहीं पड़ती वहां पर तापमान हमेशा ऋणात्मक रहता है वहां भी पानी की संभावना नहीं है। लेकिन यहां यह बात ध्यान देने योग्य है की चांद के गड्ढे वाले हिस्से में पानी की संभावना तो नहीं है परंतु बर्फ की संभावना मौजूद है। बर्फ से पानी बनाना कोई इतनी मुश्किल प्रक्रिया नहीं है। इसलिए चांद पर बर्फ के इन कणों की खोज निश्चय ही वैज्ञानिक अनुसंधानों के लिए बहुत उपयोगी सिद्ध होने वाली है।

 

 चंद्रयान अभियानों के उद्देश्य और उपयोगिता-

Chandrayan का लक्ष्य चंद्रमा को समझना और अध्ययन करना है। इसके लिए चंद्रमा की सतह का मानचित्रण करना जिससे सतह की भूआकृति का पता चल सके। इसके अलावा चंद्रमा पर उपस्थित चट्टानों के अंदर जमे पानी यानी बर्फ की खोज करनी है। साथ ही चट्टानों में उपस्थित रसायन के बारे में अध्ययन करना है जिससे चंद्रमा की उत्पत्ति व विकास के बारे में सटीक निष्कर्ष निकाला जा सके।

इससे चंद्रमा पर स्थाई अनुसंधान केंद्र की स्थापना भी की जा सकती है ताकि चंद्रमा, पृथ्वी और ब्रह्मांड की उत्पत्ति के बारे में और भी सटीक अनुसंधान और अध्ययन किया जा सके। साथ ही चांद पर मानव बस्तियां बसाने जैसा ड्रीम प्रोजेक्ट पूरा करने की दिशा में ये चंद्र मिशन मील का पत्थर साबित हो सकते हैं।

 

© प्रीति खरवार

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Priti Kharwar

प्रीति खरवार एक स्वतंत्र लेखिका हैं, जो शोध-आधारित हिंदी-लेखन में विशेषज्ञता रखती हैं। बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय से मनोविज्ञान में परास्नातक प्रीति सामान्य ज्ञान और समसामयिक विषयों में विशेष रुचि रखती हैं। निरंतर सीखने और सुधार के प्रति समर्पित प्रीति का लक्ष्य हिंदी भाषी पाठकों को उनकी अपनी भाषा में जटिल विषयों और मुद्दों से सम्बंधित उच्च गुणवत्ता वाली अद्यतन मानक सामग्री उपलब्ध कराना है।

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